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प्रथम आंग्ल मराठा युद्ध (1775ई.-1782ई.) की पुष्ठभूमि एवं गतिक्रम की विवेचना कीजिए।

प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध (1775-1782) ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और मराठा साम्राज्य के बीच एक महत्वपूर्ण सैन्य संघर्ष था। इस युद्ध ने भारतीय उपमहाद्वीप के राजनीतिक परिदृश्य को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसमें, हम इस युद्ध की पृष्ठभूमि और गतिक्रम की विवेचना करेंगे।

1. पृष्ठभूमि

1.1. मराठा साम्राज्य का उदय

18वीं शताब्दी की शुरुआत में मराठा साम्राज्य ने अपने साम्राज्य का विस्तार करना शुरू किया। पेशवाओं की राजनीति ने उन्हें एक शक्तिशाली साम्राज्य बना दिया। हालांकि, मराठा साम्राज्य में आंतरिक संघर्ष और सत्ता के लिए प्रतिस्पर्धा भी थी, जो उनके साम्राज्य को कमजोर कर रही थी। पेशवा बलाजी बाजीराव के समय (1700-1740) में मराठों ने काफी विस्तार किया, लेकिन इसके बाद पेशवा बालाजी बाजीराव (1740-1761) की हार ने साम्राज्य को कमजोर कर दिया।

1.2. ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का विस्तार

ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने भी अपने साम्राज्य का विस्तार करना शुरू किया। उन्होंने बंगाल, मद्रास, और बंबई में अपनी स्थिति मजबूत की। कंपनी ने मराठों के साथ सहयोग और प्रतिस्पर्धा दोनों की नीति अपनाई, लेकिन उन्हें यह भी महसूस हुआ कि यदि वे अपने हितों की रक्षा करना चाहते हैं, तो उन्हें मराठों को नियंत्रित करना होगा।

1.3. राजनैतिक स्थिति

1740 के दशक के अंत में, भारत में राजनीतिक अस्थिरता बढ़ी। मराठा साम्राज्य के भीतर आंतरिक संघर्ष और शक्ति संतुलन की कमी ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को एक अवसर प्रदान किया। पेशवा की शक्ति कमजोर होने के कारण, विभिन्न मराठा नेताओं के बीच टकराव और प्रतिस्पर्धा बढ़ गई। इस स्थिति का लाभ उठाने के लिए, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने युद्ध की योजना बनाई।

2. युद्ध की गतिक्रम

2.1. युद्ध की शुरुआत

युद्ध की शुरुआत 1775 में हुई। पेशवा माधव राव की मृत्यु के बाद, उनके छोटे भाई नारायण राव को पेशवा बनाया गया। इस समय, नारायण राव ने अपनी कमजोर स्थिति को देखते हुए ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी से मदद मांगी। कंपनी ने इस अवसर का लाभ उठाते हुए, नारायण राव का समर्थन करने का निर्णय लिया।

2.2. पहला युद्ध प्रारंभ

कंपनी ने अपनी सेना को मराठा क्षेत्र में भेजा। इससे पहले, पेशवा ने ब्रिटिशों से संबंध बनाने का प्रयास किया था, लेकिन नारायण राव की स्थिति कमजोर होने के कारण ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने स्वार्थों को पहले रखा। नारायण राव की सहायता के लिए ब्रिटिश ने मुग़ल बादशाह और अन्य स्थानीय नेताओं से समर्थन प्राप्त करने का प्रयास किया।

2.3. युद्ध का मोड़

युद्ध के प्रारंभिक चरण में, कंपनी को सफलता मिली। उन्होंने मराठा सेना को हराया और कई क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया। हालांकि, मराठों ने भी एकजुट होकर संघर्ष किया। पेशवा की शक्ति को मजबूत करने के लिए अन्य मराठा नेताओं ने भी अपनी सेनाएँ संगठित कीं। इसके परिणामस्वरूप, युद्ध की स्थिति बदल गई।

2.4. युद्ध का विकराल रूप

1778 में युद्ध ने एक नया मोड़ लिया जब संधि करने के प्रयास विफल रहे। मराठों ने एक बार फिर से ब्रिटिशों के खिलाफ एकजुट होने का निर्णय लिया। इस बीच, उनके नेता जैसे राघो जी भोंसले और सखाराम बखशि ने युद्ध में अपनी ताकत और संसाधनों को जुटाया। युद्ध के दौरान, कंपनी की सेना को कई झड़पों का सामना करना पड़ा और उन्हें नुकसान भी उठाना पड़ा।

2.5. युद्ध की समाप्ति

युद्ध का अंत 1782 में हुआ। दोनों पक्षों ने थकावट के कारण शांति स्थापित करने का निर्णय लिया। इसके परिणामस्वरूप, 1782 में सागर की संधि (Treaty of Salbai) हुई। इस संधि के तहत, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने मराठा साम्राज्य के साथ अपनी स्थिति को मजबूत किया, लेकिन इसे औपचारिक रूप से मान्यता दी गई।

3. युद्ध के परिणाम और प्रभाव

3.1. राजनीतिक परिवर्तन

इस युद्ध के परिणामस्वरूप, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने नियंत्रण को बंगाल से आगे बढ़ाते हुए मराठा क्षेत्र में भी विस्तार किया। हालांकि, युद्ध ने मराठा साम्राज्य को कमजोर कर दिया और आंतरिक संघर्षों को बढ़ावा दिया।

3.2. आर्थिक प्रभाव

युद्ध ने भारतीय समाज और अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव डाला। दोनों पक्षों के लिए आर्थिक संकट उत्पन्न हुआ, और किसानों और स्थानीय व्यापारियों को नुकसान उठाना पड़ा।

3.3. सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव

युद्ध ने भारतीय समाज में अस्थिरता और तनाव को बढ़ाया। युद्ध के कारण होने वाली हिंसा ने समाज को प्रभावित किया और सांस्कृतिक धरोहर को भी नुकसान पहुँचाया।

निष्कर्ष

प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध (1775-1782) एक महत्वपूर्ण सैन्य संघर्ष था, जिसने भारतीय उपमहाद्वीप के राजनीतिक, आर्थिक, और सामाजिक ढांचे को प्रभावित किया। इस युद्ध ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को मराठा साम्राज्य के खिलाफ अपनी स्थिति को मजबूत करने का अवसर दिया, जबकि मराठा साम्राज्य में आंतरिक संघर्षों को बढ़ावा दिया। यह युद्ध भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जिसने आगे चलकर ब्रिटिश साम्राज्य के विस्तार की दिशा तय की।

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