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प्रकृतिवाद के विविध रूपों की व्याख्या करते हुए प्रकृतिवाद की शिक्षा में देन का मूल्यांकन कीजिये।

 प्रकृतिवाद (Naturalism) एक दार्शनिक दृष्टिकोण है, जो मानता है कि प्राकृतिक दुनिया और उसके सिद्धांतों के माध्यम से जीवन और ब्रह्मांड को समझा जा सकता है। प्रकृतिवाद ने शिक्षा, समाज, और संस्कृति के विभिन्न पहलुओं में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इस लेख में हम प्रकृतिवाद के विविध रूपों का विवेचन करेंगे और साथ ही शिक्षा में इसके योगदान का मूल्यांकन करेंगे।

1. प्रकृतिवाद का परिचय

प्रकृतिवाद एक दार्शनिक धारणा है, जो मानती है कि मनुष्य और अन्य जीव-जंतुओं का व्यवहार और मानसिक प्रक्रियाएँ केवल प्राकृतिक और भौतिक कारणों से प्रभावित होती हैं। यह विश्वास करता है कि जीवन के सभी पहलु, जैसे सोच, भावना, और निर्णय, केवल भौतिक और जैविक घटनाओं का परिणाम होते हैं। यह दृष्टिकोण मानव समाज और संस्कृति को समझने के लिए एक वैज्ञानिक और तर्कसंगत दृष्टिकोण अपनाता है।

2. प्रकृतिवाद के रूप

(i) वैज्ञानिक प्रकृतिवाद

यह रूप प्राकृतिक और भौतिक विज्ञानों पर आधारित है। इसके अनुसार, ब्रह्मांड और जीवन के सभी पहलुओं को वैज्ञानिक विधियों के माध्यम से समझा जा सकता है। यह रूप उन सिद्धांतों को समर्थन देता है जो भौतिक और जैविक प्रक्रियाओं के आधार पर जीवन की उत्पत्ति और विकास की व्याख्या करते हैं। जैसे, डार्विन का विकासवाद (Theory of Evolution) और चार्ल्स डार्विन द्वारा प्रस्तुत प्राकृतिक चयन का सिद्धांत।

(ii) मनोवैज्ञानिक प्रकृतिवाद

यह रूप मनोविज्ञान और मानसिक प्रक्रियाओं के प्राकृतिक पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करता है। इसके अनुसार, मानव मानसिकता और उसकी सोच प्रक्रिया केवल मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र की जैविक क्रियाओं का परिणाम होती हैं। इसमें मानसिक समस्याओं का समाधान और उपचार भी जैविक दृष्टिकोण से किया जाता है, जैसे मानसिक विकारों को दवाओं या शारीरिक उपचारों के माध्यम से ठीक किया जाता है।

(iii) सामाजिक प्रकृतिवाद

सामाजिक प्रकृतिवाद समाज के विकास को प्राकृतिक और जैविक कारकों के साथ जोड़ता है। यह मानता है कि मनुष्य का समाज और संस्कृति भी प्राकृतिक और जैविक तत्वों से प्रभावित होते हैं। समाज के विकास, मान्यताओं, प्रथाओं और आस्थाओं को समझने के लिए यह जैविक और प्राकृतिक कारकों को प्राथमिकता देता है।

3. प्रकृतिवाद का शिक्षा में योगदान

प्रकृतिवाद ने शिक्षा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इसने शिक्षा के दृष्टिकोण को वैज्ञानिक, तर्कसंगत और अनुभवजन्य बना दिया। निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से हम इसके योगदान को स्पष्ट कर सकते हैं:

(i) प्राकृतिक दृष्टिकोण

प्रकृतिवाद के अनुसार, शिक्षा का उद्देश्य बच्चों को उनके प्राकृतिक और जैविक विकास के अनुसार शिक्षित करना है। यह विचारक मानते हैं कि बच्चों का मनोवैज्ञानिक और शारीरिक विकास शिक्षा के दौरान स्वाभाविक रूप से होना चाहिए। उन्हें जीवन के विभिन्न पहलुओं से परिचित कराने के लिए शिक्षकों को एक अनुभवात्मक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए, जो बच्चों के स्वाभाविक विकास को बढ़ावा दे सके।

(ii) स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता

प्रकृतिवाद शिक्षा में बच्चों की स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता को महत्व देता है। यह विश्वास करता है कि बच्चों को प्राकृतिक दुनिया और उनके आस-पास की दुनिया को समझने के लिए स्वतंत्रता मिलनी चाहिए। उनका शिक्षा का उद्देश्य केवल पुस्तकीय ज्ञान नहीं, बल्कि जीवन के वास्तविक अनुभवों को सीखना भी है।

(iii) प्राकृतिक विज्ञानों का महत्व

प्रकृतिवाद में विज्ञान और तकनीकी शिक्षा को प्राथमिकता दी जाती है। यह मानता है कि बच्चों को केवल साहित्य या कला के अध्ययन तक सीमित नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि उन्हें प्राकृतिक और भौतिक विज्ञानों में भी गहरी समझ विकसित करनी चाहिए। इसके लिए बच्चों को प्रयोगात्मक शिक्षा और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से शिक्षित किया जाता है।

(iv) मानवता और सामाजिक जिम्मेदारी

प्रकृतिवाद समाज और मानवता के सिद्धांतों को शिक्षा के केंद्र में रखता है। यह बच्चों को समाज में अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों के प्रति जागरूक करता है, ताकि वे एक अच्छे नागरिक के रूप में विकसित हो सकें। समाज और मानवता के प्रति सम्मान और संवेदनशीलता पैदा करने के लिए यह मानता है कि शिक्षा में समाजिक और प्राकृतिक कारकों का संतुलन होना चाहिए।

4. प्रकृतिवाद की शिक्षा में देन का मूल्यांकन

प्रकृतिवाद ने शिक्षा में कई सकारात्मक बदलाव किए हैं, लेकिन इसके कुछ आलोचनात्मक पहलू भी हैं।

(i) सकारात्मक पहलू:

  • विज्ञान और तर्क पर आधारित दृष्टिकोण: यह शिक्षा को एक वैज्ञानिक और तर्कसंगत दृष्टिकोण प्रदान करता है, जिससे विद्यार्थियों को तथ्यात्मक और वास्तविक ज्ञान प्राप्त होता है।
  • स्वतंत्रता और स्वतंत्र सोच: यह बच्चों को अपनी सोच और विचारों की स्वतंत्रता प्रदान करता है, जो उन्हें आगे चलकर जीवन में निर्णय लेने में मदद करती है।
  • प्राकृतिक और सामाजिक जगत से जुड़ी शिक्षा: विद्यार्थियों को उनके आसपास की दुनिया को समझने और उसे महसूस करने का अवसर मिलता है, जिससे उनका समग्र विकास होता है।

(ii) नकारात्मक पहलू:

  • भावनाओं और सृजनात्मकता का अभाव: प्रकृतिवाद में कभी-कभी बच्चों की भावनाओं, कला, और सृजनात्मकता को अधिक महत्व नहीं दिया जाता। इससे विद्यार्थियों के मानसिक और भावनात्मक विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
  • सामाजिक और सांस्कृतिक विविधताओं की उपेक्षा: प्राकृतिक और जैविक दृष्टिकोण के कारण कभी-कभी समाज और संस्कृति के विविध पहलुओं की उपेक्षा हो सकती है। इस तरह के दृष्टिकोण से विद्यार्थियों को समाजिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संदर्भों को समझने में कठिनाई हो सकती है।

5. निष्कर्ष

प्रकृतिवाद ने शिक्षा के क्षेत्र में वैज्ञानिक दृष्टिकोण, तर्कसंगतता और अनुभवजन्यता को बढ़ावा दिया है। इसके प्रभाव से बच्चों को स्वाभाविक और जैविक दृष्टिकोण से शिक्षित किया जाता है, जिससे उनका समग्र विकास होता है। हालांकि, इसके कुछ नकारात्मक पहलू भी हैं, जैसे भावनाओं और सृजनात्मकता की उपेक्षा, और समाजिक-सांस्कृतिक विविधताओं की अनदेखी। फिर भी, प्रकृतिवाद ने शिक्षा के क्षेत्र में गहरा प्रभाव छोड़ा है और यह आज भी शिक्षा नीति और पद्धतियों में महत्वपूर्ण योगदान देता है।

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