अनुभूति / संवेदन के विभिन्न नियम
अनुभूति (Perception) और संवेदन (Sensation) मनोविज्ञान के महत्वपूर्ण पहलू हैं, जो हमें बाहरी दुनिया से संपर्क स्थापित करने और उसे समझने में मदद करते हैं। संवेदन वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा हमारी इंद्रियां (जैसे दृष्टि, श्रवण, स्पर्श, स्वाद, और गंध) बाहरी उत्तेजनाओं का पता लगाती हैं और उन्हें मस्तिष्क तक पहुंचाती हैं। इसके विपरीत, अनुभूति वह प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से मस्तिष्क इन इंद्रियों से प्राप्त सूचनाओं का अर्थ निकालता है और उन्हें एक संगठित रूप में प्रस्तुत करता है।
अनुभूति और संवेदन के कई नियम होते हैं जो इस प्रक्रिया को स्पष्ट करने में मदद करते हैं। ये नियम बताते हैं कि हमारा मस्तिष्क जानकारी को कैसे संगठित करता है और उसे समझने के लिए किन तरीकों का उपयोग करता है।
1. वेबर का नियम (Weber’s Law)
वेबर का नियम बताता है कि किसी उत्तेजना में छोटे से छोटे परिवर्तन को महसूस करने की क्षमता उत्तेजना की मूल तीव्रता पर निर्भर करती है। इसका मतलब यह है कि एक बहुत हल्की उत्तेजना में बहुत छोटा परिवर्तन भी महसूस किया जा सकता है, जबकि अधिक तीव्र उत्तेजना में बड़े परिवर्तन को महसूस करने के लिए अधिक अंतर की आवश्यकता होती है।
उदाहरण के लिए, अगर किसी व्यक्ति के हाथ में 100 ग्राम वजन है और उसमें 5 ग्राम और जोड़ा जाता है, तो वह इस अंतर को महसूस कर सकता है। लेकिन यदि व्यक्ति के हाथ में 1 किलोग्राम वजन है, तो 5 ग्राम जोड़ने से वह कोई अंतर महसूस नहीं करेगा।
2. जेस्टाल्ट के सिद्धांत (Gestalt Principles)
जेस्टाल्ट मनोविज्ञान के सिद्धांत बताते हैं कि हमारा मस्तिष्क जानकारी को अलग-अलग भागों के रूप में नहीं देखता, बल्कि एक संपूर्ण के रूप में देखता है। जेस्टाल्ट सिद्धांत अनुभूति के संगठन और पैटर्न बनाने की प्रवृत्ति को दर्शाता है। इसमें कई महत्वपूर्ण उप-नियम शामिल हैं:
(i) निकटता का सिद्धांत (Law of Proximity)
इस सिद्धांत के अनुसार, जब एक जैसे ऑब्जेक्ट्स एक-दूसरे के करीब होते हैं, तो उन्हें मस्तिष्क एक समूह के रूप में देखता है। उदाहरण के लिए, यदि कई बिंदु एक-दूसरे के करीब होते हैं, तो मस्तिष्क उन्हें एक पैटर्न या समूह के रूप में पहचानता है।
(ii) समानता का सिद्धांत (Law of Similarity)
यह सिद्धांत बताता है कि मस्तिष्क उन वस्तुओं को एक साथ देखता है जो एक-दूसरे से मिलती-जुलती होती हैं। उदाहरण के लिए, यदि एक पैटर्न में कुछ बिंदु गोल हैं और कुछ चौकोर, तो मस्तिष्क गोल और चौकोर बिंदुओं को अलग-अलग समूहों में विभाजित करता है।
(iii) निरंतरता का सिद्धांत (Law of Continuity)
इस सिद्धांत के अनुसार, मस्तिष्क उन रेखाओं, आकृतियों, या पैटर्न्स को पसंद करता है जो सतत या सीधी रेखाओं के रूप में होते हैं। यह मस्तिष्क की प्रवृत्ति होती है कि वह बिखरे हुए भागों को एक सीधी रेखा या प्रवाह में जोड़कर देखे।
(iv) पूर्णता का सिद्धांत (Law of Closure)
इस सिद्धांत के अनुसार, जब हम कोई अधूरी आकृति देखते हैं, तो हमारा मस्तिष्क उसे पूरा करने की कोशिश करता है। यह सिद्धांत बताता है कि मस्तिष्क उस जानकारी को भी समझने की कोशिश करता है जो दृश्य रूप से अधूरी होती है। उदाहरण के लिए, यदि कोई आकृति अधूरी होती है, तो मस्तिष्क उसे पूर्ण आकार के रूप में देखता है।
3. अनुपातिकता का नियम (Law of Figure and Ground)
यह नियम बताता है कि हम जब किसी दृश्य को देखते हैं, तो उसे दो हिस्सों में विभाजित करते हैं: आकृति (figure) और पृष्ठभूमि (ground)। आकृति वह होती है जिस पर हमारा ध्यान केंद्रित होता है, जबकि बाकी का दृश्य पृष्ठभूमि के रूप में होता है। उदाहरण के लिए, जब हम किसी चित्र में एक व्यक्ति को देखते हैं, तो व्यक्ति आकृति होता है और बाकी का दृश्य पृष्ठभूमि होता है।
यह नियम हमें यह समझने में मदद करता है कि हमारा मस्तिष्क कैसे निर्णय लेता है कि दृश्य का कौन सा भाग महत्वपूर्ण है और कौन सा भाग सामान्य पृष्ठभूमि है।
4. ऊर्जास्तर का नियम (Law of Threshold)
यह नियम बताता है कि किसी उत्तेजना को अनुभव करने के लिए एक न्यूनतम स्तर की आवश्यकता होती है। इसका मतलब यह है कि कोई उत्तेजना तभी मस्तिष्क में दर्ज होगी, जब वह न्यूनतम ऊर्जास्तर (threshold) तक पहुंचेगी। उदाहरण के लिए, किसी बहुत धीमी आवाज़ को सुनने के लिए यह आवश्यक है कि उसकी तीव्रता न्यूनतम ऊर्जास्तर से ऊपर हो, तभी वह हमारे मस्तिष्क में दर्ज होगी।
निष्कर्ष
अनुभूति और संवेदन के ये नियम यह बताते हैं कि हम अपने इंद्रियों से प्राप्त जानकारी को कैसे व्यवस्थित करते हैं और उसे समझने के लिए कौन से तरीकों का उपयोग करते हैं। वेबर का नियम और जेस्टाल्ट सिद्धांत यह समझाने में मदद करते हैं कि मस्तिष्क बाहरी दुनिया से प्राप्त सूचना को कैसे प्रोसेस करता है। अनुभूति और संवेदन की यह प्रक्रिया हमारे दैनिक जीवन में अत्यधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि यही प्रक्रिया हमें दुनिया को अनुभव करने और उसे समझने की क्षमता प्रदान करती है।
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