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हर्वट स्पेन्सर के प्राकृतिक अधिकार की अवधाराणा का वर्णन कीजिए।

हर्वट स्पेन्सर (1820-1903) एक प्रसिद्ध अंग्रेजी दार्शनिक, समाजशास्त्री और जीवविज्ञानी थे, जिनका योगदान समाज और राजनीति के सिद्धांतों में अत्यधिक महत्वपूर्ण है। उन्होंने समाज के विकास, नैतिकता और प्राकृतिक अधिकारों की अवधारणा पर गहराई से विचार किया। उनके विचारों ने मानव समाज और उसके अधिकारों को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसमें, हम स्पेन्सर की प्राकृतिक अधिकार की अवधारणा का विस्तृत वर्णन करेंगे।

प्राकृतिक अधिकार की परिभाषा

स्पेन्सर का मानना था कि प्राकृतिक अधिकार वे अधिकार हैं जो सभी मनुष्यों को उनके जन्म के साथ ही स्वाभाविक रूप से प्राप्त होते हैं। ये अधिकार किसी भी सामाजिक या राजनीतिक व्यवस्था द्वारा दिए नहीं जाते, बल्कि ये मानवता के लिए अंतर्निहित होते हैं। स्पेन्सर के अनुसार, प्राकृतिक अधिकारों में जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति के अधिकार शामिल हैं। उन्होंने कहा कि इन अधिकारों का उल्लंघन किसी भी व्यक्ति के लिए उचित नहीं है और इसे मानवता के खिलाफ अपराध माना जाना चाहिए।

स्पेन्सर का विकासवादी दृष्टिकोण

स्पेन्सर ने अपनी प्राकृतिक अधिकारों की अवधारणा को विकासवादी सिद्धांत से जोड़ा। उन्होंने समाज को एक जीवित प्राणी के रूप में देखा, जो धीरे-धीरे विकास करता है। उनके अनुसार, जैसे-जैसे समाज का विकास होता है, वैसे-वैसे प्राकृतिक अधिकारों की समझ और मान्यता भी बढ़ती है। स्पेन्सर का मानना था कि समाज में स्वतंत्रता और अधिकारों की मान्यता का विकास सामाजिक परंपराओं और सांस्कृतिक मूल्यों के माध्यम से होता है।

प्राकृतिक अधिकारों की उत्पत्ति

स्पेन्सर ने प्राकृतिक अधिकारों की उत्पत्ति का विश्लेषण करते समय प्राकृतिक कानून के सिद्धांत को आधार बनाया। उन्होंने तर्क किया कि प्राकृतिक अधिकार मानव के स्वाभाविक गुणों और आवश्यकताओं से उत्पन्न होते हैं। इन अधिकारों का मुख्य उद्देश्य मानव के विकास और कल्याण को सुनिश्चित करना है। स्पेन्सर के अनुसार, जब तक समाज में प्राकृतिक अधिकारों का संरक्षण नहीं होता, तब तक सामाजिक विकास संभव नहीं है।

स्वतंत्रता का महत्व

स्पेन्सर के प्राकृतिक अधिकारों की अवधारणा में स्वतंत्रता का एक महत्वपूर्ण स्थान है। उन्होंने स्वतंत्रता को मानव का सबसे मूलभूत अधिकार माना। उनके अनुसार, स्वतंत्रता का मतलब केवल व्यक्तिगत स्वतंत्रता नहीं है, बल्कि यह सामाजिक और राजनीतिक स्वतंत्रता को भी शामिल करता है। स्पेन्सर का मानना था कि स्वतंत्रता के बिना मानव विकास संभव नहीं है, और जब तक मानव अपने अधिकारों का प्रयोग स्वतंत्रता से नहीं कर सकता, तब तक उसका विकास रुक जाता है।

न्याय का सिद्धांत

स्पेन्सर ने न्याय के सिद्धांत को भी प्राकृतिक अधिकारों से जोड़ा। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक अधिकारों का उल्लंघन न्याय का उल्लंघन होता है। समाज का प्राथमिक कर्तव्य यह है कि वह अपने नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करे और किसी भी प्रकार के अन्याय को समाप्त करे। स्पेन्सर ने यह भी कहा कि जब समाज में अन्याय होता है, तो यह प्राकृतिक अधिकारों के प्रति एक चुनौती होती है और इसे समाप्त करना आवश्यक है।

सरकार और प्राकृतिक अधिकार

स्पेन्सर का विचार था कि सरकार का मुख्य उद्देश्य प्राकृतिक अधिकारों की रक्षा करना है। उन्होंने कहा कि सरकार को केवल तभी अधिकार मिलते हैं जब वह अपने नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करती है। अगर सरकार अपने अधिकारों का दुरुपयोग करती है और नागरिकों के प्राकृतिक अधिकारों का उल्लंघन करती है, तो नागरिकों को इसे चुनौती देने का अधिकार है। स्पेन्सर ने इस दृष्टिकोण को अपने विकासवादी सिद्धांत के माध्यम से और भी मजबूत किया।

समाज में असमानता

हालांकि स्पेन्सर ने प्राकृतिक अधिकारों की अवधारणा का समर्थन किया, लेकिन उन्होंने समाज में असमानता को भी स्वीकार किया। उनका मानना था कि समाज में विभिन्न प्रकार के व्यक्ति होते हैं, और सभी व्यक्तियों के अधिकार समान नहीं होते। उन्होंने कहा कि समाज में कुछ व्यक्तियों के अधिकार दूसरों की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण होते हैं। यह दृष्टिकोण उनके विकासवादी सिद्धांत से जुड़ा हुआ है, जिसमें वे कहते हैं कि प्राकृतिक चयन के माध्यम से समाज में कुछ लोग अधिक सक्षम होते हैं।

आलोचना

स्पेन्सर की प्राकृतिक अधिकारों की अवधारणा ने कई आलोचनाओं को जन्म दिया। कुछ आलोचकों ने उनके विकासवादी दृष्टिकोण को मानवाधिकारों की समझ के लिए सीमित माना। उनका कहना था कि स्पेन्सर का दृष्टिकोण समाज में असमानता को सही ठहराता है, जो मानवाधिकारों की सार्वभौमिकता के खिलाफ है। इसके अतिरिक्त, कुछ दार्शनिकों ने यह तर्क किया कि स्पेन्सर का प्राकृतिक अधिकारों का सिद्धांत समाज में संघर्ष को बढ़ावा देता है, क्योंकि यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता को अत्यधिक महत्व देता है।

निष्कर्ष

हर्वट स्पेन्सर की प्राकृतिक अधिकारों की अवधारणा एक महत्वपूर्ण दार्शनिक और राजनीतिक विचार है, जिसने समाज और मानवाधिकारों को समझने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके विचारों ने मानवता के अधिकारों की रक्षा और विकास की दिशा में एक मजबूत आधार प्रदान किया। स्पेन्सर के सिद्धांतों का अध्ययन आज भी प्रासंगिक है, खासकर उन सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों के संदर्भ में जो स्वतंत्रता, न्याय और मानवाधिकारों के संरक्षण से संबंधित हैं। उनके विचार यह दर्शाते हैं कि प्राकृतिक अधिकार केवल कानूनी अधिकार नहीं हैं, बल्कि यह मानवता के मूलभूत तत्व हैं, जो समाज के विकास में अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं।

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