जीन पियाजे का संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत
जीन पियाजे (Jean Piaget) एक प्रसिद्ध स्विस मनोवैज्ञानिक थे, जिन्होंने बच्चों के संज्ञानात्मक (cognitive) विकास को लेकर गहन अध्ययन किया। उनका मानना था कि बच्चे न केवल सूचनाओं को निष्क्रिय रूप से ग्रहण करते हैं, बल्कि वे खुद अपने आसपास की दुनिया को समझने और उसमें भाग लेने के लिए सक्रिय रूप से सोचने और समस्याओं का समाधान करने की क्षमता रखते हैं। पियाजे का सिद्धांत यह बताता है कि बच्चों का मानसिक विकास एक क्रमिक और चरणबद्ध प्रक्रिया है, जिसमें उनका सोचने, समझने और जानने का तरीका समय के साथ बदलता है।
पियाजे के सिद्धांत की मुख्य विशेषताएं
पियाजे का संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत बच्चों के सोचने की प्रक्रिया और उनकी मानसिक संरचना को समझाने पर केंद्रित है। उन्होंने कहा कि बच्चे अपने विकास के दौरान चार मुख्य चरणों से गुजरते हैं। प्रत्येक चरण में बच्चों की सोचने की क्षमता और समस्याओं को हल करने की दिशा में बदलाव आता है। पियाजे के अनुसार, यह विकासात्मक प्रक्रिया सार्वभौमिक है और हर बच्चे में एक निर्धारित क्रम में होती है, लेकिन प्रत्येक बच्चे के लिए इन चरणों की गति भिन्न हो सकती है।
संज्ञानात्मक विकास के चार चरण
पियाजे ने संज्ञानात्मक विकास के चार चरणों का वर्णन किया है। ये चरण बच्चे के जन्म से लेकर युवावस्था तक होते हैं। प्रत्येक चरण में बच्चे की संज्ञानात्मक क्षमताएं और मानसिक प्रक्रियाएं विकसित होती हैं। ये चार चरण निम्नलिखित हैं:
1. संवेदी-मोटर चरण (Sensorimotor Stage) - जन्म से 2 वर्ष तक
प्रमुख अवधारणाएँ:
- वस्तु स्थायित्व (Object Permanence): इस चरण का सबसे महत्वपूर्ण विकास वस्तु स्थायित्व की समझ है। इसका मतलब है कि बच्चे यह सीखते हैं कि कोई वस्तु तब भी मौजूद रहती है, जब वह उनके दृष्टि से बाहर होती है। उदाहरण के लिए, अगर एक खिलौना बच्चे की नजरों से छुपा दिया जाए, तो बच्चा समझ जाएगा कि वह खिलौना अभी भी मौजूद है।
- कारण और प्रभाव: इस चरण में बच्चे यह भी समझने लगते हैं कि उनकी क्रियाओं का कुछ परिणाम होता है। उदाहरण के लिए, अगर बच्चा खिलौने को गिराए, तो वह समझता है कि खिलौना गिर जाएगा और आवाज करेगा।
2. पूर्व संक्रियात्मक चरण (Preoperational Stage) - 2 से 7 वर्ष तक
प्रमुख अवधारणाएँ:
- प्रतीकात्मक सोच (Symbolic Thought): बच्चे इस अवस्था में अपने अनुभवों को प्रतीकों के रूप में व्यक्त करना सीखते हैं। उदाहरण के लिए, वे खिलौनों का उपयोग करके कल्पनात्मक खेल खेलते हैं, जैसे कि एक खिलौना कार को असली कार की तरह मानना।
- आत्मकेंद्रितता (Egocentrism): इस अवस्था में बच्चे अपने दृष्टिकोण को केंद्र में रखते हैं और उन्हें यह समझने में कठिनाई होती है कि दूसरे लोग चीजों को उनके दृष्टिकोण से कैसे देखते हैं। उदाहरण के लिए, अगर एक बच्चा किसी वस्तु को देख रहा है, तो वह मानता है कि हर कोई उसी वस्तु को उसी दृष्टिकोण से देख रहा है।
- संरचना की कमी (Lack of Conservation): बच्चे इस अवस्था में यह समझने में असमर्थ होते हैं कि किसी वस्तु की मात्रा या संख्या तब भी समान रहती है, जब उसकी आकृति या स्वरूप बदल दिया जाता है। उदाहरण के लिए, यदि पानी को एक चौड़े बर्तन से एक लंबे, पतले बर्तन में डाला जाता है, तो बच्चा सोच सकता है कि लंबे बर्तन में पानी अधिक है।
3. मूर्त संक्रियात्मक चरण (Concrete Operational Stage) - 7 से 11 वर्ष तक
प्रमुख अवधारणाएँ:
- संरक्षण (Conservation): इस चरण के दौरान, बच्चे यह समझने लगते हैं कि किसी वस्तु की मात्रा तब भी समान रहती है, जब उसकी आकृति या स्वरूप बदल जाता है। अब वे यह पहचानने में सक्षम होते हैं कि एक चौड़े बर्तन और एक लंबे बर्तन में पानी की मात्रा समान हो सकती है।
- वर्गीकरण (Classification): बच्चे इस अवस्था में वस्तुओं को विभिन्न श्रेणियों में वर्गीकृत कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, वे अब यह समझने में सक्षम होते हैं कि एक वस्तु एक ही समय में एक से अधिक श्रेणियों में हो सकती है, जैसे कि एक कुत्ता एक पालतू जानवर भी हो सकता है और स्तनपायी भी।
- संबंधन (Seriation): इस अवधारणा के तहत, बच्चे वस्तुओं को किसी विशेष क्रम में व्यवस्थित कर सकते हैं, जैसे कि आकार या वजन के अनुसार। उदाहरण के लिए, वे वस्तुओं को छोटे से बड़े तक क्रमबद्ध कर सकते हैं।
4. औपचारिक संक्रियात्मक चरण (Formal Operational Stage) - 11 वर्ष और उससे अधिक
प्रमुख अवधारणाएँ:
- अमूर्त सोच (Abstract Thinking): इस अवस्था में बच्चे अमूर्त और काल्पनिक स्थितियों के बारे में सोचने की क्षमता प्राप्त कर लेते हैं। वे केवल मूर्त चीजों तक सीमित नहीं रहते, बल्कि अवधारणाओं, विचारों और सैद्धांतिक विषयों पर भी ध्यान केंद्रित कर सकते हैं।
- समस्याओं का तर्कसंगत समाधान (Hypothetico-Deductive Reasoning): इस चरण के दौरान, बच्चे विभिन्न परिकल्पनाओं को आधार बनाकर समस्याओं का समाधान कर सकते हैं। वे एक ही समस्या के विभिन्न संभावित परिणामों का अनुमान लगाने में सक्षम होते हैं और तर्कसंगत ढंग से उनके समाधान तक पहुंचते हैं।
- नैतिकता और न्याय का विकास: इस अवस्था में बच्चे नैतिकता, न्याय और समानता जैसी अवधारणाओं पर भी विचार करने लगते हैं। वे सामाजिक नियमों और मान्यताओं को चुनौती देने और उनके पीछे के कारणों पर विचार करने में सक्षम होते हैं।
पियाजे के सिद्धांत की आलोचना
हालांकि पियाजे का सिद्धांत संज्ञानात्मक विकास के अध्ययन में महत्वपूर्ण माना जाता है, लेकिन कुछ आलोचनाएँ भी हैं:
- अधिक कठोर वर्गीकरण: पियाजे ने विकास को स्पष्ट चरणों में विभाजित किया, लेकिन कुछ शोधकर्ता यह मानते हैं कि बच्चों का विकास इतना कठोर नहीं होता। कुछ बच्चे एक चरण में देर से प्रवेश कर सकते हैं, जबकि अन्य जल्दी।
- सांस्कृतिक भिन्नता: पियाजे का सिद्धांत पश्चिमी बच्चों पर आधारित था और यह हर संस्कृति में सही हो, यह जरूरी नहीं है। विभिन्न सांस्कृतिक और सामाजिक परिस्थितियों में बच्चों का विकास भिन्न हो सकता है।
- प्रौढ़ सोच का आकलन: पियाजे का मानना था कि औपचारिक संक्रियात्मक चरण के बाद संज्ञानात्मक विकास रुक जाता है, लेकिन कुछ शोधकर्ता मानते हैं कि वयस्कता में भी मानसिक विकास जारी रहता है।
निष्कर्ष
जीन पियाजे का संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत यह समझाने का एक महत्वपूर्ण प्रयास था कि बच्चे कैसे सोचते और समझते हैं। उनके चार चरण क्रमिक विकास की प्रक्रिया को स्पष्ट रूप से दिखाते हैं, जिसमें बच्चे साधारण इंद्रियबोध से शुरू करके अमूर्त और जटिल सोच तक पहुंचते हैं। हालांकि उनके सिद्धांत में कुछ कमियां भी हैं, लेकिन यह आज भी विकासात्मक मनोविज्ञान में एक महत्वपूर्ण आधार के रूप में माना जाता है।
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