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राष्ट्रीय एकता मे कौन-कौन सी बाधायें हैं?

राष्ट्रीय एकता में बाधाएँ

भारत जैसे विविधताओं वाले देश में राष्ट्रीय एकता एक महत्वपूर्ण आवश्यकता है, लेकिन इसके रास्ते में कई बाधाएँ आती हैं। ये बाधाएँ विभिन्न सामाजिक, सांस्कृतिक, और राजनीतिक कारकों से उत्पन्न होती हैं। कुछ प्रमुख बाधाएँ निम्नलिखित हैं:

  1. सामाजिक विषमताएँ: भारत में जाति, धर्म, भाषा, और क्षेत्रीयता के आधार पर गहरी सामाजिक विषमताएँ हैं। विभिन्न जाति और धर्मों के बीच भेदभाव और असमानता राष्ट्रीय एकता को कमजोर करता है। जब विभिन्न समुदायों के बीच पारस्परिक समझ और सम्मान की कमी होती है, तो यह सामूहिक पहचान को प्रभावित करता है।
  2. भाषाई और क्षेत्रीय भेदभाव: भारत में विभिन्न भाषाओं और क्षेत्रों के लोग रहते हैं। कभी-कभी भाषा या क्षेत्रीय पहचान के कारण टकराव उत्पन्न होते हैं। विशेषकर भाषा के आधार पर राज्यों के बीच मतभेद उत्पन्न होते हैं, जो राष्ट्रीय एकता के लिए चुनौती बन सकते हैं।
  3. धार्मिक असहिष्णुता: धार्मिक भेदभाव और असहिष्णुता भारत में एक गंभीर समस्या है। विभिन्न धर्मों के बीच संघर्ष और नफरत का वातावरण राष्ट्रीय एकता को नष्ट कर सकता है। यह सामाजिक ताने-बाने को कमजोर करता है और अलगाववाद को बढ़ावा देता है।
  4. राजनीतिक मतभेद: राजनीतिक दलों के बीच आपसी प्रतिस्पर्धा और मतभेद कभी-कभी राष्ट्रीय हितों को प्रभावित करते हैं। जब राजनीतिक लाभ के लिए एकता की भावना को नजरअंदाज किया जाता है, तो यह देश की एकजुटता में बाधा डालता है।
  5. आर्थिक विषमताएँ: आर्थिक असमानताएँ भी राष्ट्रीय एकता में बाधक बन सकती हैं। जब कुछ राज्य और समुदाय आर्थिक दृष्टि से समृद्ध होते हैं, जबकि अन्य गरीब रहते हैं, तो यह असंतोष और असमानता की भावना उत्पन्न करता है, जो राष्ट्रीय एकता को कमजोर करता है।
  6. संस्कृतिक विविधता: भारत में विभिन्न संस्कृतियाँ, परंपराएँ और रीति-रिवाज हैं। जबकि यह विविधता देश की समृद्धि को बढ़ाती है, कभी-कभी इसे सही तरीके से समझा नहीं जाता, जिससे सामूहिक पहचान में विभाजन हो सकता है।
  7. आंतरिक आतंकवाद और अलगाववाद: कुछ क्षेत्रों में आतंकवादी गतिविधियाँ और अलगाववादी आंदोलन भी राष्ट्रीय एकता के लिए गंभीर चुनौती पेश करते हैं। ये आंदोलन राज्यों के बीच विभाजन और असुरक्षा की भावना को बढ़ाते हैं।

निष्कर्ष

राष्ट्रीय एकता को बनाए रखने के लिए इन विभिन्न बाधाओं का समाधान करना आवश्यक है। शिक्षा, सामाजिक समरसता, धार्मिक सहिष्णुता, और समानता के सिद्धांतों को बढ़ावा देने से इन समस्याओं को दूर किया जा सकता है और एक मजबूत और एकजुट राष्ट्र का निर्माण किया जा सकता है।

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