1772 में बंगाल में दोहरी शासन प्रणाली को भंग करने के कई कारण थे, जो ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रशासनिक और राजनीतिक निर्णयों से संबंधित थे।
1. प्रशासनिक कठिनाइयाँ
दोहरी शासन प्रणाली के तहत, बंगाल में प्रशासनिक नियंत्रण भारतीय नबाब और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच विभाजित था। यह व्यवस्था प्रशासनिक दक्षता को बाधित कर रही थी, क्योंकि नबाब और कंपनी के अधिकारियों के बीच स्पष्ट समन्वय का अभाव था। इस स्थिति ने स्थानीय प्रशासन में अराजकता और भ्रष्टाचार को जन्म दिया।
2. राजस्व वसूली में कमी
दोहरी शासन प्रणाली के कारण, राजस्व वसूली में भी कठिनाइयाँ उत्पन्न हुईं। नबाबों की कमजोरियों और प्रशासन में विसंगतियों के चलते, राजस्व की कमी हुई। इससे ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को वित्तीय संकट का सामना करना पड़ा, जो उसके आर्थिक हितों के खिलाफ था।
3. स्थायी भूमि राजस्व प्रणाली
बंगाल में स्थायी भूमि राजस्व प्रणाली (1793) की नींव रखने के लिए, कंपनी ने दोहरी शासन प्रणाली को समाप्त करने का निर्णय लिया। इस प्रणाली के तहत, कंपनी ने जमींदारों को स्थायी मालिकाना हक प्रदान किया, जिससे राजस्व वसूली में सुधार हुआ और प्रशासन को केंद्रीकृत किया जा सका।
4. कंपनी की शक्ति का विस्तार
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने प्रभाव को बढ़ाने और बंगाल पर पूर्ण नियंत्रण स्थापित करने की आवश्यकता महसूस की। दोहरी शासन प्रणाली के समाप्त होने से, कंपनी को स्थानीय प्रशासन में अधिक प्रभाव और नियंत्रण प्राप्त हुआ, जिससे उसने अपने आर्थिक और राजनीतिक हितों की रक्षा की।
निष्कर्ष
1772 में बंगाल में दोहरी शासन प्रणाली को भंग करने का निर्णय प्रशासनिक दक्षता बढ़ाने, राजस्व वसूली में सुधार करने और कंपनी के प्रभाव को विस्तार देने के लिए लिया गया था। यह निर्णय ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए महत्वपूर्ण था, जिसने उसे बंगाल में अधिक स्थिरता और नियंत्रण प्रदान किया।
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