मानक हिन्दी के शब्द भंडार का संक्षिप्त परिचय
मानक हिन्दी, जो भारत की राजभाषा है, एक समृद्ध और विविधता से भरी भाषा है। इसका शब्द भंडार विभिन्न स्रोतों से उत्पन्न हुआ है, जिसमें संस्कृत, प्राकृत, उर्दू, फारसी, अंग्रेजी और क्षेत्रीय भाषाओं का योगदान शामिल है।
1. संस्कृत का योगदान
संस्कृत मानक हिन्दी का सबसे बड़ा स्रोत है। इसमें अनेक शब्द संस्कृत से लिए गए हैं, जो व्याकरणिक संरचना, विज्ञान, दर्शन, और धार्मिक साहित्य में उपयोग होते हैं। जैसे कि 'ज्ञान', 'विज्ञान', 'शिक्षा' आदि।
2. प्राकृत का योगदान
प्राकृत भाषाएँ भी मानक हिन्दी के विकास में महत्वपूर्ण रही हैं। इन भाषाओं के अनेक शब्द, विशेषकर लोक भाषा में, आज भी प्रयोग में हैं। उदाहरण के लिए, 'भाई', 'बहन', और 'बचपन' जैसे शब्द।
3. उर्दू और फारसी का योगदान
उर्दू और फारसी ने मानक हिन्दी के शब्द भंडार को समृद्ध बनाया है, विशेषकर साहित्य, संस्कृति और प्रशासन के क्षेत्रों में। 'तलाश', 'शौक', और 'जुनून' जैसे शब्द हिन्दी में सामान्यतः प्रयोग होते हैं।
4. अंग्रेजी का योगदान
अंग्रेजी का प्रभाव भी मानक हिन्दी पर पड़ा है, खासकर आधुनिक युग में। तकनीकी, विज्ञान, और व्यवसायिक शब्दावली में अनेक अंग्रेजी शब्दों का समावेश हुआ है, जैसे 'कंप्यूटर', 'इंटरनेट', 'मशीन' आदि।
5. क्षेत्रीय भाषाओं का योगदान
भारत की क्षेत्रीय भाषाओं, जैसे कि पंजाबी, बंगाली, और मराठी ने भी मानक हिन्दी के शब्द भंडार में योगदान किया है। स्थानीय शब्द और अभिव्यक्तियाँ मानक हिन्दी को और अधिक समृद्ध और विविध बनाती हैं।
निष्कर्ष
मानक हिन्दी का शब्द भंडार विविध स्रोतों से बना है, जो इसे एक समृद्ध और बहुआयामी भाषा बनाता है। इसके शब्दों की विविधता न केवल इसकी सांस्कृतिक समृद्धि को दर्शाती है, बल्कि यह इसके उपयोगकर्ताओं के लिए भी संवाद और अभिव्यक्ति के अनेक अवसर प्रदान करती है।
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