हिंदी में संस्मरण लेखन की परंपरा बीसवीं सदी के आरंभ में प्रारंभ हुई, जब साहित्यिक विधाओं में विविधता और प्रयोगशीलता को बढ़ावा मिला। हिंदी साहित्य के प्रारंभिक काल में साहित्यिक लेखन मुख्यतः धार्मिक, पौराणिक और कवितामूलक था, लेकिन आधुनिक काल में जब गद्य विधाओं का विकास हुआ, तब साहित्यकारों ने संस्मरण जैसी आत्मकथात्मक विधाओं में भी रुचि दिखानी शुरू की। संस्मरण लेखन की यह विधा व्यक्ति के निजी अनुभवों और जीवन की स्मृतियों को रोचक और सजीव ढंग से प्रस्तुत करने का माध्यम बनी। इसने न केवल व्यक्तियों के निजी जीवन को सामने रखा, बल्कि उस समय के सामाजिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक परिस्थितियों को भी उजागर किया।
प्रमुख प्रारंभिक लेखक
- रामचंद्र शुक्ल: हिंदी में संस्मरण लेखन के आरंभिक काल में आचार्य रामचंद्र शुक्ल का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। उनकी कृति "हिंदी साहित्य का इतिहास" एक ऐतिहासिक ग्रंथ होने के साथ-साथ संस्मरणात्मक शैली में भी लिखी गई है, जिसमें उन्होंने हिंदी साहित्यकारों के जीवन और उनके योगदान का रोचक विवरण प्रस्तुत किया है। शुक्ल जी ने अपने संस्मरणों के माध्यम से साहित्यिक आलोचना को एक नए दृष्टिकोण से देखने का प्रयास किया।
- महादेवी वर्मा: हिंदी में संस्मरण लेखन की प्रमुख हस्तियों में महादेवी वर्मा का नाम भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। उनकी कृति "स्मृति की रेखाएँ" हिंदी में संस्मरण लेखन की एक उत्कृष्ट रचना मानी जाती है। इसमें उन्होंने अपने जीवन के कुछ विशेष क्षणों, व्यक्तियों, और उनके साथ अपने संबंधों को बेहद संवेदनशीलता और सजीवता के साथ प्रस्तुत किया है।
- हजारी प्रसाद द्विवेदी: आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने भी अपने संस्मरणों में साहित्य और समाज के विभिन्न पहलुओं को उजागर किया। उनकी रचनाओं में गहन दार्शनिकता और समाज के प्रति संवेदनशील दृष्टिकोण देखने को मिलता है।
इस प्रकार, हिंदी में संस्मरण लेखन की शुरुआत बीसवीं सदी के आरंभ में हुई और इसे आगे बढ़ाने में रामचंद्र शुक्ल, महादेवी वर्मा, और हजारी प्रसाद द्विवेदी जैसे लेखकों ने प्रमुख भूमिका निभाई। इन लेखकों के संस्मरण न केवल साहित्यिक धरोहर हैं, बल्कि हिंदी समाज और संस्कृति की एक झलक भी प्रस्तुत करते हैं।
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