गोपाल कृष्ण गोखले (1866-1915) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख नेता और विचारक थे, जिन्होंने स्वशासन (Self-Governance) की अवधारणा को महत्वपूर्ण रूप से प्रस्तुत किया। गोखले ने यह मानने में विश्वास किया कि भारतीयों को अपने देश के प्रशासन में अधिक से अधिक भागीदारी का अधिकार होना चाहिए।
स्वशासन का अर्थ
गोखले के अनुसार, स्वशासन का अर्थ है कि भारतीयों को अपने शासन के मामलों में स्वतंत्रता और अधिकार मिले। उन्होंने कहा कि भारत के नागरिकों को अपने देश के विकास में सक्रिय रूप से भाग लेना चाहिए और अपने अधिकारों के लिए आवाज उठानी चाहिए।
शिक्षित और जागरूक समाज
गोखले का मानना था कि स्वशासन की प्राप्ति के लिए एक शिक्षित और जागरूक समाज का होना आवश्यक है। उन्होंने शिक्षा के महत्व पर जोर दिया और समाज में जागरूकता फैलाने के लिए कई कार्यक्रमों का आयोजन किया। उनका मानना था कि केवल शिक्षित लोग ही अपने अधिकारों की रक्षा कर सकते हैं और स्वशासन की दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं।
राजनीतिक प्रक्रिया में भागीदारी
गोकले ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में सक्रियता दिखाई और वहां स्वशासन की मांग की। उन्होंने समझाया कि राजनीतिक प्रक्रिया में भागीदारी से ही भारतीयों को अपने अधिकारों की रक्षा करने और स्वशासन की दिशा में आगे बढ़ने का अवसर मिलेगा।
सामाजिक सुधार
गोकले ने सामाजिक सुधारों के प्रति भी सक्रियता दिखाई। उन्होंने जातिवाद, महिलाओं के अधिकारों, और शिक्षा के क्षेत्र में सुधार की आवश्यकता पर जोर दिया। उनका मानना था कि सामाजिक सुधारों के बिना स्वशासन की प्राप्ति संभव नहीं है।
निष्कर्ष
गोपाल कृष्ण गोखले के विचारों में स्वशासन की अवधारणा एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सकारात्मक परिवर्तन लाने का कार्य करती है। उनका विश्वास था कि भारतीयों को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होना चाहिए और अपने देश के मामलों में सक्रिय भागीदारी करनी चाहिए। गोखले का दृष्टिकोण आज भी प्रासंगिक है और भारतीय समाज में स्वशासन की आवश्यकता को उजागर करता है।
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