भारतीय संविधान के निर्माण प्रक्रिया
भारतीय संविधान, जिसे 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उठाए गए सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक मुद्दों के समाधान के लिए एक ठोस आधार प्रदान करता है। इसका निर्माण एक विस्तृत और जटिल प्रक्रिया के तहत हुआ, जिसमें विभिन्न चरण और महत्वपूर्ण घटनाएँ शामिल थीं। इसमें हम भारतीय संविधान के निर्माण की प्रक्रिया का विस्तार से अध्ययन करेंगे।
1. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
भारतीय संविधान की आवश्यकता का अहसास तब हुआ जब भारत ने ब्रिटिश साम्राज्य से स्वतंत्रता प्राप्त की। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, कई नेता और संगठनों ने संविधान के निर्माण के लिए अपने विचार प्रस्तुत किए। महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, डॉ. भीमराव अंबेडकर और अन्य नेताओं ने संविधान की आवश्यकता को समझा और इसके लिए विचार विमर्श प्रारंभ किया।
2. क्रिप्स मिशन (1942)
1942 में, क्रिप्स मिशन का गठन किया गया था, जिसका उद्देश्य भारतीय नेताओं के साथ संविधान के निर्माण के लिए बातचीत करना था। हालांकि, इस मिशन में कोई ठोस परिणाम नहीं निकला, लेकिन यह संविधान निर्माण की दिशा में एक कदम था।
3. कैबिनेट मिशन योजना (1946)
1946 में, ब्रिटिश सरकार ने कैबिनेट मिशन का गठन किया, जिसका मुख्य उद्देश्य भारत में एक संवैधानिक प्रक्रिया को स्थापित करना था। इस मिशन ने तीन मुख्य प्रस्ताव प्रस्तुत किए:
- भारत का विभाजन नहीं होगा।
- भारतीय प्रांतों और रियासतों को एक संघ में लाने का प्रस्ताव दिया गया।
- एक संविधान सभा का गठन करने की सिफारिश की गई, जो नए संविधान का निर्माण करेगी।
इस मिशन के परिणामस्वरूप, संविधान सभा के चुनाव किए गए, जिसमें विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
4. संविधान सभा का गठन (1946)
भारत की संविधान सभा का गठन 9 दिसंबर 1946 को हुआ। इसमें कुल 389 सदस्य थे, जिनमें से 292 सदस्य भारतीय प्रांतों से और 93 सदस्य रियासतों से थे। संविधान सभा का अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद को चुना गया। इस सभा का मुख्य उद्देश्य एक ऐसा संविधान बनाना था जो भारत के सभी नागरिकों के लिए न्याय, स्वतंत्रता और समानता सुनिश्चित करे।
5. प्रारंभिक चर्चाएँ और प्रस्ताव
संविधान सभा की पहली बैठक में विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की गई, जैसे कि संविधान का स्वरूप, मौलिक अधिकार, कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका का स्वरूप आदि। सभा में कई उपसमितियाँ भी गठित की गईं, जिनका कार्य विभिन्न मुद्दों पर रिपोर्ट तैयार करना था।
6. डॉ. भीमराव अंबेडकर की भूमिका
डॉ. भीमराव अंबेडकर को भारतीय संविधान के "मुख्य आर्किटेक्ट" के रूप में जाना जाता है। उन्होंने संविधान drafting committee का नेतृत्व किया और संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों पर गहन विचार-विमर्श किया। अंबेडकर ने समाज के कमजोर वर्गों और अल्पसंख्यकों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए विशेष प्रावधान किए।
7. संविधान का मसौदा
संविधान सभा ने 29 अगस्त 1947 को संविधान का पहला मसौदा प्रस्तुत किया। इस मसौदे पर विभिन्न सदस्यों द्वारा गहन चर्चा की गई। इसके बाद, संविधान के मसौदे को जनता के सामने रखा गया, जिससे नागरिकों को इस प्रक्रिया में भागीदारी का अवसर मिला।
8. संशोधन और स्वीकृति
संविधान के मसौदे पर कई संशोधन किए गए। इसके बाद, 26 नवंबर 1949 को संविधान को अपनाया गया। इस दिन को "संविधान दिवस" के रूप में मनाया जाता है। इसके बाद, 26 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान लागू हुआ, जो भारतीय गणराज्य के रूप में भारत की स्थापना का प्रतीक बना।
9. मुख्य विशेषताएँ
भारतीय संविधान की कुछ प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
- संविधान की लम्बाई: यह दुनिया का सबसे लंबा लिखित संविधान है, जिसमें 448 अनुच्छेद, 12 अनुसूचियाँ और कई संशोधन शामिल हैं।
- मौलिक अधिकार: संविधान में नागरिकों के मौलिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं, जैसे कि स्वतंत्रता का अधिकार, समानता का अधिकार, धर्म का अधिकार आदि।
- संविधान की प्रमुखता: संविधान को सर्वोच्च कानून माना जाता है, और यह सभी कानूनों और सरकारी गतिविधियों पर लागू होता है।
- संविधान का संशोधन: संविधान में संशोधन की प्रक्रिया भी दी गई है, जिससे इसे बदलते समय के अनुसार अपडेट किया जा सके।
10. निष्कर्ष
भारतीय संविधान का निर्माण एक जटिल और विचारशील प्रक्रिया थी, जिसमें विभिन्न राजनीतिक दलों, नेताओं और समाज के विभिन्न वर्गों की भागीदारी रही। यह संविधान न केवल भारत की विविधता को दर्शाता है, बल्कि यह लोकतंत्र, स्वतंत्रता, समानता और न्याय के मूल सिद्धांतों पर आधारित है। इसके निर्माण ने भारतीय समाज को एक नए दृष्टिकोण से देखने और विकास की नई दिशा में आगे बढ़ने का अवसर प्रदान किया। भारतीय संविधान आज भी विश्व के सबसे महत्वपूर्ण संविधानों में से एक है और यह भारतीय लोकतंत्र की नींव को मजबूत करता है।
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