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संवेग क्या हैं? किशोरों में सांवेगिक विकास और इसके शैक्षिक महत्व की व्याख्या कीजिए।

संवेग क्या हैं?

संवेग (Emotion) एक मानसिक और शारीरिक अवस्था है, जो व्यक्ति की आंतरिक और बाहरी उत्तेजनाओं के परिणामस्वरूप उत्पन्न होती है। यह व्यक्ति के अनुभवों, मनोवैज्ञानिक प्रतिक्रियाओं और भावनाओं का संगम होता है, जो किसी विशेष स्थिति या घटना के प्रति उसकी प्रतिक्रिया को दर्शाता है। संवेग मानवीय जीवन का एक अभिन्न हिस्सा है और यह व्यक्ति की सोच, निर्णय, व्यवहार, और क्रियाओं को प्रभावित करता है। यह किसी घटना, व्यक्ति या विचार के प्रति उत्पन्न होने वाले सकारात्मक या नकारात्मक भाव हो सकते हैं जैसे आनंद, दुख, क्रोध, भय, आश्चर्य, घृणा आदि।

संवेग केवल मानसिक प्रक्रिया तक सीमित नहीं होते, बल्कि शरीर पर भी उनका गहरा प्रभाव होता है। संवेगों के समय शरीर में विभिन्न प्रकार की शारीरिक प्रतिक्रियाएँ होती हैं, जैसे हृदय गति का बढ़ना, मांसपेशियों का कसाव, श्वास-प्रश्वास की तीव्रता आदि। इसके अतिरिक्त, संवेग व्यक्ति के सामाजिक संबंधों और निर्णय लेने की क्षमता पर भी प्रभाव डालते हैं।

किशोरों में संवेगात्मक विकास

किशोरावस्था जीवन का वह चरण है जब व्यक्ति बचपन से वयस्कता की ओर बढ़ता है। यह 12 से 19 वर्ष की आयु के बीच का समय होता है, जो शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और संवेगात्मक विकास के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। इस अवधि में संवेगों में गहराई और जटिलता बढ़ जाती है, और किशोर कई तरह के नये अनुभवों का सामना करते हैं। किशोरावस्था के दौरान संवेगात्मक विकास के निम्नलिखित पहलू होते हैं:

1. संवेगों की तीव्रता में वृद्धि:

किशोरावस्था में संवेगों की तीव्रता बढ़ जाती है। यह उम्र हार्मोनल बदलावों का समय होता है, जो शरीर और मस्तिष्क पर प्रभाव डालते हैं। इस कारण से किशोर कई बार अधिक उत्तेजित, क्रोधित, या अत्यधिक उत्साहित हो जाते हैं। छोटी-छोटी घटनाओं पर भी उनकी प्रतिक्रिया तीव्र हो सकती है, और वे कई बार अपने संवेगों को सही से प्रकट या नियंत्रित नहीं कर पाते।

2. स्वतंत्रता और पहचान की खोज:

किशोरावस्था वह समय होता है जब व्यक्ति स्वतंत्रता और अपनी पहचान की खोज करने लगता है। इस खोज के दौरान, किशोर अपने संवेगों को लेकर अधिक संवेदनशील हो जाते हैं। वे अपने निर्णय खुद लेना चाहते हैं और दूसरों द्वारा दी गई सीमाओं या नियमों का विरोध कर सकते हैं। यह संघर्ष उनकी भावनाओं में अस्थिरता और असंतुलन का कारण बन सकता है।

3. सामाजिक संबंधों में परिवर्तन:

किशोरों के संवेगों पर उनके सामाजिक संबंधों का भी गहरा प्रभाव पड़ता है। इस समय में वे अपने दोस्तों के साथ अधिक समय बिताने लगते हैं और माता-पिता से दूरी बना सकते हैं। यह बदलाव उनके संवेगात्मक विकास का हिस्सा होता है। दोस्तों के साथ संबंधों में उतार-चढ़ाव और सामाजिक स्वीकृति की चाहत उनके भावनात्मक संतुलन को प्रभावित कर सकती है।

4. संवेगों का आत्म-प्रबंधन:

किशोरावस्था में व्यक्ति को अपने संवेगों का प्रबंधन करना सीखना पड़ता है। यह समय होता है जब व्यक्ति सीखता है कि उसे अपने गुस्से, डर, प्रेम, या उदासी को कैसे व्यक्त और नियंत्रित करना है। संवेगात्मक विकास का यह हिस्सा महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे व्यक्ति को कठिन परिस्थितियों का सामना करने और सामाजिक व शैक्षिक जीवन में सफलता प्राप्त करने में मदद मिलती है।

5. आत्मसम्मान और आत्मविश्वास:

किशोरावस्था में आत्मसम्मान और आत्मविश्वास का विकास भी संवेगात्मक विकास का एक महत्वपूर्ण भाग है। इस समय में किशोर अपने शारीरिक रूप, सामाजिक स्थान और शैक्षिक प्रदर्शन को लेकर संवेदनशील होते हैं। उनके आत्मसम्मान और आत्मविश्वास में वृद्धि या कमी उनके संवेगात्मक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकती है।

किशोरावस्था के संवेगात्मक विकास का शैक्षिक महत्व

संवेगात्मक विकास का किशोरों के शैक्षिक जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। जब किशोर अपने संवेगों को समझते और नियंत्रित करते हैं, तो वे अपने शैक्षिक उद्देश्यों को आसानी से प्राप्त कर सकते हैं। शिक्षक और शैक्षिक संस्थान इस संवेगात्मक विकास को सकारात्मक दिशा में मोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। इसके शैक्षिक महत्व को निम्नलिखित बिंदुओं से समझा जा सकता है:

1. अधिगम पर प्रभाव:

संवेगों का व्यक्ति के अधिगम पर सीधा प्रभाव पड़ता है। जब किशोर सकारात्मक संवेगों, जैसे उत्साह, जिज्ञासा, और आत्मविश्वास का अनुभव करते हैं, तो वे शिक्षा में अधिक रुचि दिखाते हैं और बेहतर प्रदर्शन करते हैं। वहीं, नकारात्मक संवेग, जैसे उदासी, भय, या क्रोध, उनकी एकाग्रता को भंग कर सकते हैं और उनके शैक्षिक प्रदर्शन में गिरावट ला सकते हैं।

2. मोटिवेशन और प्रेरणा:

किशोरों को शिक्षण के लिए प्रेरित करने में संवेगात्मक विकास महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जब वे अपनी संवेगात्मक स्थिति को सही तरीके से प्रबंधित करते हैं, तो वे अपने लक्ष्यों के प्रति अधिक प्रेरित रहते हैं। संवेगात्मक बुद्धिमत्ता (Emotional Intelligence) से लैस किशोर कठिनाईयों का सामना करने में सक्षम होते हैं और अपनी असफलताओं से सीखकर आगे बढ़ते हैं।

3. सामाजिक कौशल का विकास:

किशोरों में संवेगात्मक विकास से उनके सामाजिक कौशल में भी सुधार होता है। वे अपने साथियों, शिक्षकों और अन्य व्यक्तियों के साथ बेहतर संवाद और सहयोग कर पाते हैं। संवेगों को समझने और नियंत्रित करने की क्षमता से वे अपने संबंधों को मजबूत बनाते हैं, जो कि उनके शैक्षिक अनुभव में भी सहायक होता है।

4. संघर्ष प्रबंधन और समस्या समाधान:

किशोरों के लिए संघर्षों और समस्याओं का सामना करना एक आम बात है। शैक्षिक जीवन में भी उन्हें कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जैसे परीक्षा का दबाव, साथियों के साथ प्रतिस्पर्धा, या सामाजिक स्वीकृति की चिंता। यदि किशोर अपने संवेगों को सही तरीके से संभालना सीख जाते हैं, तो वे इन समस्याओं का समाधान आसानी से कर सकते हैं।

5. मानसिक स्वास्थ्य और तनाव प्रबंधन:

शैक्षिक जीवन में तनाव और चिंता का सामना करने की क्षमता किशोरों के संवेगात्मक विकास पर निर्भर करती है। यदि किशोर अपने संवेगों को प्रबंधित करना सीख जाते हैं, तो वे तनावपूर्ण परिस्थितियों में भी बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं। अच्छे संवेगात्मक स्वास्थ्य से मानसिक शांति और संतुलन बनाए रखने में मदद मिलती है, जो शैक्षिक जीवन में सफलता का आधार बनता है।

निष्कर्ष:

किशोरावस्था में संवेगात्मक विकास एक जटिल और महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जो व्यक्ति के मानसिक, शारीरिक और सामाजिक विकास को प्रभावित करती है। संवेगात्मक विकास किशोरों को न केवल अपने व्यक्तिगत जीवन में संतुलन बनाए रखने में मदद करता है, बल्कि उनके शैक्षिक जीवन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। शिक्षकों और अभिभावकों को किशोरों के संवेगात्मक विकास के प्रति संवेदनशील होकर उनके मानसिक स्वास्थ्य और शैक्षिक विकास को प्रोत्साहित करना चाहिए।

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