हार्मिक मनोविज्ञान या मानवीय मनोविज्ञान (Humanistic Psychology) 20वीं सदी के मध्य में उभरने वाली एक प्रमुख मनोवैज्ञानिक विचारधारा है। इसका मुख्य उद्देश्य मानव जीवन के गुणात्मक पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करना और मानवीय मूल्यों, संभावनाओं, और आत्म-विकास को समझना है। हार्मिक मनोविज्ञान का प्रमुख योगदान यह है कि यह व्यक्ति की आंतरिक शक्ति और आत्म-साक्षात्कार पर ध्यान केंद्रित करता है, न कि केवल बाहरी व्यवहार पर।
क) मानव की मौलिक अच्छाई पर विश्वास: हार्मिक मनोविज्ञान का मानना है कि हर व्यक्ति स्वभावतः अच्छा और नैतिक होता है, और उसमें आत्म-विकास की अपार संभावनाएँ होती हैं। यह दृष्टिकोण इस बात पर जोर देता है कि व्यक्तियों को उचित माहौल और संसाधन दिए जाने चाहिए ताकि वे अपनी पूर्ण क्षमता तक पहुँच सकें।
ख) आत्म-साक्षात्कार (Self-Actualization): अब्राहम मास्लो का आत्म-साक्षात्कार का सिद्धांत हार्मिक मनोविज्ञान का एक प्रमुख पहलू है। मास्लो के अनुसार, हर व्यक्ति का अंतिम उद्देश्य आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करना होता है, यानी कि वह अपनी क्षमता के सर्वोच्च स्तर तक पहुंचने की इच्छा रखता है।
ग) संपूर्ण व्यक्ति पर ध्यान केंद्रित: हार्मिक मनोविज्ञान यह मानता है कि व्यक्ति का विकास केवल मानसिक या शारीरिक नहीं होता, बल्कि इसमें भावनात्मक, सामाजिक, और आध्यात्मिक पहलू भी शामिल होते हैं। शिक्षा के संदर्भ में, यह दृष्टिकोण शिक्षकों को यह सुझाव देता है कि वे बच्चों को केवल ज्ञान देने के बजाय उनके संपूर्ण विकास पर ध्यान दें।
घ) सकारात्मक दृष्टिकोण: हार्मिक मनोविज्ञान बच्चों की गलतियों या असफलताओं पर ध्यान देने के बजाय उनके सकारात्मक गुणों और क्षमताओं पर ध्यान केंद्रित करता है। इसका उद्देश्य यह है कि छात्रों को प्रेरित किया जाए ताकि वे अपनी कमियों से न डरें और आत्म-साक्षात्कार की दिशा में आगे बढ़ें।
ङ) शिक्षा में हार्मिक मनोविज्ञान का योगदान: शिक्षा में, हार्मिक मनोविज्ञान शिक्षकों को यह सुझाव देता है कि वे बच्चों के आत्मसम्मान और आत्मविश्वास को बढ़ाने के लिए प्रेरित करें। इसका मुख्य उद्देश्य यह है कि बच्चों में सीखने के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित हो, ताकि वे अपनी क्षमताओं का पूरी तरह से उपयोग कर सकें।
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