राष्ट्रवादी इतिहास लेखन का अभिप्राय उस ऐतिहासिक दृष्टिकोण से है, जिसमें इतिहास को एक राष्ट्र के विकास, संस्कृति, और पहचान के संदर्भ में समझा जाता है। यह दृष्टिकोण मुख्यतः 19वीं और 20वीं शताब्दी में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उभरा, जब भारतीय इतिहासकारों ने अपने देश के इतिहास को एक नई दृष्टि से पुनः लिखने का प्रयास किया। इसमें, हम राष्ट्रवादी इतिहास लेखन के उद्देश्य, प्रमुख विचारधाराएँ, योगदानकर्ता, और इसके प्रभावों पर चर्चा करेंगे।
1. राष्ट्रवादी इतिहास लेखन का उद्देश्य
राष्ट्रवादी इतिहास लेखन का मुख्य उद्देश्य भारतीय जनता में राष्ट्रीय चेतना का विकास करना था। यह भारतीय संस्कृति, परंपराओं, और ऐतिहासिक घटनाओं को एक नई पहचान देने का प्रयास था, जिससे भारतीयों को अपने इतिहास पर गर्व हो सके। यह औपनिवेशिक दृष्टिकोण के खिलाफ एक प्रतिरोध भी था, जिसने भारतीय इतिहास को एक विकृत रूप में प्रस्तुत किया। राष्ट्रवादी इतिहासकारों ने यह प्रयास किया कि वे भारतीय संस्कृति और इतिहास की महानता को उजागर करें और इस प्रकार एक नया राष्ट्रीय आत्म-सम्मान विकसित करें।
2. औपनिवेशिक दृष्टिकोण की आलोचना
औपनिवेशिक इतिहास लेखन में भारतीय इतिहास को अक्सर नीचे दिखाया गया था, और इसे विदेशी दृष्टिकोण से व्याख्यायित किया गया था। राष्ट्रवादी इतिहासकारों ने इस दृष्टिकोण की आलोचना की और यह स्थापित किया कि भारतीय इतिहास को एक स्वतंत्रता की दृष्टि से समझा जाना चाहिए। उन्होंने यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया कि भारतीयों के अनुभव, संघर्ष, और संस्कृति को सही रूप में प्रस्तुत किया जाए।
3. प्रमुख विचारधाराएँ
राष्ट्रवादी इतिहास लेखन में कई विचारधाराएँ शामिल हैं, जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:
- सांस्कृतिक पुनरुद्धार: इस धारणा के अनुसार, भारतीय संस्कृति की महानता और उसकी विविधता को पुनर्जीवित करना आवश्यक था। इतिहासकारों ने भारतीय कला, साहित्य, धर्म, और परंपराओं की समृद्धि को उजागर किया।
- राजनीतिक स्वतंत्रता: यह धारणा इतिहास को राजनीतिक स्वतंत्रता के संदर्भ में समझने पर जोर देती है। राष्ट्रवादी इतिहासकारों ने स्वतंत्रता संग्राम के नेताओं, उनके संघर्षों और उनके योगदान को महत्व दिया।
- सामाजिक न्याय: कई राष्ट्रवादी इतिहासकारों ने सामाजिक सुधारों और आंदोलनों को भी महत्वपूर्ण माना। उन्होंने जातिवाद, स्त्री-शिक्षा, और सामाजिक समानता जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया।
4. प्रमुख योगदानकर्ता
भारत में राष्ट्रवादी इतिहास लेखन में कई प्रमुख व्यक्तित्व शामिल हैं, जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:
- रामकृष्ण गोपाल भण्डारकर: उन्होंने भारतीय संस्कृति और इतिहास के वैज्ञानिक अध्ययन पर जोर दिया और औपनिवेशिक दृष्टिकोण की आलोचना की।
- जियाउद्दीन बरनी: उनके कार्यों में दिल्ली सल्तनत के इतिहास का गहन अध्ययन किया गया, जिसमें उन्होंने सामाजिक और राजनीतिक विचारों को उजागर किया।
- आर. सी. मजूमदार: उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और उसके पूर्व की घटनाओं का विश्लेषण किया, जिससे भारतीय राजनीति और समाज के विकास की स्पष्ट तस्वीर प्रस्तुत की गई।
- कुमारस्वामी कर्नाटका: उन्होंने भारतीय कला और संस्कृति पर केंद्रित कई कार्य किए, जिनमें उन्होंने भारतीय कलात्मकता की विशेषताओं को उजागर किया।
5. राष्ट्रवादी इतिहास लेखन की विशेषताएँ
राष्ट्रवादी इतिहास लेखन की कुछ प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
- विविधता और समावेशिता: यह दृष्टिकोण विभिन्न सांस्कृतिक, धार्मिक, और सामाजिक समूहों के इतिहास को समाहित करता है।
- विज्ञानात्मक दृष्टिकोण: राष्ट्रवादी इतिहासकारों ने ऐतिहासिक स्रोतों का वैज्ञानिक और वस्तुनिष्ठ रूप से अध्ययन किया।
- गर्व और पहचान: यह लेखन भारतीयों में गर्व और अपनी सांस्कृतिक पहचान के प्रति जागरूकता बढ़ाने का प्रयास करता है।
6. राष्ट्रवादी इतिहास लेखन का प्रभाव
राष्ट्रवादी इतिहास लेखन का प्रभाव समाज में व्यापक था:
- राष्ट्रीय एकता: इस लेखन ने भारतीय जनता में एकता और सामूहिक पहचान का विकास किया, जिससे स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा मिली।
- शिक्षा और जागरूकता: इतिहास को विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में एक नए संदर्भ में पढ़ाया जाने लगा, जिससे युवाओं में राष्ट्रीय चेतना विकसित हुई।
- सामाजिक आंदोलन: राष्ट्रवादी इतिहास लेखन ने कई सामाजिक आंदोलनों को प्रेरित किया, जैसे कि स्वदेशी आंदोलन, महिला शिक्षा, और जाति उन्मूलन आंदोलन।
निष्कर्ष
कुल मिलाकर, राष्ट्रवादी इतिहास लेखन ने भारतीय समाज में एक नई चेतना का संचार किया। इसने भारतीयों को अपने इतिहास की महानता और संस्कृति का गर्व अनुभव कराया और स्वतंत्रता संग्राम को एक सशक्त आधार प्रदान किया। यह न केवल इतिहास लेखन का एक महत्वपूर्ण मोड़ था, बल्कि यह एक राष्ट्रीय पहचान की खोज का भी हिस्सा था, जिसने भारत को स्वतंत्रता की ओर अग्रसर किया। इस प्रकार, राष्ट्रवादी इतिहास लेखन का योगदान भारतीय संस्कृति और पहचान के पुनर्निर्माण में अद्वितीय है।
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