‘धरती धन न अपना’ में दलित जीवन की त्रासदी के प्रमुख संदर्भ
‘धरती धन न अपना’ उपन्यास में दलित जीवन की त्रासदी को गहराई से उजागर किया गया है। इस कृति के माध्यम से लेखक ने समाज के उस वर्ग की वास्तविकताओं को पेश किया है, जो सदियों से शोषण, भेदभाव और सामाजिक अन्याय का सामना कर रहा है।
उपन्यास में प्रमुख दलित पात्रों के माध्यम से उनके जीवन की कठिनाइयों को चित्रित किया गया है। उनके पास न तो अपनी ज़मीन है, न ही संपत्ति, और वे हमेशा आर्थिक तंगी का सामना करते हैं। लेखक ने इस वर्ग की सामाजिक स्थिति को स्पष्ट करते हुए दिखाया है कि किस प्रकार उन्हें गाँव में दूसरों के अधीन रहकर जीवन बिताना पड़ता है। उनके जीवन में आशा की किरणें कम ही होती हैं, और उनकी मेहनत के बावजूद उन्हें उचित मूल्य नहीं मिलता।
इसके अलावा, उपन्यास में जाति व्यवस्था और सामाजिक भेदभाव का भी स्पष्ट चित्रण किया गया है। दलित पात्रों को उच्च जातियों के लोगों के द्वारा लगातार अपमान और हिंसा का सामना करना पड़ता है। इस भेदभाव का असर न केवल उनके जीवन पर, बल्कि उनके मानसिक स्वास्थ्य और आत्मसम्मान पर भी पड़ता है।
उपन्यास में प्रेम और मानवीय संबंधों की भी चर्चा की गई है, जो दलित जीवन की त्रासदी को और गहरा बनाते हैं। जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, पात्रों की निराशा और संघर्ष बढ़ता जाता है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि दलित समुदाय को एक dignified जीवन जीने के लिए निरंतर संघर्ष करना पड़ता है।
इस प्रकार, ‘धरती धन न अपना’ दलित जीवन की त्रासदी को सामाजिक, आर्थिक, और मानसिक पहलुओं के माध्यम से उजागर करता है, जो पाठकों को इस समुदाय की वास्तविकताओं से परिचित कराता है। यह कृति सामाजिक न्याय और समानता की आवश्यकता को भी रेखांकित करती है।
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