‘मैला आँचल’ उपन्यास में आँचलिकता का वैशिष्ट्य
'मैला आँचल' उपन्यास, जो फणीश्वर नाथ 'रेणु' द्वारा रचित है, भारतीय साहित्य में आँचलिकता का एक उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करता है। यह उपन्यास बिहार के ग्रामीण जीवन की गहराई में जाकर वहाँ की सांस्कृतिक, सामाजिक, और आर्थिक जटिलताओं को उजागर करता है।
उपन्यास का एक महत्वपूर्ण वैशिष्ट्य इसकी प्रामाणिकता है, जो ग्रामीण परिवेश की जीवंतता को बखूबी दर्शाता है। 'मैला आँचल' में संवाद, लोकगीत, और जनजीवन के विवरणों के माध्यम से लेखक ने उस क्षेत्र की संस्कृति और परंपराओं को जीवित किया है। यहाँ के पात्र न केवल काल्पनिक हैं, बल्कि वे ग्रामीण जीवन की सच्चाइयों के प्रतिनिधि हैं। उनके माध्यम से लेखक ने समाज की समस्याओं, जैसे जातिवाद, आर्थिक संघर्ष, और सामाजिक असमानताओं को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया है।
आँचलिकता का दूसरा पहलू इसमें निहित स्थानीय भाषा और बोल-चाल की शैली है। रेणु ने भोजपुरी जैसी स्थानीय बोलियों का प्रयोग किया है, जिससे उपन्यास में एक गहराई और स्वाभाविकता आ गई है। यह भाषा न केवल संवादों को जीवंत बनाती है, बल्कि पाठकों को उस क्षेत्र की सांस्कृतिक पहचान से भी जोड़ती है।
उपन्यास में चरित्रों के माध्यम से ग्रामीण जीवन के विभिन्न पहलुओं का चित्रण किया गया है। पात्रों की जिंदगियाँ, उनकी संघर्षों और खुशियों की कहानियाँ, आँचलिकता को और भी प्रामाणिक बनाती हैं। जैसे, नायक घनश्याम का संघर्ष और उसका परिवार, इस बात का प्रतीक है कि कैसे व्यक्ति अपनी सामाजिक स्थिति को बदलने के लिए प्रयासरत है।
इस प्रकार, 'मैला आँचल' उपन्यास न केवल आँचलिकता का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, बल्कि यह भारतीय ग्रामीण समाज की गहराई, उसकी समस्याओं, और सांस्कृतिक पहचान को भी उजागर करता है। यह उपन्यास पाठकों को एक नए दृष्टिकोण से ग्रामीण जीवन को देखने का अवसर प्रदान करता है।
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