राजभाषा के रूप में हिन्दी के संवैधानिक विकास
हिन्दी का संवैधानिक विकास भारत की राजभाषा के रूप में महत्वपूर्ण है, जिसमें इसे एक अधिकारिक और सांस्कृतिक पहचान दी गई है। यह विकास स्वतंत्रता के समय से प्रारंभ होकर वर्तमान समय तक की यात्रा को दर्शाता है।
1. संविधान की भूमिका
भारत का संविधान, जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ, हिन्दी को राजभाषा के रूप में मान्यता देता है। संविधान के अनुच्छेद 343 के अनुसार, "संघ की राजभाषा हिन्दी होगी," जबकि अंग्रेजी को एक वैकल्पिक भाषा के रूप में स्वीकार किया गया। यह निर्णय हिन्दी भाषी राज्यों के लोगों की एकजुटता और राष्ट्रीय पहचान को मजबूत करने के उद्देश्य से लिया गया।
2. राजभाषा अधिनियम, 1963
हिन्दी को राजभाषा का दर्जा देने के बाद, 1963 में राजभाषा अधिनियम बनाया गया, जिसमें हिन्दी और अंग्रेजी दोनों का प्रयोग सरकारी कामकाज में किया जाने लगा। इस अधिनियम ने राजभाषा के प्रयोग को प्रणालीबद्ध किया और इसकी उपयोगिता को बढ़ाने के लिए विभिन्न उपाय किए।
3. राजभाषा आयोग की स्थापना
1976 में राजभाषा आयोग की स्थापना की गई, जिसका उद्देश्य हिन्दी के प्रचार-प्रसार और उसके उपयोग को बढ़ावा देना था। आयोग ने सुझाव दिया कि सरकारी कार्यालयों में हिन्दी का प्रयोग बढ़ाया जाए और इसे अधिकाधिक क्षेत्रों में लागू किया जाए।
4. अनुसूचित भाषाएँ
संविधान की आठवीं अनुसूची में हिन्दी सहित 21 अन्य भाषाओं को शामिल किया गया, जो विभिन्न भाषाई समूहों के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करता है। यह उपाय विभिन्न सांस्कृतिक और भाषाई विविधताओं को सम्मान देने के लिए आवश्यक था।
निष्कर्ष
राजभाषा के रूप में हिन्दी का संवैधानिक विकास एक महत्त्वपूर्ण कदम था, जिसने न केवल हिन्दी भाषी लोगों के लिए अधिकारों की सुनिश्चितता की, बल्कि भारत की बहुभाषी और बहुसांस्कृतिक पहचान को भी मजबूती दी। यह हिन्दी के विकास और संरक्षण में एक महत्वपूर्ण आधार प्रदान करता है, जिससे यह भाषा आज भी सक्रिय और प्रासंगिक बनी हुई है।
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