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हिन्दी भाषा के स्वरूप एवं विकास पर लेख लिखिए ?

हिन्दी भाषा के स्वरूप एवं विकास पर लेख

हिन्दी भाषा भारत की एक प्रमुख और प्राचीन भाषा है, जो भारतीय उपमहाद्वीप के विभिन्न क्षेत्रों में बोली जाती है। यह भाषा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 के तहत भारत संघ की राजभाषा है। हिन्दी का रूप समय के साथ विकसित हुआ है और यह भारतीय समाज, संस्कृति और इतिहास का अभिन्न हिस्सा बन चुकी है। हिन्दी भाषा का इतिहास अत्यधिक समृद्ध है, और इसे विभिन्न कालखंडों में विविध प्रभावों ने आकार दिया। आइए, हिन्दी भाषा के स्वरूप और विकास पर विस्तार से विचार करें।

हिन्दी भाषा का स्वरूप

हिन्दी एक इंडो-आर्यन भाषा है, जो भारतीय उपमहाद्वीप की भाषाओं में प्रमुख रूप से बोली जाती है। इसे देवनागरी लिपि में लिखा जाता है और इसके शब्दकोश में संस्कृत, उर्दू, फारसी, अंग्रेजी, और अन्य भाषाओं से शब्द सम्मिलित हैं। हिन्दी का शब्दविधान सरल और सहज है, जो इसे आम आदमी की समझ के लिए अधिक उपयुक्त बनाता है। इसका व्याकरण भी अन्य भारतीय भाषाओं की तरह सरल और लचीला है, जिससे यह भाषा समाज के विभिन्न वर्गों में व्यापक रूप से प्रचलित हो सकी है।

हिन्दी का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह एक संवादात्मक और अभिव्यक्तिक भाषा है, जो केवल शहरी क्षेत्रों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह ग्रामीण क्षेत्रों में भी अपनी जड़ें जमा चुकी है। हिन्दी में विविध बोलियाँ और उपभाषाएँ हैं, जैसे कि अवधी, भोजपुरी, मैथिली, राजस्थानी आदि, जो क्षेत्रीय विविधताओं को दर्शाती हैं।

हिन्दी का विकास

हिन्दी भाषा का विकास विभिन्न ऐतिहासिक प्रक्रियाओं के परिणामस्वरूप हुआ। इसकी उत्पत्ति संस्कृत से मानी जाती है, लेकिन इसके स्वरूप में विभिन्न भाषाओं के प्रभावों ने इसे विविधता दी। हिन्दुस्तानी या खड़ी बोली, जो हिन्दी की आधुनिक रूप है, इसका उदय मध्यकाल में हुआ। इस समय अरबी, फारसी, और तुर्की शब्दों ने हिन्दी में प्रवेश किया। विशेष रूप से दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में बोली जाने वाली खड़ी बोली हिन्दी के रूप में विकसित हुई।

प्रारंभिक विकास (संस्कृत से प्राकृत तक)

हिन्दी भाषा का विकास संस्कृत से हुआ है। संस्कृत के अत्यधिक उपयोग के बाद प्राकृत भाषाएँ अस्तित्व में आईं। इन प्राकृत भाषाओं से अपभ्रंश की उत्पत्ति हुई, जो हिन्दी भाषा के विकास की प्रारंभिक कड़ी थीं। मध्यकाल में, मुस्लिम शासकों के आगमन के साथ फारसी और तुर्की शब्दों ने हिन्दी में अपनी जगह बनाई, जिससे एक मिश्रित रूप खड़ी बोली का उत्पन्न हुआ।

मध्यकालीन हिन्दी का स्वरूप

मध्यकाल में हिन्दी भाषा पर फारसी और अरबी का प्रभाव अधिक था, विशेष रूप से मुग़ल साम्राज्य के दौरान। इस समय के दौरान, हिन्दी साहित्य में 'भक्ति' और 'सूफी' कविता का भी महत्वपूर्ण योगदान हुआ। कवि सूरदास, तुलसीदास और कबीर ने हिन्दी साहित्य में अपनी महत्वपूर्ण छाप छोड़ी। इस समय हिन्दी भाषा ने अपनी स्वतंत्र पहचान बनाई, जिसमें संस्कृत के शब्दों के साथ-साथ फारसी और अरबी शब्दों का मिश्रण था।

आधुनिक हिन्दी का उदय

18वीं और 19वीं सदी के दौरान, अंग्रेजी शासन के प्रभाव से हिन्दी का रूप और अधिक विकसित हुआ। उर्दू साहित्य, जो हिन्दी और फारसी का मिश्रण था, ने भी हिन्दी के स्वरूप को प्रभावित किया। 19वीं सदी के उत्तरार्ध में हिन्दी पत्रकारिता का विकास हुआ, और हिन्दी पत्रकारों ने साहित्यिक और सामाजिक मुद्दों पर लेखन शुरू किया। इस समय में हिन्दी ने अपनी शुद्धता को बनाए रखते हुए संस्कृत के शब्दों को पुनः अपनाया, जिसे हम "शुद्ध हिन्दी" के रूप में पहचानते हैं।

स्वतंत्रता संग्राम और हिन्दी का उत्थान

भारत में हिन्दी की भूमिका स्वतंत्रता संग्राम के दौरान और भी महत्वपूर्ण हो गई। महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और अन्य स्वतंत्रता सेनानियों ने हिन्दी को भारतीय एकता और संस्कृति का प्रतीक माना। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हिन्दी को भारतीय जनमानस के बीच एकजुटता का प्रतीक माना गया। इसके साथ ही, हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए अखबारों और साहित्यिक कार्यों का उपयोग बढ़ा।

संविधान में स्थान और आधुनिक हिन्दी

भारत के संविधान में हिन्दी को राजभाषा के रूप में स्वीकार किया गया, और इसे भारतीय संघ की कार्यकारी भाषा के रूप में नियुक्त किया गया। 1950 में हिन्दी को संघीय सरकार की मुख्य भाषा के रूप में स्थापित किया गया, और इसके बाद से हिन्दी भाषा के विकास में तेजी आई। इसके साथ-साथ विभिन्न हिन्दी साहित्य अकादमियों और संस्थाओं ने हिन्दी साहित्य और संस्कृति के प्रचार-प्रसार के लिए काम किया।

आज के समय में हिन्दी का स्वरूप और भी आधुनिक हो गया है। इसे एक ग्लोबल भाषा के रूप में देखा जा सकता है, विशेष रूप से भारतीय प्रवासी समुदाय के कारण। हिन्दी के टेलीविजन चैनल, फिल्म उद्योग (बॉलीवुड), और सोशल मीडिया पर हिन्दी का प्रसार निरंतर बढ़ रहा है। हिन्दी फिल्मों और धारावाहिकों का वैश्विक प्रभाव भी बढ़ चुका है।

निष्कर्ष

हिन्दी भाषा का विकास और उसका स्वरूप भारतीय समाज की विविधता और समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को दर्शाता है। हिन्दी, जो कभी क्षेत्रीय भाषा थी, आज राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना चुकी है। इसके विकास में विभिन्न ऐतिहासिक और सामाजिक प्रक्रियाओं का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। आने वाले समय में हिन्दी भाषा का प्रभाव और अधिक बढ़ेगा, और यह एक सशक्त भाषा के रूप में अपने आप को स्थापित करेगी।

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