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भारत में चुनाव सुधार के प्रयासों की व्याख्या कीजिए।

भारत में चुनाव सुधार के प्रयास

भारत का चुनावी ढांचा लोकतांत्रिक प्रक्रिया का आधार है, और यह सुनिश्चित करने के लिए कि चुनाव स्वतंत्र, निष्पक्ष और पारदर्शी हों, चुनाव सुधार की आवश्यकता होती है। भारत में चुनाव सुधार की प्रक्रिया समय-समय पर विभिन्न सरकारों, आयोगों, और राजनीतिक नेताओं द्वारा की गई है। इसमें, हम भारत में चुनाव सुधार के प्रयासों की विस्तृत व्याख्या करेंगे।

1. चुनाव आयोग की स्थापना

भारत में चुनाव सुधार का एक महत्वपूर्ण कदम 1950 में चुनाव आयोग की स्थापना था। चुनाव आयोग एक स्वतंत्र संस्था है, जिसका कार्य चुनावों की प्रक्रिया को नियंत्रित करना और सुनिश्चित करना है कि चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष हों। इसके प्रमुख कार्यों में चुनाव कार्यक्रम की घोषणा, मतदाता सूची का सत्यापन, और चुनावी नियमों का पालन कराना शामिल हैं।

2. विधि एवं प्रक्रिया में सुधार

भारतीय चुनावों में सुधार के लिए कई महत्वपूर्ण विधियों और प्रक्रियाओं में सुधार किए गए हैं:

  • न्यूनतम आयु सीमा: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 326 के अनुसार, मतदान के लिए न्यूनतम आयु सीमा 18 वर्ष है। इससे युवाओं को मतदान करने का अधिकार मिला है।
  • मतदाता सूची का सुधार: चुनाव आयोग ने मतदाता सूची को अद्यतित और सही करने के लिए कई कदम उठाए हैं। ई-मतदाता सेवाएँ, मोबाइल ऐप्स और ऑनलाइन पंजीकरण की सुविधाओं के माध्यम से मतदाता सूची में सुधार किया गया है।

3. राजनीतिक दलों के लिए नियम

भारतीय चुनाव सुधार के प्रयासों में राजनीतिक दलों के लिए नियमों और विनियमों की स्थापना भी शामिल है। चुनावी विनियमन अधिनियम, 1951 के अंतर्गत, राजनीतिक दलों को पंजीकरण, वित्तीय पारदर्शिता, और चुनावी प्रचार में नैतिकता के पालन के लिए निर्देशित किया गया है।

  • राजनीतिक दलों का पंजीकरण: चुनाव आयोग ने यह सुनिश्चित करने के लिए नियम बनाए हैं कि सभी राजनीतिक दलों को पंजीकरण की प्रक्रिया का पालन करना होगा। इसके अलावा, दलों को अपने वित्तीय स्रोतों का विवरण प्रस्तुत करना होता है, जिससे वित्तीय पारदर्शिता बढ़ सके।
  • चुनावी बैनर और खर्च की सीमा: चुनाव आयोग ने चुनाव प्रचार पर खर्च की सीमा निर्धारित की है, जिससे धन शक्ति के प्रभाव को कम किया जा सके।

4. चुनावी वित्तपोषण सुधार

चुनावों में वित्तपोषण की समस्या भी चुनावी सुधार का एक महत्वपूर्ण पहलू है। भारत में चुनावी राजनीति में पैसे का प्रभाव कम करने के लिए कई प्रयास किए गए हैं:

  • चुनावी बांड: 2018 में सरकार ने चुनावी बांड पेश किया, जिससे मतदाता किसी भी राजनीतिक दल को गुमनाम तरीके से धन दे सकते हैं। इस पहल का उद्देश्य चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता लाना है।
  • राजनीतिक दलों के वित्तपोषण में सुधार: राजनीतिक दलों को उनके वित्तपोषण के स्रोतों का खुलासा करना अनिवार्य किया गया है। इससे यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि दलों का वित्तपोषण नैतिक और कानूनी तरीके से किया जाए।

5. चुनावी प्रक्रिया में तकनीकी सुधार

चुनावों में तकनीकी सुधार के प्रयासों ने भारत के चुनावी ढांचे को और अधिक प्रभावी बनाया है:

  • इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM): भारत में 2000 के दशक में EVM का उपयोग शुरू किया गया। इससे मतदान प्रक्रिया को तेज और पारदर्शी बनाने में मदद मिली है।
  • वीवीपैट (Voter Verified Paper Audit Trail): EVM के साथ वीवीपैट का प्रयोग भी किया जाता है, जिससे मतदाता यह सुनिश्चित कर सकता है कि उनका वोट सही तरीके से रिकॉर्ड किया गया है।
  • ऑनलाइन मतदान: कुछ राज्यों में, चुनाव आयोग ने ऑनलाइन मतदान की संभावनाओं का परीक्षण किया है, जिससे मतदान की प्रक्रिया को और अधिक सुगम बनाया जा सके।

6. चुनावी शुचिता और पारदर्शिता

चुनावों की शुचिता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए कई कदम उठाए गए हैं:

  • नैतिकता कोड: चुनाव आयोग ने सभी राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के लिए नैतिकता का एक कोड स्थापित किया है, जिसका पालन करना अनिवार्य है। इसमें प्रचार के दौरान नैतिक व्यवहार और चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता शामिल है।
  • आपराधिक पृष्ठभूमि का खुलासा: उम्मीदवारों को अपने आपराधिक रिकॉर्ड का खुलासा करने की आवश्यकता है। इससे मतदाता को यह जानकारी मिलती है कि वे किसे वोट दे रहे हैं।

7. चुनावी जागरूकता कार्यक्रम

चुनाव सुधार के प्रयासों में नागरिकों की चुनावी जागरूकता को बढ़ावा देना भी शामिल है। चुनाव आयोग ने विभिन्न जागरूकता अभियानों की शुरुआत की है, जैसे:

  • मतदाता जागरूकता अभियान: ये अभियान मतदाताओं को मतदान के महत्व और प्रक्रिया के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं।
  • स्वतंत्रता संग्राम के नायकों को सम्मान: चुनाव आयोग ने स्वतंत्रता संग्राम के नायकों और उनके योगदान के बारे में जानकारी देने वाले कार्यक्रमों का आयोजन किया है, जिससे युवा पीढ़ी में मतदान के प्रति जागरूकता बढ़ी है।

8. चुनौतियाँ और भविष्य के उपाय

भारत में चुनाव सुधार के प्रयासों के बावजूद, कई चुनौतियाँ अभी भी मौजूद हैं:

  • राजनीतिक हिंसा: चुनावी हिंसा और दबाव जैसे मुद्दे चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं। इसके खिलाफ सख्त कानूनों की आवश्यकता है।
  • मतदाता की निष्क्रियता: कुछ क्षेत्रों में मतदाता की निष्क्रियता एक चिंता का विषय है। इसके लिए जागरूकता बढ़ाने और युवाओं को मतदान में शामिल करने के प्रयास करने की आवश्यकता है।
  • धन शक्ति का प्रभाव: चुनावी प्रक्रिया में धन शक्ति का प्रभाव कम करने के लिए और अधिक ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।

निष्कर्ष

भारत में चुनाव सुधार के प्रयास लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत करने के लिए आवश्यक हैं। चुनाव आयोग और सरकार ने विभिन्न कदम उठाए हैं, लेकिन चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं। भविष्य में, चुनाव सुधार की प्रक्रिया को और अधिक पारदर्शी और प्रभावी बनाने के लिए नागरिकों की भागीदारी और राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता होगी। इससे चुनावी प्रक्रिया को और अधिक मजबूत किया जा सकेगा, जो अंततः एक स्वस्थ लोकतंत्र की ओर ले जाएगा।

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