राष्ट्रीयता का अर्थ और भारत में राष्ट्रीयता के विकास में शिक्षा की भूमिका
राष्ट्रीयता का अर्थ
राष्ट्रीयता एक ऐसा भाव है जो किसी देश के लोगों को एकता के सूत्र में बांधता है। यह एक सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक धारणा है, जो किसी विशेष भू-भाग के लोगों में एक समान राष्ट्रीय पहचान, उद्देश्य, और आदर्शों के प्रति समर्पण की भावना उत्पन्न करती है। राष्ट्रीयता का मुख्य आधार एकता की भावना, साझा इतिहास, भाषा, संस्कृति, परंपराएं, धर्म, और कभी-कभी समान राजनीतिक इच्छाएं होती हैं।
राष्ट्रीयता के प्रमुख तत्व:
- सांस्कृतिक एकता: राष्ट्रीयता का पहला महत्वपूर्ण पहलू सांस्कृतिक एकता है, जो एक देश के लोगों को भाषा, धर्म, परंपराओं, और मूल्यों में समानता के आधार पर जोड़ता है।
- साझा इतिहास: एक ही इतिहास को साझा करना, संघर्षों और विजय के अनुभवों में समानता राष्ट्रीयता की भावना को प्रबल बनाती है।
- राजनीतिक एकता: एक मजबूत राष्ट्रीयता की भावना में राजनीतिक स्थिरता और सामूहिक रूप से एक ही राजनीतिक व्यवस्था के प्रति समर्पण भी महत्वपूर्ण होता है।
- सामाजिक एकता: राष्ट्रीयता के विकास में सामाजिक एकता और समानता भी मुख्य भूमिका निभाती है। सामाजिक ताने-बाने में विभिन्न जातियों, धर्मों, और समुदायों के बीच एकजुटता राष्ट्रीयता की भावना को मजबूती प्रदान करती है।
भारत में राष्ट्रीयता का विकास
भारत एक विविधतापूर्ण देश है, जहां विभिन्न भाषाएं, धर्म, और संस्कृतियों का वास है। फिर भी, भारत में एकता की भावना और राष्ट्रीयता का विकास एक लंबी और संघर्षपूर्ण प्रक्रिया रही है। भारत में राष्ट्रीयता का विकास कई ऐतिहासिक और सामाजिक-राजनीतिक घटनाओं से जुड़ा है। विशेष रूप से ब्रिटिश शासन के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम और उसके दौरान विकसित की गई राष्ट्रीयता ने भारत को एक राष्ट्र के रूप में संगठित किया।
इस दौरान शिक्षा ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, क्योंकि यह जागरूकता फैलाने और राष्ट्रीयता की भावना को प्रोत्साहित करने का एक माध्यम बन गई।
भारत में राष्ट्रीयता के विकास में शिक्षा की भूमिका
भारत में राष्ट्रीयता के विकास में शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। शिक्षा ने न केवल लोगों को जागरूक किया, बल्कि उन्हें संगठित करने और स्वतंत्रता संग्राम के लिए तैयार करने में भी मदद की। इसके विभिन्न पहलू इस प्रकार हैं:
1. राष्ट्रीय चेतना का विकास:
शिक्षा ने लोगों को राष्ट्र की अवधारणा और उनकी पहचान के प्रति जागरूक किया। शिक्षा के माध्यम से ही भारतीय समाज ब्रिटिश उपनिवेशवाद की वास्तविकताओं और उसकी कूटनीतियों से अवगत हो सका। यह शिक्षा थी जिसने भारतीय समाज में राष्ट्रीय चेतना और स्वतंत्रता की लालसा को प्रोत्साहित किया। 19वीं सदी में स्थापित होने वाले शैक्षिक संस्थानों जैसे कि कलकत्ता विश्वविद्यालय, मद्रास विश्वविद्यालय और बंबई विश्वविद्यालय ने उच्च शिक्षित वर्ग में राष्ट्रीयता का बीज बोया।
2. स्वतंत्रता संग्राम में शिक्षा का योगदान:
ब्रिटिश शासन के दौरान स्थापित स्कूल और कॉलेज, हालांकि ब्रिटिश शिक्षा प्रणाली पर आधारित थे, फिर भी उन्होंने भारतीय छात्रों में स्वतंत्रता, समानता और न्याय के विचारों को जन्म दिया। इन शिक्षण संस्थानों में पढ़े हुए युवा भारतीयों ने स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। शिक्षा ने उन्हें ब्रिटिश शासन के खिलाफ संगठित और संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया।
3. राष्ट्रीय आंदोलन और शिक्षा के प्रतीक:
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी ने शिक्षा को राष्ट्रीयता के प्रचार का एक माध्यम माना। उन्होंने बुनियादी शिक्षा (नैतिक, शारीरिक और कौशल विकास पर आधारित शिक्षा) का प्रस्ताव रखा, जिसे 'नई तालीम' कहा गया। गांधीजी का मानना था कि शिक्षा को लोगों के जीवन से सीधे जोड़कर ही स्वतंत्रता और राष्ट्रीयता की भावना को बढ़ावा दिया जा सकता है। उन्होंने जोर दिया कि शिक्षा के माध्यम से सामाजिक और आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्त की जा सकती है, जो राष्ट्रीयता का मूल आधार है।
4. भाषा और शिक्षा:
भाषा ने भी भारतीय राष्ट्रीयता के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली के बावजूद, भारतीय भाषाओं के माध्यम से शिक्षा ने लोगों में राष्ट्रीयता की भावना को जागरूक किया। बंगाल में रवींद्रनाथ टैगोर और बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय जैसे लेखकों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से भारतीय राष्ट्रीयता के प्रति प्रेम और गर्व की भावना उत्पन्न की। उनकी साहित्यिक कृतियों ने भारत की स्वतंत्रता और राष्ट्रीयता के विचार को प्रबल किया। 'वन्दे मातरम्' जैसे गीतों ने राष्ट्रीयता की भावना को और अधिक सुदृढ़ किया।
5. विविधता में एकता का संदेश:
भारत में शिक्षा ने विभिन्न संस्कृतियों, भाषाओं, और धर्मों के बीच आपसी समझ को बढ़ावा दिया। स्वतंत्रता के बाद भारतीय संविधान में शिक्षा को अधिकार के रूप में शामिल किया गया, जो सभी नागरिकों को समान रूप से प्राप्त होती है। यह शिक्षा भारतीय समाज में 'विविधता में एकता' के सिद्धांत को बढ़ावा देती है, जो राष्ट्रीयता की भावना का महत्वपूर्ण आधार है।
6. संविधान और लोकतांत्रिक राष्ट्रीयता:
शिक्षा ने भारतीय समाज में संविधान और लोकतंत्र की मूल भावनाओं को भी जागरूक किया। भारतीय संविधान में समानता, स्वतंत्रता, और बंधुत्व जैसे सिद्धांत राष्ट्रीयता की भावना को मजबूत करते हैं। शिक्षा के माध्यम से ही लोगों को संविधान की समझ प्राप्त होती है, जिससे वे एक जिम्मेदार नागरिक बनते हैं। यह शिक्षा का प्रभाव ही है कि भारतीय नागरिक अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति सजग हैं, जो एक मजबूत राष्ट्रीयता की भावना को प्रकट करता है।
7. आधुनिक युग में शिक्षा और राष्ट्रीयता:
आधुनिक युग में भी शिक्षा भारतीय राष्ट्रीयता के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। आज की शिक्षा प्रणाली विज्ञान, प्रौद्योगिकी, और अन्य आधुनिक विषयों के साथ-साथ नागरिकता और नैतिक शिक्षा को भी बढ़ावा देती है, जिससे युवा पीढ़ी में राष्ट्र के प्रति समर्पण और सामाजिक जिम्मेदारी की भावना उत्पन्न होती है।
निष्कर्ष
भारत में राष्ट्रीयता का विकास एक दीर्घकालिक और जटिल प्रक्रिया रही है, जिसमें शिक्षा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। शिक्षा ने न केवल भारतीय समाज में जागरूकता पैदा की, बल्कि उसे संगठित करने और स्वतंत्रता संग्राम के लिए तैयार करने में भी मदद की। शिक्षा ने भारतीयों को न केवल स्वतंत्रता के लिए प्रेरित किया, बल्कि उन्हें एक सशक्त, एकीकृत और समृद्ध राष्ट्र की स्थापना के लिए भी मार्गदर्शन किया। भारत में आज भी शिक्षा राष्ट्रीयता के विकास और उसे मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।
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