भारत में आधुनिक शिक्षा की पहल 19वीं शताब्दी के मध्य में शुरू हुई, जो औपनिवेशिक शासन के दौरान भारतीय समाज में महत्वपूर्ण परिवर्तन लाने का कार्य कर रही थी। इस समय के दौरान, अंग्रेजी शासन ने शिक्षा के क्षेत्र में कई सुधारों की शुरुआत की, जिससे भारतीय समाज में जागरूकता और ज्ञान का संचार हुआ।
प्रारंभिक शिक्षा
1835 में, अंग्रेजी सरकार ने भारतीय शिक्षा प्रणाली में सुधार लाने का प्रयास किया। हंटर आयोग (1882) की सिफारिशों ने शिक्षा के क्षेत्र में सुधार को प्रोत्साहित किया और इसके तहत प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य और मुफ्त बनाने का प्रयास किया गया।
मिशनरी और सामाजिक सुधारक
मिशनरी स्कूलों की स्थापना ने भी भारतीय समाज में शिक्षा के स्तर को बढ़ाने में मदद की। शिक्षा के क्षेत्र में कई सामाजिक सुधारक भी सामने आए, जिनमें राजा राम मोहन राय, विद्यासागर, और गोपाल कृष्ण गोखले शामिल हैं।
- राजा राम मोहन राय ने महिलाओं की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए कई प्रयास किए और उन्होंने स्कूलों की स्थापना की।
- विद्यासागर ने न केवल महिला शिक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ाई, बल्कि उन्होंने बाल विवाह के खिलाफ भी आवाज उठाई।
विश्वविद्यालयों की स्थापना
1857 में, विश्वविद्यालयों की स्थापना ने उच्च शिक्षा में एक नया आयाम जोड़ा। कलकत्ता विश्वविद्यालय, मुंबई विश्वविद्यालय, और मद्रास विश्वविद्यालय जैसी संस्थाओं ने भारतीय छात्रों को आधुनिक शिक्षा के साथ-साथ पश्चिमी विचारों से भी अवगत कराया।
स्वतंत्रता संग्राम का प्रभाव
20वीं शताब्दी में, महात्मा गांधी और अन्य स्वतंत्रता सेनानियों ने शिक्षा के महत्व को समझा और इसे स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना। उन्होंने कहा कि शिक्षा केवल ज्ञान का साधन नहीं है, बल्कि यह आत्मनिर्भरता और सामाजिक सुधार का भी माध्यम है।
निष्कर्ष
भारत में आधुनिक शिक्षा की पहल ने न केवल ज्ञान का प्रसार किया, बल्कि भारतीय समाज में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक जागरूकता भी बढ़ाई। इसने भारतीयों को आत्म-सम्मान और आत्म-निर्णय की भावना प्रदान की, जो आगे चलकर स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
Subscribe on YouTube - NotesWorld
For PDF copy of Solved Assignment
Any University Assignment Solution