संरचनावाद और सक्रियावाद: परिभाषा एवं अवलोकन
संरचनावाद (Structuralism) और सक्रियावाद (Activism) शिक्षा के क्षेत्र में दो प्रमुख दृष्टिकोण या उपागम हैं जो शिक्षण और सीखने के तरीकों को समझाने का प्रयास करते हैं। दोनों का फोकस यह है कि कैसे ज्ञान का निर्माण और हस्तांतरण किया जाता है, लेकिन इनकी विधियाँ और दृष्टिकोण भिन्न होते हैं। यहाँ हम पहले इन दोनों उपागमों का सार संक्षेप में प्रस्तुत करेंगे, और फिर इनमें से किसी एक को विस्तृत रूप में गुण और दोषों के साथ स्पष्ट करेंगे।
1. संरचनावाद (Structuralism)
संरचनावाद के अनुसार, ज्ञान और अनुभव एक संरचना में बंधे होते हैं, और किसी भी ज्ञान की समझ केवल उसकी आंतरिक संरचना और तत्वों के बीच के संबंधों को समझने से संभव होती है। इसे मनोविज्ञान, समाजशास्त्र, भाषाविज्ञान और शिक्षा में एक महत्वपूर्ण सिद्धांत माना जाता है।
शिक्षा के संदर्भ में, संरचनावाद का मानना है कि छात्रों को सीखने के लिए विभिन्न अवधारणाओं और तत्वों के बीच के संबंधों को समझना चाहिए। यह दृष्टिकोण अनुभवों को अलग-अलग भागों में विभाजित करता है और उन्हें एक संगठित संरचना में ढालता है। इसका उद्देश्य छात्रों को तथ्यों और सूचनाओं के गहरे और व्यापक संबंधों को समझने में मदद करना है।
प्रमुख विशेषताएँ:
- ज्ञान का विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण: संरचनावाद यह मानता है कि ज्ञान का निर्माण एक संगठित ढांचे के माध्यम से होता है। किसी भी विषय की अवधारणाओं को अलग-अलग इकाइयों में विभाजित कर उन्हें समझने का प्रयास किया जाता है।
- भाषा और संकेत: संरचनावाद अक्सर भाषा और संकेतों के माध्यम से अर्थ निर्माण पर ध्यान केंद्रित करता है। यह मानता है कि भाषा संरचनाओं के माध्यम से मानव विचारधारा और वास्तविकता को आकार देती है।
- अवधारणाओं का विभाजन: संरचनावादी दृष्टिकोण ज्ञान को छोटे घटकों में विभाजित करता है ताकि उन घटकों के आपसी संबंधों को स्पष्ट किया जा सके।
- प्रमुख विचारक: फर्डिनांड डे सॉस्योर (भाषाविज्ञान में) और लेवी-स्ट्रॉस (मिथकों के अध्ययन में) संरचनावाद के प्रमुख योगदानकर्ता माने जाते हैं।
2. सक्रियावाद (Activism)
सक्रियावाद का दृष्टिकोण शैक्षिक प्रक्रिया में छात्र की सक्रिय भागीदारी पर केंद्रित होता है। यह मानता है कि छात्र तब बेहतर सीखते हैं जब वे अपने अनुभवों और वास्तविक दुनिया के साथ सक्रिय रूप से जुड़ते हैं। सक्रियावाद में छात्रों को निष्क्रिय रूप से जानकारी ग्रहण करने के बजाय, स्वयं जानकारी खोजने और समझने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। यह उपागम अनुभवात्मक शिक्षा (experiential learning) पर बल देता है, जिसमें छात्र वास्तविक जीवन के अनुभवों से सीखते हैं और ज्ञान को खुद से बनाते हैं।
प्रमुख विशेषताएँ:
- छात्र की सक्रिय भागीदारी: इसमें छात्र एक निष्क्रिय श्रोता नहीं होता, बल्कि एक सक्रिय रूप से भाग लेने वाला होता है। वह नई जानकारी की खोज करता है, प्रयोग करता है, और समस्या का समाधान करता है।
- अनुभवात्मक शिक्षण: सक्रियावाद यह मानता है कि शिक्षा अनुभवों से प्राप्त की जाती है। छात्रों को हाथ से काम करने और वास्तविक जीवन की समस्याओं को हल करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
- ज्ञान का स्वनिर्माण: सक्रियावाद यह मानता है कि छात्र स्वयं ज्ञान का निर्माण करते हैं और शिक्षकों का कार्य उन्हें दिशा और संसाधन प्रदान करना है।
- प्रमुख विचारक: जॉन डेवी सक्रियावादी शिक्षा के प्रमुख विचारक माने जाते हैं। उन्होंने अनुभव आधारित शिक्षा का समर्थन किया और कहा कि छात्रों को उनके सामाजिक वातावरण से शिक्षा मिलती है।
सक्रियावाद: गुण और दोषों के साथ विस्तृत चर्चा
अब हम सक्रियावाद को इसके गुण और दोषों के साथ विस्तार से समझने का प्रयास करेंगे, क्योंकि यह आधुनिक शिक्षा प्रणाली में एक प्रमुख उपागम है।
सक्रियावाद के गुण
- व्यावहारिक शिक्षा: सक्रियावाद छात्रों को व्यावहारिक शिक्षा प्राप्त करने का अवसर प्रदान करता है। इसके तहत छात्रों को किसी विषय को केवल पढ़ाया नहीं जाता, बल्कि वे उसे प्रयोगों, परियोजनाओं, और फील्ड वर्क के माध्यम से समझते हैं। उदाहरण के लिए, विज्ञान का अध्ययन केवल पुस्तकों तक सीमित न रहकर प्रयोगशालाओं में किया जाता है।
- समस्या समाधान कौशल का विकास: सक्रियावाद छात्रों में समस्या समाधान के कौशल का विकास करता है। छात्रों को समस्याओं के समाधान के लिए खुद से सोचने, विचार-मंथन करने, और विभिन्न दृष्टिकोणों से समाधान खोजने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। इससे उनके विचार और निर्णय लेने की क्षमता में वृद्धि होती है।
- रचनात्मकता और नवाचार: इस उपागम में छात्रों को स्वतंत्रता दी जाती है कि वे अपनी रचनात्मकता और नवाचार का प्रयोग करें। जब छात्रों को वास्तविक जीवन की समस्याओं से जूझना होता है, तो वे नई विचारधाराएँ और समाधान निकालते हैं। इससे उनका आत्म-विश्वास बढ़ता है और वे नवीन तरीकों से सोचने की क्षमता विकसित करते हैं।
- सामाजिक और भावनात्मक विकास: सक्रियावाद में छात्रों को टीम वर्क, सहकार्यता, और संवाद की भावना विकसित करने के अवसर मिलते हैं। जब वे समूह में काम करते हैं, तो उन्हें अपने साथियों के साथ विचार-विमर्श करना, समस्याओं का समाधान खोजना और विभिन्न दृष्टिकोणों को समझना आता है। इससे उनके सामाजिक और भावनात्मक कौशल का विकास होता है।
- स्वायत्तता और आत्म-निर्भरता: सक्रियावाद छात्रों को आत्म-निर्भरता और स्वतंत्रता सिखाता है। उन्हें अपनी शिक्षा के प्रति जिम्मेदार बनाया जाता है और उनके स्वयं के प्रयासों पर निर्भरता बढ़ाई जाती है।
सक्रियावाद के दोष
- संसाधनों की कमी: सक्रियावादी शिक्षण विधि के लिए अधिक संसाधनों की आवश्यकता होती है, जैसे कि प्रयोगशालाएँ, सामग्री, और प्रशिक्षित शिक्षक। कई बार स्कूलों में इन संसाधनों की कमी के कारण सक्रियावाद पूरी तरह से सफल नहीं हो पाता।
- समय की अधिक आवश्यकता: सक्रियावादी शिक्षण पद्धति में समय की अधिक आवश्यकता होती है। प्रोजेक्ट्स और फील्डवर्क में अधिक समय लगता है, जो पारंपरिक शिक्षा पद्धतियों की तुलना में धीमी हो सकती है। इससे पाठ्यक्रम के समयानुसार पूरा न हो पाने की संभावना होती है।
- सभी छात्रों के लिए उपयुक्त नहीं: हर छात्र सक्रिय शिक्षण विधियों में समान रूप से रुचि नहीं लेता। कुछ छात्रों को आत्मनिर्भरता और स्वतंत्रता से सीखने में कठिनाई होती है। ऐसे छात्रों के लिए अधिक निर्देशात्मक और संरचित शिक्षण विधियाँ बेहतर हो सकती हैं।
- मूल्यांकन की कठिनाई: सक्रियावाद में मूल्यांकन की प्रक्रिया जटिल हो सकती है, क्योंकि इसमें केवल परीक्षा या लिखित उत्तरों के आधार पर छात्रों का आकलन नहीं किया जा सकता। अनुभवों, परियोजनाओं और समूह कार्य के आधार पर मूल्यांकन करना कठिन होता है और यह एक सब्जेक्टिव प्रक्रिया बन सकती है।
- अधिक शिक्षण कौशल की आवश्यकता: सक्रियावाद के लिए शिक्षकों को न केवल विषय में विशेषज्ञता होनी चाहिए, बल्कि उन्हें शिक्षण के आधुनिक तरीकों और छात्रों को प्रेरित करने की भी अच्छी जानकारी होनी चाहिए। सभी शिक्षक सक्रियावादी शिक्षण विधियों को पूरी तरह से अपनाने के लिए तैयार नहीं होते हैं।
निष्कर्ष
सक्रियावादी शिक्षा प्रणाली छात्रों को एक अधिक व्यावहारिक, अनुभवात्मक, और आत्मनिर्भर दृष्टिकोण प्रदान करती है, जिससे उनके संपूर्ण विकास को बढ़ावा मिलता है। यह उन्हें रचनात्मक, सामाजिक, और स्वतंत्र बनाने में सहायक है। हालांकि, इसमें कुछ चुनौतियाँ भी हैं, जैसे कि संसाधनों की कमी, मूल्यांकन की कठिनाई, और सभी छात्रों के लिए उपयुक्तता की समस्या। फिर भी, आधुनिक शिक्षा में सक्रियावादी दृष्टिकोण का प्रभावी उपयोग छात्रों के विकास के लिए एक महत्वपूर्ण साधन बन सकता है।
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