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राज्य के नीति निर्देशक सिद्धान्तों की प्रकृति और महत्व का परीक्षण करें।

राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों (Directive Principles of State Policy) भारतीय संविधान के भाग IV में वर्णित हैं, जिनका उद्देश्य सरकार को ऐसे मार्गदर्शक सिद्धांत प्रदान करना है, जिनके आधार पर वह शासन का संचालन कर सके। ये सिद्धांत संविधान सभा द्वारा समाज के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्रों में व्यापक सुधार करने के लिए शामिल किए गए थे। हालांकि, ये न्यायिक रूप से बाध्यकारी नहीं हैं, लेकिन इनका महत्व देश की नीति निर्माण प्रक्रिया में अत्यधिक है।

राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों की प्रकृति

  1. न्यायिक रूप से बाध्यकारी न होना: नीति निर्देशक सिद्धांत न्यायालय में प्रवर्तनीय नहीं हैं, अर्थात् इनका उल्लंघन होने पर किसी व्यक्ति को सीधे अदालत में जाने का अधिकार नहीं है। यह अनुच्छेद 37 में स्पष्ट किया गया है, जिसमें कहा गया है कि ये सिद्धांत न्यायालयों द्वारा लागू नहीं किए जा सकते, लेकिन ये शासन के लिए मूलभूत होते हैं।
  2. सकारात्मक दिशा-निर्देश: ये सिद्धांत राज्य के लिए दिशा-निर्देश प्रदान करते हैं ताकि राज्य सामाजिक और आर्थिक न्याय को सुनिश्चित कर सके, नागरिकों के जीवन स्तर में सुधार कर सके और समाज में समानता और भाईचारे को बढ़ावा दे सके।
  3. गांधीवादी और समाजवादी विचारों का मिश्रण: नीति निर्देशक सिद्धांत गांधीवादी और समाजवादी विचारधाराओं से प्रेरित हैं। ये सिद्धांत आर्थिक समानता, कमजोर वर्गों की सुरक्षा, कुटीर उद्योगों का विकास, शराबबंदी और पर्यावरण संरक्षण जैसे मुद्दों को शामिल करते हैं।
  4. लक्ष्य-निर्धारित: इन सिद्धांतों का उद्देश्य भारत को एक कल्याणकारी राज्य में बदलना है, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को न्याय, समानता और स्वतंत्रता मिले। यह संविधान के प्रस्तावना में उल्लिखित उद्देश्यों से मेल खाता है, जैसे समाज में समानता और न्याय की स्थापना।
  5. राज्य की जिम्मेदारी: नीति निर्देशक सिद्धांत राज्य पर यह नैतिक जिम्मेदारी डालते हैं कि वह ऐसी नीतियाँ बनाए, जिनसे समाज के कमजोर और पिछड़े वर्गों को लाभ मिले, तथा सभी नागरिकों के लिए जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके।

राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों का महत्व

  1. कल्याणकारी राज्य की स्थापना: राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों का मुख्य उद्देश्य भारत को एक कल्याणकारी राज्य बनाना है। ये सिद्धांत सरकार को निर्देशित करते हैं कि वह सामाजिक और आर्थिक सुधारों के माध्यम से समाज में न्याय और समानता की स्थापना करे। सरकार शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, और सामाजिक सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में सुधार लाकर समाज के सभी वर्गों के कल्याण के लिए कार्य कर सकती है।
  2. सामाजिक और आर्थिक समानता: नीति निर्देशक सिद्धांतों का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य समाज में आर्थिक और सामाजिक असमानताओं को दूर करना है। अनुच्छेद 39(b) और 39(c) में राज्य को निर्देशित किया गया है कि वह संसाधनों के वितरण में समानता सुनिश्चित करे और धन के संकेंद्रण को रोके। इस प्रकार, ये सिद्धांत समाज में अधिक समानता लाने के लिए महत्वपूर्ण हैं।
  3. मौलिक अधिकारों का पूरक: राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत मौलिक अधिकारों का पूरक होते हैं। जहाँ मौलिक अधिकार नागरिकों को व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सुरक्षा प्रदान करते हैं, वहीं नीति निर्देशक सिद्धांत समाज में आर्थिक और सामाजिक सुधारों के माध्यम से नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने पर बल देते हैं। इस प्रकार, ये सिद्धांत एक संतुलित और समतामूलक समाज के निर्माण में मदद करते हैं।
  4. संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा: नीति निर्देशक सिद्धांत संविधान के "मूल ढांचे" का हिस्सा माने जाते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न फैसलों में स्पष्ट किया है कि सरकार को इन सिद्धांतों को लागू करने का प्रयास करना चाहिए। जैसे कि केशवानंद भारती केस (1973) में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि संविधान के मूल ढांचे में नीति निर्देशक सिद्धांत शामिल हैं, और इनका उल्लंघन संविधान की भावना के विपरीत है।
  5. संविधान संशोधनों का मार्गदर्शन: नीति निर्देशक सिद्धांत सरकार के लिए भविष्य की नीति निर्धारण की दिशा में मार्गदर्शन करते हैं। कई संविधान संशोधनों का आधार इन्हीं सिद्धांतों पर आधारित रहा है। उदाहरण के लिए, 42वें संविधान संशोधन (1976) के माध्यम से अनुच्छेद 39A जोड़ा गया, जिसमें राज्य को मुफ्त और निष्पक्ष न्याय उपलब्ध कराने का निर्देश दिया गया है। इसी प्रकार, 44वें संविधान संशोधन (1978) के माध्यम से संपत्ति का अधिकार मौलिक अधिकारों की सूची से हटाकर नीति निर्देशक सिद्धांतों में स्थानांतरित किया गया।
  6. राजनीतिक और सामाजिक जागरूकता: नीति निर्देशक सिद्धांतों ने नागरिकों में उनके अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूकता बढ़ाई है। सरकार को इन सिद्धांतों का पालन करने के लिए उत्तरदायी ठहराया जाता है, जिससे लोकतांत्रिक व्यवस्था में नागरिकों की भागीदारी सुनिश्चित होती है।
  7. सामाजिक न्याय का संवर्धन: नीति निर्देशक सिद्धांतों का उद्देश्य समाज के सभी वर्गों, विशेषकर कमजोर और पिछड़े वर्गों को न्याय और समान अवसर प्रदान करना है। यह सरकार को इस दिशा में ठोस कदम उठाने के लिए प्रेरित करता है, जैसे कि आरक्षण, भूमि सुधार, और महिला सशक्तिकरण की नीतियाँ।

निष्कर्ष

राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत भारतीय संविधान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, जो सरकार को एक कल्याणकारी राज्य की स्थापना और समाज में समानता और न्याय की स्थापना के लिए मार्गदर्शन करते हैं। यद्यपि ये न्यायिक रूप से बाध्यकारी नहीं हैं, लेकिन इनका नैतिक और राजनीतिक महत्व अत्यधिक है।

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