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भारतीय नागरिक को संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों की प्रकृति का परीक्षण कीजिए।

भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों का उद्देश्य नागरिकों को स्वतंत्रता, समानता, और न्याय की सुरक्षा प्रदान करना है। संविधान के भाग III में वर्णित ये मौलिक अधिकार भारतीय लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण स्तंभ हैं, जो नागरिकों को व्यक्तिगत स्वतंत्रता, सम्मान और समानता का अधिकार देते हैं। इन अधिकारों का उद्देश्य नागरिकों के जीवन को गरिमामय बनाना, और उन्हें समाज और राष्ट्र के विकास में सक्रिय भूमिका निभाने का अवसर प्रदान करना है।

मौलिक अधिकारों की प्रकृति

  1. सार्वभौमिकता और समानता: मौलिक अधिकार भारत के सभी नागरिकों को समान रूप से दिए गए हैं, चाहे उनकी जाति, धर्म, लिंग, भाषा, या अन्य किसी प्रकार की पहचान कुछ भी हो। यह संविधान के अनुच्छेद 14-18 में उल्लिखित समता के अधिकार से स्पष्ट होता है, जो कानून के समक्ष सभी नागरिकों को समानता और भेदभाव के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करता है।
  2. संविधान प्रदत्त सुरक्षा: मौलिक अधिकारों का स्रोत भारतीय संविधान है, और इन्हें संविधान द्वारा सुरक्षा दी गई है। न्यायपालिका इन अधिकारों की रक्षा करती है, और अगर किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है, तो वह अनुच्छेद 32 के तहत सीधे उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय में जा सकता है।
  3. न्यायिक प्रवर्तनीयता: मौलिक अधिकारों को लागू कराने का अधिकार संविधान ने नागरिकों को दिया है। अनुच्छेद 32 और 226 के तहत नागरिक न्यायालय में याचिका दायर करके अपने मौलिक अधिकारों की रक्षा कर सकते हैं। यह प्रवर्तन इन अधिकारों को और भी मजबूत बनाता है, क्योंकि न्यायपालिका के माध्यम से इनका उल्लंघन रोकने के लिए तत्पर कार्रवाई की जा सकती है।
  4. नकारात्मक और सकारात्मक अधिकार: मौलिक अधिकार न केवल नागरिकों को कुछ कार्य करने की स्वतंत्रता देते हैं, बल्कि सरकार और अन्य संस्थाओं को भी यह निर्देश देते हैं कि वे कुछ कार्य न करें। जैसे कि अनुच्छेद 21 नागरिकों को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार देता है, वहीं अनुच्छेद 15 भेदभाव को रोकने का निर्देश देता है।
  5. लचीले और व्यावहारिक अधिकार: मौलिक अधिकार पूरी तरह से स्थिर नहीं हैं। संविधान के अनुच्छेद 19-22 में उल्लिखित अधिकार, जैसे स्वतंत्रता का अधिकार, कुछ निश्चित परिस्थितियों में सरकार द्वारा सीमित किए जा सकते हैं। यह लचीलापन यह सुनिश्चित करता है कि मौलिक अधिकारों का दुरुपयोग न हो और सामाजिक शांति और सुरक्षा भी बनी रहे।
  6. संविधान के 'मूल ढांचे' का हिस्सा: मौलिक अधिकार भारतीय संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा माने जाते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने केशवानंद भारती केस (1973) में यह सिद्धांत दिया कि मौलिक अधिकारों को संविधान संशोधन द्वारा पूरी तरह से समाप्त नहीं किया जा सकता। यह अधिकारों की स्थायित्व और महत्व को दर्शाता है।
  7. स्वतंत्रता, समानता और न्याय की गारंटी: मौलिक अधिकार भारतीय नागरिकों को स्वतंत्रता, समानता, और न्याय की गारंटी प्रदान करते हैं। इनमें विचारों की स्वतंत्रता, धार्मिक स्वतंत्रता, और मौलिक रूप से व्यक्ति के जीवन और स्वतंत्रता की रक्षा शामिल है। उदाहरण के लिए, अनुच्छेद 19 नागरिकों को अभिव्यक्ति, संगठित होने और आवागमन की स्वतंत्रता प्रदान करता है, जो लोकतांत्रिक समाज की बुनियाद है।

मौलिक अधिकारों की प्रमुख श्रेणियाँ

  1. समता का अधिकार (अनुच्छेद 14-18): यह अधिकार सभी नागरिकों को कानून के समक्ष समानता और भेदभाव से सुरक्षा प्रदान करता है। इसमें अस्पृश्यता के उन्मूलन और जाति आधारित भेदभाव पर रोक का प्रावधान भी है।
  2. स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19-22): इसमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, आंदोलन और निवास की स्वतंत्रता, और व्यक्तिगत सुरक्षा के अधिकार शामिल हैं। ये अधिकार नागरिकों को अपने जीवन में स्वायत्तता और स्वतंत्रता प्रदान करते हैं।
  3. शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23-24): यह अधिकार बंधुआ मजदूरी, मानव तस्करी और बच्चों के शोषण के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करता है। इसका उद्देश्य नागरिकों को शोषणमुक्त समाज प्रदान करना है।
  4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25-28): यह नागरिकों को अपनी पसंद का धर्म मानने, उसका प्रचार करने और पालन करने की स्वतंत्रता देता है। यह अधिकार भारत की धार्मिक विविधता और सहिष्णुता को सुदृढ़ बनाता है।
  5. संस्कृति और शिक्षा का अधिकार (अनुच्छेद 29-30): यह अल्पसंख्यक समुदायों को अपनी संस्कृति, भाषा और शिक्षा की सुरक्षा का अधिकार देता है। यह अधिकार सामाजिक और सांस्कृतिक विविधता की रक्षा करता है।
  6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32): यदि किसी व्यक्ति का मौलिक अधिकार उल्लंघित होता है, तो वह सुप्रीम कोर्ट या उच्च न्यायालय में संविधान के अनुच्छेद 32 या 226 के तहत रिट याचिका दायर कर सकता है। इसे मौलिक अधिकारों की रक्षा का प्रमुख साधन माना जाता है।

मौलिक अधिकारों का महत्व

  1. व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा: मौलिक अधिकार नागरिकों को व्यक्तिगत स्वतंत्रता, समानता और न्याय की सुरक्षा प्रदान करते हैं, जिससे वे सम्मानपूर्वक जीवन जी सकें।
  2. लोकतंत्र की स्थिरता: मौलिक अधिकारों के कारण भारतीय लोकतंत्र मजबूत हुआ है। ये अधिकार नागरिकों को सरकार के खिलाफ आवाज उठाने का अधिकार देते हैं और उनकी गरिमा की रक्षा करते हैं।
  3. समानता और गैर-भेदभाव: मौलिक अधिकार यह सुनिश्चित करते हैं कि समाज में जाति, धर्म, लिंग या वर्ग के आधार पर कोई भेदभाव न हो। यह सामाजिक न्याय और समानता की दिशा में एक बड़ा कदम है।

निष्कर्ष

भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों की प्रकृति अत्यधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि ये नागरिकों के लिए सुरक्षा का एक मजबूत आधार प्रदान करते हैं। ये अधिकार केवल कानूनी संरचना का हिस्सा नहीं हैं, बल्कि समाज में न्याय, स्वतंत्रता और समानता की भावना को भी सुदृढ़ करते हैं।

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