मोहम्मद बिन तुगलक का शासनकाल उसकी प्रशासनिक योजनाओं और सुधारों के लिए जाना जाता है। वह एक बुद्धिमान और सृजनशील शासक था, जिसने कई नई नीतियों को लागू किया, लेकिन कई बार ये योजनाएँ अत्यधिक महत्वाकांक्षी और अव्यावहारिक सिद्ध हुईं। उसके शासनकाल में अपनाई गई प्रमुख प्रशासनिक योजनाएँ इस प्रकार थीं:
1. राजधानी स्थानांतरण
मोहम्मद बिन तुगलक ने अपनी राजधानी को दिल्ली से दक्षिण भारत के दौलताबाद (देवगिरि) स्थानांतरित करने का निर्णय लिया। उसका उद्देश्य दक्षिण भारत पर मजबूत नियंत्रण स्थापित करना और मंगोल आक्रमणों से दिल्ली को सुरक्षित रखना था। हालांकि, इस योजना को कार्यान्वित करना कठिन था। राजधानी स्थानांतरण से प्रजा और प्रशासन पर भारी आर्थिक बोझ पड़ा और लोगों को लंबी दूरी की यात्रा करनी पड़ी, जिससे वे असंतुष्ट हो गए। अंततः यह योजना असफल रही, और उसे राजधानी वापस दिल्ली लानी पड़ी।
2. सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन
मोहम्मद बिन तुगलक ने अपनी आर्थिक नीतियों को सुधारने के लिए तांबे के सिक्कों को चलन में लाने का निर्णय लिया, ताकि अधिक सोने और चांदी के सिक्के बनाने की आवश्यकता न पड़े। इन तांबे के सिक्कों को सोने और चांदी के सिक्कों के समान मूल्य दिया गया। लेकिन इस नीति में कमजोर नियंत्रण और जाली सिक्कों का प्रसार हो गया। जनता ने भी तांबे के नकली सिक्कों का निर्माण शुरू कर दिया, जिससे सल्तनत की अर्थव्यवस्था कमजोर हो गई और यह योजना असफल हो गई।
3. दोआब में भारी कर वृद्धि
उत्तर भारत के दोआब क्षेत्र (गंगा-यमुना का उपजाऊ क्षेत्र) में करों में अत्यधिक वृद्धि कर दी गई। इसका उद्देश्य राज्य की आय को बढ़ाना था। लेकिन इस क्षेत्र में अचानक से अकाल पड़ गया, जिससे किसान पहले ही परेशान थे। कर वृद्धि से किसानों की स्थिति और खराब हो गई, और उन्हें विद्रोह करने पर मजबूर होना पड़ा। इस योजना की विफलता ने जनता में असंतोष फैलाया और सल्तनत की स्थिति को कमजोर किया।
4. खुरासान और कराचिल अभियान
मोहम्मद बिन तुगलक ने खुरासान और कराचिल (हिमालय क्षेत्र) पर विजय प्राप्त करने के लिए सैन्य अभियान शुरू किए। लेकिन ये दोनों अभियान अव्यवहारिक और अत्यधिक खर्चीले थे। सैन्य अभियानों की कठिनाइयों और आर्थिक व्यय के कारण ये प्रयास असफल रहे और सल्तनत पर आर्थिक बोझ बढ़ गया।
निष्कर्ष
मोहम्मद बिन तुगलक की प्रशासनिक योजनाएँ उसकी दूरदर्शिता और नवाचारी दृष्टिकोण को दर्शाती हैं, लेकिन इनमें से कई योजनाएँ अव्यवहारिक सिद्ध हुईं। उसकी योजनाओं की असफलता के कारण सल्तनत पर आर्थिक और सामाजिक संकट गहराया, जिससे उसके शासनकाल में विद्रोह और अस्थिरता उत्पन्न हुई।
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