औरंगजेब (1658-1707) भारतीय इतिहास के एक महत्वपूर्ण सम्राट थे, जिनकी धार्मिक नीति ने उनके शासनकाल को गहराई से प्रभावित किया। उनकी धार्मिक नीति का मूल्यांकन करते समय कई पहलुओं पर ध्यान दिया जाना चाहिए:
1. सख्त धार्मिकता
औरंगजेब ने अपने पूर्ववर्तियों के समान धार्मिक सहिष्णुता की नीति का पालन नहीं किया। उन्होंने इस्लाम के प्रति अपनी कट्टरता को स्पष्ट रूप से दिखाया। वह शरिया कानून के अनुसार शासन करने के पक्षधर थे और अपने प्रशासन में इस्लामिक तत्वों को बढ़ावा दिया। उन्होंने हिन्दू धार्मिक स्थलों को ध्वस्त करने और जिजिया कर (धार्मिक कर) को पुनः लागू करने का निर्णय लिया, जिससे हिन्दू समुदाय में असंतोष बढ़ा।
2. धार्मिक सहिष्णुता का अभाव
औरंगजेब के शासन में हिन्दू समुदाय के साथ भेदभाव का सामना करना पड़ा। उन्होंने कई हिन्दू मंदिरों को तोड़ा और उन्हें इस्लामिक ढांचे में परिवर्तित किया। इससे न केवल हिन्दुओं में नाराजगी बढ़ी, बल्कि भारतीय समाज में एक धार्मिक विभाजन भी उत्पन्न हुआ।
3. राजनीतिक परिणाम
उनकी धार्मिक नीतियों का एक प्रमुख परिणाम यह रहा कि उन्होंने विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच तनाव को बढ़ाया, जिससे अंततः उनकी सत्ता कमजोर हुई। उनके शासन के अंत तक, अनेक विद्रोह और संघर्ष उत्पन्न हुए, जिनमें मराठों का संघर्ष प्रमुख था।
4. सकारात्मक पहलू
हालांकि, कुछ इतिहासकार यह भी मानते हैं कि औरंगजेब ने धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं किया और प्रशासन में सक्षम व्यक्तियों को उनकी धार्मिक पहचान के बावजूद नियुक्त किया। उन्होंने कला और संस्कृति को प्रोत्साहित किया, लेकिन उनकी धार्मिक नीतियाँ अधिकतर उनके धार्मिक कट्टरता की ओर इशारा करती हैं।
निष्कर्ष
कुल मिलाकर, औरंगजेब की धार्मिक नीति एक भिन्न दृष्टिकोण का परिचायक थी, जिसने धार्मिक सहिष्णुता के बजाय धार्मिक कट्टरता को प्राथमिकता दी। यह न केवल उनके शासन के लिए, बल्कि भारतीय समाज के लिए भी दीर्घकालिक प्रभाव डालने वाली रही।
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