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‘गोदान‘ उपन्यास के नारी पात्रों के आधार पर प्रेमचंद्र के नारी विषयक दृष्टिकोण पर प्रकाश डालिए।

 'गोदान' उपन्यास में नारी पात्रों के आधार पर प्रेमचंद के नारी विषयक दृष्टिकोण

प्रेमचंद का उपन्यास 'गोदान' भारतीय किसान के जीवन का गहन चित्रण करता है, जिसमें नारी पात्रों की भूमिका भी महत्वपूर्ण है। प्रेमचंद ने इस उपन्यास में नारी के विभिन्न पहलुओं को उजागर किया है, जो उनके नारी विषयक दृष्टिकोण को स्पष्ट करते हैं।

उपन्यास की प्रमुख नारी पात्र धनिया और उसकी सहेलियाँ हैं। धनिया, होरी महतो की पत्नी, एक सशक्त और सहनशील महिला है। उसकी संघर्षशीलता और घरेलू कर्तव्यों का पालन करना यह दर्शाता है कि वह अपने परिवार के लिए कितनी समर्पित है। धनिया का चरित्र यह स्पष्ट करता है कि नारी केवल एक सहायक नहीं, बल्कि परिवार और समाज की रीढ़ होती है। वह अपने पति के सपनों और संघर्षों में सहायक बनती है, जबकि समाज के अन्य सदस्यों की भलाई के लिए भी अपने स्वार्थ को त्याग देती है।

इसके अलावा, उपन्यास में अन्य नारी पात्र जैसे कि होरी की बहन और पड़ोसी महिलाएँ भी नारी की स्थिति को दर्शाती हैं। वे सामाजिक बंधनों और पारिवारिक दबावों के बावजूद अपनी इच्छाओं और अधिकारों की खोज में संघर्षरत हैं। प्रेमचंद ने इन पात्रों के माध्यम से यह दिखाया है कि नारी की मुक्ति और उसकी पहचान केवल आर्थिक स्वतंत्रता से नहीं, बल्कि सामाजिक और मानसिक स्वतंत्रता से भी जुड़ी है।

इस प्रकार, 'गोदान' में प्रेमचंद का नारी विषयक दृष्टिकोण एक सशक्त और सहनशील नारी की छवि प्रस्तुत करता है, जो संघर्षों के बीच भी अपने परिवार और समाज के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। उनका यह दृष्टिकोण नारी की शक्ति और उसके संघर्ष को उजागर करता है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि नारी केवल परंपरा की सीमाओं में नहीं बंधी है, बल्कि वह समाज के विकास में एक सक्रिय भागीदार है।

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