अभिक्रमित अनुदेशन: परिभाषा एवं अवलोकन
अभिक्रमित अनुदेशन (Programmed Instruction) शिक्षण की एक व्यवस्थित और वैज्ञानिक विधि है, जिसे इस उद्देश्य से विकसित किया गया है कि शिक्षण प्रक्रिया अधिक संगठित, स्वचालित, और व्यक्तिगत हो सके। यह शिक्षण विधि एक विशेष अनुक्रम में व्यवस्थित शिक्षण सामग्री प्रदान करती है, जो छात्रों को उनकी गति के अनुसार सीखने में सक्षम बनाती है। इसमें प्रत्येक चरण में छात्र के ज्ञान का मूल्यांकन किया जाता है और प्रतिक्रिया के आधार पर उन्हें अगले चरण की ओर निर्देशित किया जाता है।
अभिक्रमित अनुदेशन का मुख्य उद्देश्य छात्रों को अपने स्वयं के गति से सीखने देना है। यह शिक्षण पद्धति उनके व्यक्तिगत विकास, कौशल और ज्ञान के अनुसार अनुकूलित होती है। इसमें छात्र को स्व-निर्देशित तरीके से सीखने का अवसर मिलता है, और यह सुनिश्चित किया जाता है कि प्रत्येक चरण में उन्हें उनकी समझ का मूल्यांकन प्राप्त हो।
इस विधि का मुख्य आधार बी. एफ. स्किनर का सुदृढीकरण सिद्धांत (Reinforcement Theory) है, जिसमें यह माना गया कि सकारात्मक प्रतिक्रिया के माध्यम से व्यवहार या सीखने को सुदृढ़ किया जा सकता है।
भौतिक विज्ञान शिक्षण में अभिक्रमित अनुदेशन का महत्व
भौतिक विज्ञान एक जटिल और तर्कसंगत विषय है, जिसमें कई अवधारणाएँ आपस में जुड़ी होती हैं। कई बार छात्रों को इन जटिल अवधारणाओं को समझने में कठिनाई होती है, और यह आवश्यक होता है कि उन्हें इन अवधारणाओं को क्रमबद्ध तरीके से सिखाया जाए। अभिक्रमित अनुदेशन इस संदर्भ में विशेष रूप से उपयोगी है क्योंकि यह छात्रों को धीरे-धीरे, क्रमिक रूप से, और व्यक्तिगत गति के अनुसार विषय की जटिलताओं को समझने में सहायता करता है।
भौतिक विज्ञान में अभिक्रमित अनुदेशन के महत्व को निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझा जा सकता है:
- व्यक्तिगत गति से सीखना: हर छात्र की सीखने की गति अलग होती है। अभिक्रमित अनुदेशन विधि छात्रों को अपनी व्यक्तिगत गति से सीखने का अवसर प्रदान करती है, जिससे वे किसी विशेष अवधारणा को पूरी तरह से समझने के बाद ही अगली अवधारणा पर जा सकते हैं। यह विधि छात्रों के आत्मविश्वास को बढ़ाती है और उनके भीतर एक गहरी समझ विकसित करने में मदद करती है।
- सटीक और तार्किक ज्ञान: भौतिक विज्ञान में कई अवधारणाएँ क्रमिक और तार्किक होती हैं। यदि कोई छात्र एक अवधारणा को पूरी तरह से नहीं समझता, तो उसे आगे की अवधारणाओं को समझने में कठिनाई हो सकती है। अभिक्रमित अनुदेशन में ज्ञान को छोटे-छोटे भागों में विभाजित किया जाता है, जिससे छात्रों को आसानी से समझ में आता है और वे सटीक तरीके से आगे बढ़ सकते हैं।
- तुरंत प्रतिक्रिया और सुधार: अभिक्रमित अनुदेशन में छात्रों को प्रत्येक कदम के बाद प्रतिक्रिया दी जाती है। यदि वे किसी सवाल का सही उत्तर देते हैं, तो उन्हें सकारात्मक प्रतिक्रिया मिलती है और अगले चरण की ओर निर्देशित किया जाता है। यदि उत्तर गलत होता है, तो उन्हें तुरंत अपनी गलती सुधारने का अवसर मिलता है। यह प्रक्रिया छात्रों को सीखने के दौरान अपनी गलतियों को पहचानने और सुधारने में मदद करती है।
- मोटिवेशनल शिक्षा: सकारात्मक प्रतिक्रिया के आधार पर छात्रों को प्रोत्साहन मिलता है, जिससे उनकी शिक्षा में रुचि और संलग्नता बढ़ती है। यह छात्रों को आत्मनिर्भर और आत्म-प्रेरित बनाता है, जो विशेष रूप से विज्ञान जैसे जटिल विषयों में आवश्यक है।
- सैद्धांतिक और व्यावहारिक संतुलन: अभिक्रमित अनुदेशन में न केवल सैद्धांतिक ज्ञान प्रदान किया जाता है, बल्कि यह सुनिश्चित किया जाता है कि छात्रों को व्यावहारिक समस्याओं के समाधान का अवसर भी मिले। इससे छात्रों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण और समस्या समाधान कौशल विकसित होता है, जो भौतिक विज्ञान के अध्ययन में महत्वपूर्ण है।
अभिक्रमित अनुदेशन की प्रक्रिया
अभिक्रमित अनुदेशन में शिक्षण सामग्री को व्यवस्थित रूप से तैयार किया जाता है, जिसे छात्रों को क्रमिक रूप से प्रदान किया जाता है। इस प्रक्रिया के मुख्य चरण निम्नलिखित हैं:
1. सामग्री का विभाजन
भौतिक विज्ञान की जटिल अवधारणाओं को छोटे-छोटे भागों में विभाजित किया जाता है। इन भागों को इस तरह से व्यवस्थित किया जाता है कि छात्र धीरे-धीरे और तार्किक रूप से एक अवधारणा से दूसरी अवधारणा तक पहुँच सकें। उदाहरण के लिए, यदि विषय गति और बल पर आधारित है, तो पहले गति के प्रकारों और गणनाओं पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा, फिर बल और गति के बीच के संबंध को समझाया जाएगा।
2. स्व-निर्देशित शिक्षण
अभिक्रमित अनुदेशन में छात्र स्व-निर्देशित तरीके से सीखते हैं। वे प्रत्येक छोटे भाग को अपनी गति के अनुसार पढ़ते हैं, समझते हैं, और फिर अगले चरण में प्रवेश करते हैं। इस प्रक्रिया में शिक्षक केवल मार्गदर्शक की भूमिका निभाता है, जो छात्रों को संसाधन और आवश्यक निर्देश प्रदान करता है।
3. प्रश्नों के माध्यम से जाँच
प्रत्येक चरण के बाद छात्रों को विभिन्न प्रकार के प्रश्न दिए जाते हैं, जो उनकी समझ को परखते हैं। यदि वे प्रश्नों का सही उत्तर देते हैं, तो उन्हें अगले चरण की ओर बढ़ने की अनुमति दी जाती है। यदि उत्तर गलत होता है, तो उन्हें वापस जाकर अवधारणा को फिर से समझने का अवसर दिया जाता है।
4. तत्काल प्रतिक्रिया
छात्रों को उनके उत्तर के आधार पर तुरंत प्रतिक्रिया दी जाती है। सही उत्तर पर सकारात्मक प्रतिक्रिया और प्रोत्साहन दिया जाता है, जबकि गलत उत्तर पर सही उत्तर समझाया जाता है और उन्हें फिर से प्रयास करने का अवसर दिया जाता है।
5. अधिगम की सतत प्रक्रिया
यह एक सतत प्रक्रिया है जिसमें छात्र लगातार सीखते हैं और अपनी समझ को परखते हैं। हर बार जब वे एक अवधारणा को समझते हैं, तो वे अगले पर जाते हैं। इस प्रकार, सीखने की प्रक्रिया व्यवस्थित और संगठित तरीके से आगे बढ़ती है।
अभिक्रमित अनुदेशन के लाभ
- समर्पित और व्यक्तिगत सीखने का अनुभव: यह विधि छात्रों को उनकी व्यक्तिगत गति और क्षमता के अनुसार सीखने की अनुमति देती है। प्रत्येक छात्र अपनी स्वयं की क्षमताओं के अनुसार सीख सकता है, जो समूह-आधारित शिक्षण विधियों में संभव नहीं होता।
- सहज और स्थायी सीखने की प्रक्रिया: अभिक्रमित अनुदेशन में छात्रों की समझ को समय-समय पर परखा जाता है और गलतियों को तुरंत सुधारा जाता है। इससे छात्रों की सीखने की प्रक्रिया अधिक स्थायी और प्रभावी हो जाती है।
- समय की बचत: छात्र अपनी गति से सीख सकते हैं, जिससे तेज़ी से सीखने वाले छात्र अधिक समय बर्बाद किए बिना आगे बढ़ सकते हैं। साथ ही, जो छात्र धीमी गति से सीखते हैं, वे अपनी आवश्यकताओं के अनुसार समय ले सकते हैं।
- आत्म-निर्भरता और आत्म-विश्वास का विकास: इस विधि से छात्रों में आत्म-निर्भरता और आत्म-विश्वास का विकास होता है क्योंकि वे स्वयं अपनी शिक्षा की ज़िम्मेदारी लेते हैं और अपने ज्ञान का मूल्यांकन करते हैं।
अभिक्रमित अनुदेशन के सीमाएँ
- मानव संपर्क की कमी: अभिक्रमित अनुदेशन में छात्रों और शिक्षकों के बीच सीधा संपर्क कम होता है। इससे छात्रों को व्यक्तिगत मार्गदर्शन की कमी महसूस हो सकती है।
- रचनात्मकता की कमी: यह विधि बहुत ही संरचित और क्रमबद्ध होती है, जिससे छात्रों की रचनात्मकता और स्वतंत्र विचारधारा को कम बढ़ावा मिल सकता है।
- व्यवस्थित शिक्षण सामग्री की आवश्यकता: यह विधि तब ही प्रभावी होती है जब शिक्षण सामग्री अच्छी तरह से व्यवस्थित और वैज्ञानिक तरीके से प्रस्तुत की गई हो। अगर सामग्री सही से विभाजित और तैयार न हो, तो यह विधि प्रभावहीन हो सकती है।
निष्कर्ष
अभिक्रमित अनुदेशन एक प्रभावी और व्यवस्थित शिक्षण विधि है, जो छात्रों को उनकी गति और क्षमता के अनुसार सीखने का अवसर प्रदान करती है। विशेष रूप से भौतिक विज्ञान जैसे जटिल विषयों के शिक्षण में इसका महत्व अधिक होता है, जहाँ छात्रों को क्रमिक और तार्किक रूप से अवधारणाओं को समझने की आवश्यकता होती है। हालांकि, इसे सफलतापूर्वक लागू करने के लिए अच्छी तरह से तैयार सामग्री, सही शिक्षण उपकरण, और छात्रों के लिए उचित समर्थन की आवश्यकता होती है।
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