‘सूखा बरगद’ उपन्यास में रूढ़िवादिता और सामाजिक संघर्ष की स्थितियाँ
‘सूखा बरगद’ उपन्यास, लेखिका ममता कालिया द्वारा रचित, भारतीय समाज में व्याप्त रूढ़िवादिता और सामाजिक संघर्ष की जटिलताओं को उजागर करता है। यह उपन्यास एक छोटे से गाँव की पृष्ठभूमि में लिखा गया है, जहाँ परंपरागत सोच और मान्यताएँ गहरी जड़ें जमा चुकी हैं।
उपन्यास में रूढ़िवादिता का प्रमुख उदाहरण मुख्य पात्रों के जीवन में देखा जा सकता है। गाँव में महिलाएँ हमेशा से परंपराओं और सामाजिक बंधनों के अधीन रही हैं। जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, यह स्पष्ट होता है कि कैसे रूढ़िवादी सोच के कारण महिलाएँ अपने अधिकारों और इच्छाओं को व्यक्त करने में असमर्थ हैं। पात्रों की सामाजिक स्थिति, विशेषकर महिलाओं की, इस बात को दर्शाती है कि वे शिक्षा, स्वावलंबन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित हैं।
सामाजिक संघर्ष की स्थितियाँ भी उपन्यास में प्रमुखता से उपस्थित हैं। पात्रों की जीवनशैली, आर्थिक स्थिति, और परंपरागत मान्यताओं के बीच संघर्ष स्पष्ट होता है। जैसे-जैसे पात्र परिवर्तन की आवश्यकता महसूस करते हैं, उनके बीच टकराव उत्पन्न होता है। उपन्यास में युवा पीढ़ी, जो अपने विचारों और दृष्टिकोण में आधुनिकता लाना चाहती है, और बुजुर्गों, जो पुरानी परंपराओं को बनाए रखना चाहते हैं, के बीच संघर्ष उभरता है।
उपन्यास के माध्यम से ममता कालिया ने यह संदेश दिया है कि सामाजिक परिवर्तन की आवश्यकता है, और इसके लिए केवल बाहरी संघर्ष नहीं, बल्कि आंतरिक परिवर्तन भी आवश्यक है। इस प्रकार, ‘सूखा बरगद’ रूढ़िवादिता और सामाजिक संघर्ष की जटिलताओं को उजागर करते हुए एक गहन संदेश देता है, जो पाठकों को सोचने पर मजबूर करता है।
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