राजा राम मोहन राय के धार्मिक विचार
राजा राम मोहन राय (1772-1833) एक महान सुधारक, विचारक और धार्मिक नेता थे। वे भारतीय समाज में सुधार लाने के लिए समर्पित थे और उनके धार्मिक विचारों ने समाज को जागरूक करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
एकेश्वरवाद
राजा राम मोहन राय ने एकेश्वरवाद (Monotheism) का प्रचार किया। उन्होंने यह विश्वास किया कि सभी धर्मों का मूल एक ही ईश्वर है। उन्होंने हिंदू धर्म में व्याप्त अंधविश्वास और मूर्तिपूजा के खिलाफ आवाज उठाई और एक ईश्वर की पूजा की आवश्यकता पर जोर दिया।
धार्मिक सहिष्णुता
राजा राम मोहन राय ने सभी धर्मों के प्रति सहिष्णुता की भावना को बढ़ावा दिया। उन्होंने विभिन्न धर्मों के बीच संवाद को महत्व दिया और कहा कि सभी धर्मों का उद्देश्य मानवता की भलाई है।
सामाजिक सुधार
उनके धार्मिक विचारों में सामाजिक सुधार की भावना भी शामिल थी। उन्होंने सती प्रथा, जातिवाद, और महिलाओं की शिक्षा के खिलाफ सक्रिय रूप से आवाज उठाई। उन्होंने कहा कि धर्म का उद्देश्य मानवता की सेवा करना है, न कि भेदभाव और अत्याचार फैलाना।
ब्रह्म समाज की स्थापना
राजा राम मोहन राय ने 1828 में "ब्रह्म समाज" की स्थापना की, जिसका उद्देश्य धार्मिक सुधार लाना था। ब्रह्म समाज ने अंधविश्वास, जातिवाद, और मूर्तिपूजा के खिलाफ संघर्ष किया और भारतीय संस्कृति की गरिमा को बनाए रखने का प्रयास किया।
निष्कर्ष
राजा राम मोहन राय के धार्मिक विचारों ने भारतीय समाज में एक नई चेतना का संचार किया। उनके विचारों ने न केवल धार्मिक सुधार की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया, बल्कि उन्होंने सामाजिक बदलाव के लिए भी प्रेरित किया। उनके कार्यों ने आधुनिक भारत के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
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