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बेंथम के उपयोगितावाद सिद्धान्त में मिल द्वारा संशोधन पर प्रकाश डालिए।

जेरमी बेंथम (1748-1832) और जॉन स्टुअर्ट मिल (1806-1873) दोनों ही उपयोगितावाद के प्रमुख सिद्धांतकार हैं। बेंथम ने उपयोगितावाद की नींव रखी, जबकि मिल ने इसे और अधिक विकसित किया और उसमें कई महत्वपूर्ण संशोधन किए। इस निबंध में, हम बेंथम के उपयोगितावाद सिद्धांत के मूलभूत तत्वों का विश्लेषण करेंगे और मिल द्वारा किए गए संशोधनों की चर्चा करेंगे।

बेंथम का उपयोगितावाद

जेरमी बेंथम के उपयोगितावाद का मूल सिद्धांत यह है कि "सुख का सबसे बड़ा सिद्धांत" (the greatest happiness principle) मानवता के लिए सबसे सही और नैतिक कार्रवाई है। बेंथम के अनुसार, एक क्रिया की नैतिकता इस बात पर निर्भर करती है कि वह कितनी खुशी या सुख उत्पन्न करती है और कितना दुख या दुख कम करती है। उनके उपयोगितावाद में निम्नलिखित मुख्य विशेषताएँ हैं:

  1. सुख और दुख का माप: बेंथम ने सुख और दुख को मापने के लिए एक "हैपिटिक प्रिंसिपल" (hedonic calculus) का प्रस्ताव रखा। इसके अनुसार, किसी क्रिया के परिणामों को उसकी मात्रा (intensity), अवधि (duration), निकटता (propinquity), फलने-फूलने की संभावना (fecundity), निश्चितता (certainty) और स्वच्छंदता (purity) के आधार पर मापा जा सकता है।
  2. व्यक्तिगत और सामाजिक सुख: बेंथम ने व्यक्तिगत सुख के महत्व को स्वीकार किया, लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि समाज के सुख का संरक्षण व्यक्तिगत सुख से अधिक महत्वपूर्ण है। उनके अनुसार, एक नैतिक कार्रवाई वह है जो समाज के लिए अधिकतम सुख उत्पन्न करती है।
  3. सभी के लिए समान अधिकार: बेंथम का उपयोगितावाद सभी व्यक्तियों के सुख के लिए समान अधिकार का समर्थन करता है। इसका मतलब है कि किसी एक व्यक्ति के सुख को दूसरे व्यक्ति के सुख पर प्राथमिकता नहीं दी जानी चाहिए।

मिल का उपयोगितावाद

जॉन स्टुअर्ट मिल ने बेंथम के उपयोगितावाद में कई महत्वपूर्ण संशोधन किए, जिनका उद्देश्य इस सिद्धांत को और अधिक गहराई और व्यावहारिकता प्रदान करना था। मिल ने बेंथम के सिद्धांत को विकसित करते हुए निम्नलिखित प्रमुख बिंदुओं पर जोर दिया:

  1. गुणवत्ता का महत्व: मिल ने बेंथम के सुख मापने के उपायों में गुणात्मक दृष्टिकोण को जोड़ा। उन्होंने तर्क किया कि सभी सुख समान नहीं होते हैं; कुछ सुख अधिक मूल्यवान होते हैं। मिल ने यह स्पष्ट किया कि उच्चतर सुख (जैसे मानसिक और आध्यात्मिक सुख) अधिक महत्वपूर्ण होते हैं, जबकि निम्नतर सुख (जैसे शारीरिक सुख) की तुलना में उनकी प्राथमिकता अधिक होनी चाहिए।
  2. सुख की परिभाषा में विस्तार: मिल ने सुख की परिभाषा में विस्तार करते हुए यह कहा कि सुख केवल भौतिक सुख नहीं है, बल्कि इसमें बौद्धिक और नैतिक सुख भी शामिल हैं। उन्होंने यह तर्क दिया कि उच्च स्तर के सुखों की प्राप्ति के लिए कुछ बुनियादी नैतिक मानदंडों का पालन करना आवश्यक है।
  3. सामाजिक न्याय: मिल ने उपयोगितावाद के सामाजिक पहलुओं को भी आगे बढ़ाया। उन्होंने कहा कि उपयोगितावाद को सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के साथ जोड़ने की आवश्यकता है। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता और समाज का कल्याण एक-दूसरे से संबंधित हैं और एक सशक्त समाज तभी संभव है जब व्यक्तिगत स्वतंत्रता का सम्मान किया जाए।
  4. सुख का दीर्घकालिक दृष्टिकोण: मिल ने सुख के दीर्घकालिक दृष्टिकोण को अपनाया। उन्होंने तर्क किया कि हमें तात्कालिक सुख के बजाय दीर्घकालिक सुख पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। इसका मतलब है कि कुछ क्रियाएँ, जो तात्कालिक रूप से दुखदायी हो सकती हैं, अंततः समाज के लिए अधिक स्थायी सुख उत्पन्न कर सकती हैं।
  5. साक्षात्कार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता: मिल ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता के महत्व को भी माना। उन्होंने कहा कि व्यक्ति को अपने अधिकार और स्वतंत्रता का उपयोग करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए, बशर्ते कि इससे दूसरों को नुकसान न पहुंचे। उनका मानना था कि एक स्वतंत्र समाज में व्यक्तियों को अपने सुख के लिए खुद निर्णय लेने का अधिकार होना चाहिए।

निष्कर्ष

बेंथम और मिल के उपयोगितावाद सिद्धांतों में एक महत्वपूर्ण अंतर है। जबकि बेंथम ने उपयोगितावाद को अधिकतर मात्रात्मक दृष्टिकोण से समझा, मिल ने इसे गुणात्मक दृष्टिकोण के साथ जोड़ा। मिल ने यह सिद्धांत स्थापित किया कि सुख केवल संख्या में नहीं, बल्कि उसकी गुणवत्ता में भी महत्वपूर्ण है। मिल ने बेंथम के विचारों को संशोधित करते हुए उपयोगितावाद को एक समग्र दृष्टिकोण प्रदान किया, जिसमें व्यक्तिगत स्वतंत्रता, सामाजिक न्याय और नैतिकता के तत्व शामिल हैं।

बेंथम और मिल के सिद्धांत आज भी नैतिकता और राजनीतिक दर्शन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण हैं। उनके विचारों का प्रभाव आज भी विभिन्न नैतिक और सामाजिक मुद्दों पर देखा जा सकता है। उपयोगितावाद का सिद्धांत इस बात की पुष्टि करता है कि नैतिकता का उद्देश्य समाज के लिए अधिकतम सुख का निर्माण करना है, और यह सिद्धांत मानवता के विकास और कल्याण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

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