प्लेटो के न्याय सम्बन्धी विचार उनके प्रसिद्ध ग्रंथ "दि रिपब्लिक" (Republic) में विस्तार से प्रस्तुत किए गए हैं। उनके अनुसार न्याय एक सर्वोच्च नैतिक गुण है, जो व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन दोनों के लिए आवश्यक है। प्लेटो न्याय को एक समन्वित और सुसंगठित समाज की आधारशिला मानते हैं।
प्लेटो का मानना था कि एक न्यायपूर्ण समाज वह होता है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति और वर्ग अपने-अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं। उन्होंने समाज को तीन वर्गों में विभाजित किया:
- दार्शनिक राजा (Philosopher Kings), जिन्हें ज्ञान की प्राप्ति होती है और जो समाज का नेतृत्व करते हैं।
- योद्धा (Auxiliaries), जो राज्य की सुरक्षा और रक्षा करते हैं।
- उत्पादक वर्ग (Producers), जो कृषि, व्यापार, और शिल्पकारी जैसे कार्यों में लगे रहते हैं।
इन तीन वर्गों का संयोजन और आपसी तालमेल ही न्याय का आधार बनता है। प्लेटो के अनुसार, जब समाज के प्रत्येक वर्ग अपने-अपने कार्यों का सही ढंग से पालन करते हैं और एक दूसरे के कार्यों में हस्तक्षेप नहीं करते, तब समाज में न्याय स्थापित होता है।
व्यक्तिगत स्तर पर, प्लेटो न्याय को आत्मा के तीन तत्वों — बुद्धि, भावना, और इच्छाओं — के सामंजस्य से जोड़ते हैं। उन्होंने कहा कि जब आत्मा के इन तीनों तत्वों में संतुलन होता है और व्यक्ति अपने ज्ञान (बुद्धि) के अनुसार जीवन जीता है, तब वह व्यक्ति न्यायपूर्ण होता है। बुद्धि आत्मा का सर्वोच्च तत्व है, जो व्यक्ति को सही और गलत का ज्ञान कराता है।
प्लेटो के न्याय सम्बन्धी विचार आदर्शवाद पर आधारित हैं। आलोचक कहते हैं कि यह एक यथार्थवादी दृष्टिकोण से दूरी बनाए रखता है, क्योंकि यह समाज की जटिलताओं को पूरी तरह से संबोधित नहीं करता। फिर भी, उनका न्याय सम्बन्धी सिद्धांत नैतिकता, राजनीति और दर्शनशास्त्र के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देता है।
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