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यथार्थवाद के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यचर्या एवं शिक्षण-विधियों की विवेचना कीजिये।

यथार्थवाद (Realism) के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यचर्या एवं शिक्षण-विधियों की विवेचना

यथार्थवाद (Realism) एक दार्शनिक दृष्टिकोण है जो यह मानता है कि वास्तविकता, चाहे वह भौतिक हो या मानसिक, स्वतंत्र रूप से अस्तित्व में रहती है और उसे समझने की कोशिश करनी चाहिए। यह दर्शन उन तत्वों पर आधारित है जो स्थिर, ठोस और अनुभवजन्य हैं, और इसे प्राप्त करने के लिए सटीक तर्क और विज्ञान की प्रक्रिया अपनाई जाती है। यथार्थवाद शिक्षा को एक उद्देश्यपूर्ण और अनुभवजन्य दृष्टिकोण से देखता है, जिसमें विद्यार्थी को वास्तविक दुनिया की समझ प्रदान की जाती है।

1. यथार्थवाद का परिचय

यथार्थवाद का मूल विश्वास है कि जो कुछ भी वास्तविक है, वह हमारे बाहर एक स्वतंत्र अस्तित्व रखता है। यह दर्शन प्लेटो और अरस्तू जैसे प्राचीन दार्शनिकों के विचारों से प्रेरित है, जिन्होंने वास्तविकता को परिभाषित किया था। यथार्थवाद शिक्षा में यह मानता है कि छात्रों को ज्ञान प्राप्ति के लिए वस्तुनिष्ठ और स्थिर वास्तविकताओं का अध्ययन करना चाहिए, और यह ज्ञान वैज्ञानिक तथ्यों और तर्क के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।

यथार्थवाद शिक्षा के सिद्धांतों को एक ठोस आधार देता है, जिसमें यह सुनिश्चित किया जाता है कि विद्यार्थी जो कुछ भी सीखते हैं, वह वास्तविक दुनिया से संबंधित हो और उसे जीवन में लागू किया जा सके।

2. यथार्थवाद के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य

यथार्थवाद के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य को कुछ मुख्य बिंदुओं में समझा जा सकता है:

(i) वास्तविकता का ज्ञान प्राप्त करना

यथार्थवाद का मुख्य उद्देश्य यह है कि विद्यार्थी वास्तविकता के बारे में गहरी समझ प्राप्त करें। यह वास्तविकता केवल भौतिक और प्राकृतिक दुनिया तक सीमित नहीं है, बल्कि समाज और संस्कृति से संबंधित तथ्यों को भी इसमें शामिल किया जाता है। शिक्षा का उद्देश्य विद्यार्थियों को इस वास्तविकता से अवगत कराना है ताकि वे समझ सकें कि यह दुनिया कैसे काम करती है और वे इसके साथ सामंजस्यपूर्ण तरीके से कैसे जी सकते हैं।

(ii) मानवता का संवर्धन

यथार्थवाद मानता है कि शिक्षा का उद्देश्य विद्यार्थियों को केवल ज्ञान देना नहीं है, बल्कि उन्हें एक जिम्मेदार और विवेकी नागरिक बनाने का भी है। वे समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझ सकें, और समाज में व्याप्त समस्याओं का हल खोजने के लिए सक्षम हों।

(iii) सामाजिक और सांस्कृतिक विकास

यथार्थवाद में यह विश्वास किया जाता है कि शिक्षा से समाज और संस्कृति में सुधार हो सकता है। शिक्षा का उद्देश्य न केवल व्यक्तिगत विकास है, बल्कि समग्र समाज को भी बेहतर बनाना है। इसके लिए विद्यार्थियों को समाज के बारे में गहरी जानकारी और समझ प्रदान की जाती है, ताकि वे समाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से संवेदनशील बनें।

3. यथार्थवाद के अनुसार पाठ्यचर्या

यथार्थवाद के अनुसार पाठ्यचर्या में मुख्य ध्यान छात्रों को वास्तविकता से अवगत कराने पर केंद्रित होता है। पाठ्यचर्या को व्यावहारिक और अनुभवजन्य बनाना आवश्यक होता है, ताकि छात्रों को न केवल सैद्धांतिक ज्ञान मिले, बल्कि वह ज्ञान उनके जीवन में उपयोगी भी हो। यथार्थवाद के अनुसार पाठ्यचर्या के कुछ मुख्य घटक निम्नलिखित हैं:

(i) विज्ञान और गणित

यथार्थवाद में विज्ञान और गणित को अत्यधिक महत्व दिया जाता है, क्योंकि ये दोनों क्षेत्र वास्तविकता को समझने और विश्लेषण करने के सर्वोत्तम उपकरण माने जाते हैं। यह मानते हुए कि ज्ञान केवल स्थिर और प्रमाणित तथ्यों पर आधारित होना चाहिए, विज्ञान और गणित शिक्षा का केंद्रीय हिस्सा होते हैं।

(ii) सामाजिक अध्ययन

यथार्थवादी शिक्षा के अंतर्गत विद्यार्थियों को समाज, राजनीति, अर्थव्यवस्था और संस्कृति के बारे में भी गहरी जानकारी दी जाती है। यह उनकी सोच को विस्तृत करता है और उन्हें समाज के मुद्दों पर विचार करने की क्षमता प्रदान करता है।

(iii) व्यावसायिक शिक्षा

यथार्थवाद में व्यावसायिक शिक्षा को भी महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। पाठ्यचर्या में ऐसी गतिविधियाँ शामिल की जाती हैं, जो विद्यार्थियों को व्यावहारिक जीवन के लिए तैयार करें। जैसे, कौशल विकास, तकनीकी प्रशिक्षण और अन्य व्यावसायिक गतिविधियाँ, जो छात्रों को उनके पेशेवर जीवन में सहायता प्रदान करती हैं।

(iv) साहित्य और इतिहास

यथार्थवाद यह मानता है कि साहित्य और इतिहास के अध्ययन से विद्यार्थियों को वास्तविक जीवन के अनुभवों और स्थितियों का ज्ञान होता है। इन विषयों के माध्यम से विद्यार्थियों को अतीत की घटनाओं और मानवीय संघर्षों के बारे में जानकारी मिलती है, जिससे वे वर्तमान और भविष्य में बेहतर निर्णय ले सकते हैं।

4. यथार्थवाद के अनुसार शिक्षण-विधियाँ

यथार्थवाद के अनुसार शिक्षण विधियाँ भी वैज्ञानिक और तर्कसंगत होनी चाहिए। इन विधियों का उद्देश्य विद्यार्थियों को वास्तविकता की गहरी समझ और ज्ञान प्रदान करना है। यथार्थवाद में शिक्षण विधियों के कुछ महत्वपूर्ण पहलू निम्नलिखित हैं:

(i) प्रयोगात्मक शिक्षा (Practical Education)

यथार्थवाद में शिक्षकों को यह सिखाने की आवश्यकता होती है कि वे केवल थ्योरी पर ध्यान न दें, बल्कि विद्यार्थियों को वास्तविक जीवन में उस ज्ञान का उपयोग करने के लिए प्रेरित करें। प्रयोगात्मक विधियाँ, जैसे प्रयोग, परियोजनाएँ और फील्ड वर्क, विद्यार्थियों को यथार्थ से जुड़ने में मदद करती हैं।

(ii) विचारशीलता और आलोचनात्मक सोच

यथार्थवाद के अनुसार शिक्षण में विद्यार्थियों को विचारशील और आलोचनात्मक बनाने की कोशिश की जाती है। उन्हें यह सिखाया जाता है कि वे हर मुद्दे को गंभीरता से सोचें और तार्किक तरीके से उसका समाधान ढूंढें। यह विधि विद्यार्थियों को तर्क और विश्लेषण की क्षमता प्रदान करती है, जो उन्हें जीवन के विभिन्न पहलुओं में मदद करती है।

(iii) प्रश्नोत्तरी और चर्चा (Discussions and Debates)

शिक्षक विद्यार्थियों के साथ संवाद और बहस की प्रक्रिया को बढ़ावा देते हैं, जिससे उनके विचारों का विकास होता है। यह विधि विद्यार्थियों को समाज के मुद्दों पर सोचने और तर्कसंगत तरीके से अपने विचार व्यक्त करने के लिए प्रेरित करती है।

(iv) प्रेरणात्मक शिक्षण (Motivational Teaching)

यथार्थवाद के अनुसार शिक्षक को विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करना चाहिए, ताकि वे ज्ञान प्राप्त करने में रुचि लें और उसे अपने जीवन में लागू करें। शिक्षक विद्यार्थियों के प्रश्नों का उत्तर देने के साथ-साथ उन्हें प्रेरित करने का कार्य भी करते हैं, जिससे वे शिक्षा को एक आवश्यकता के रूप में समझें।

5. निष्कर्ष

यथार्थवाद शिक्षा के दृष्टिकोण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसका मुख्य उद्देश्य विद्यार्थियों को वास्तविकता से अवगत कराना और उनके जीवन को वैज्ञानिक, तर्कसंगत और व्यावहारिक रूप से सुसंगत बनाना है। यथार्थवाद में पाठ्यचर्या और शिक्षण विधियाँ दोनों ही विद्यार्थियों को वास्तविक दुनिया की ओर उन्मुख करती हैं। इसके द्वारा विद्यार्थियों को न केवल सैद्धांतिक ज्ञान मिलता है, बल्कि वे उसे जीवन में भी प्रभावी ढंग से लागू करने में सक्षम होते हैं।

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