ब्रिटेन में हुई औद्योगिक क्रांति के परिणाम
18वीं शताबदी के अंत और 19वीं शताबदी के प्रारंभ में ब्रिटेन में एक विशाल आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन हुआ, जिसे हम औद्योगिक क्रांति के नाम से जानते हैं। यह एक ऐतिहासिक घटना थी, जिसने न केवल ब्रिटेन के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक जीवन को प्रभावित किया, बल्कि पूरे विश्व को प्रभावित किया। औद्योगिक क्रांति ने मैन्युफैक्चरिंग, उत्पादन प्रक्रियाओं, और श्रम की प्रकृति में बदलाव की एक नई दिशा दी। इसका प्रभाव सिर्फ आर्थिक ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और राजनीतिक क्षेत्रों में भी गहरा था। इस प्रक्रिया के विभिन्न परिणाम थे, जिन्हें हम निम्नलिखित श्रेणियों में विभाजित कर सकते हैं।
1. आर्थिक परिणाम:
(i) औद्योगिकीकरण और उत्पादन में वृद्धि:
औद्योगिक क्रांति ने ब्रिटेन में औद्योगिकीकरण की प्रक्रिया को तेज किया। पहले कृषि आधारित अर्थव्यवस्था थी, लेकिन अब उद्योगों का तेजी से विस्तार हुआ। खासतौर पर कपड़ा उद्योग, लौह उद्योग, कोयला खनन और धातु उद्योग में भारी वृद्धि हुई। नई मशीनों और तकनीकों जैसे स्टीम इंजन ने उत्पादन क्षमता को कई गुना बढ़ा दिया। उत्पादन की गति और मात्रा दोनों में तेजी आई, और इससे माल की उपलब्धता और विक्रय में वृद्धि हुई।
(ii) वाणिज्यिक और वित्तीय विकास:
औद्योगिक क्रांति ने वाणिज्य और व्यापार को नया आकार दिया। शहरीकरण के कारण बड़े शहरों में बाजारों और व्यापारिक केंद्रों का विकास हुआ। इसी प्रकार, व्यापार नेटवर्क का विस्तार हुआ और विदेशों में ब्रिटेन का व्यापार बढ़ा। इसके परिणामस्वरूप, ब्रिटेन की वैश्विक आर्थिक शक्ति में वृद्धि हुई। इसके साथ ही, बैंकिंग, बीमा और वित्तीय सेवाओं के क्षेत्र में भी सुधार हुए, जिनका औद्योगिक गतिविधियों के लिए महत्वपूर्ण योगदान था।
2. सामाजिक परिणाम:
(i) शहरीकरण:
औद्योगिक क्रांति के कारण गांवों से शहरों की ओर लोगों का प्रवास शुरू हुआ। छोटे-छोटे कृषि गांवों से बड़ी औद्योगिक बस्तियों और शहरों की ओर जनसंख्या का रुख हुआ। इससे शहरीकरण की प्रक्रिया तेज हुई। उदाहरण के लिए, मैनचेस्टर, लिवरपूल, बर्मिंघम जैसी शहरों का विकास हुआ, जो औद्योगिक केंद्र बन गए थे। हालांकि, शहरीकरण ने कुछ समस्याएँ भी उत्पन्न कीं, जैसे आवास की कमी, स्वास्थ्य समस्याएं, और अपराध दर में वृद्धि।
(ii) कृषक वर्ग का शहरों में स्थानांतरण:
औद्योगिकीकरण ने किसानों को ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी इलाकों में काम की तलाश में जाने के लिए मजबूर किया। यह प्रक्रिया धीरे-धीरे पारंपरिक कृषि जीवन को समाप्त करती गई। किसानों को फैक्ट्रियों में काम करने के लिए विभिन्न श्रेणियों में विभाजित किया गया, जिनमें पुरुष, महिलाएं और बच्चे शामिल थे।
(iii) नए श्रमिक वर्ग का निर्माण:
औद्योगिक क्रांति ने श्रमिक वर्ग (वर्किंग क्लास) का निर्माण किया। फैक्ट्रियों में काम करने के लिए मजदूरों की भारी संख्या की आवश्यकता थी, जो मुख्य रूप से गरीब किसान और ग्रामीण श्रमिकों से आई थी। इस वर्ग का जीवन कठिन था, क्योंकि काम की शर्तें खतरनाक, लंबी और अत्यधिक श्रमसाध्य थीं। वे कम मजदूरी पर काम करते थे, और किसी प्रकार की श्रमिक अधिकारों की सुरक्षा भी नहीं थी।
3. सांस्कृतिक और पारंपरिक परिवर्तन:
(i) परिवार और महिला कार्यबल:
औद्योगिक क्रांति ने पारंपरिक परिवार संरचना को भी प्रभावित किया। पहले के समय में परिवार में सभी सदस्य खेतों में काम करते थे, लेकिन अब औद्योगिक कामकाजी माहौल में काम करने की आवश्यकता थी। विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों को फैक्ट्रियों में काम करने के लिए लगाया गया। हालांकि, यह काम अत्यधिक शारीरिक और मानसिक थकावट का कारण बनता था। धीरे-धीरे महिलाओं के लिए श्रमिक संगठनों और श्रमिक अधिकारों की मांग उठी, जो उनके कार्यकाजी जीवन की स्थितियों को बेहतर बनाने के लिए बनीं।
(ii) शिक्षा और प्रशिक्षण में बदलाव:
औद्योगिक क्रांति ने शिक्षा की आवश्यकता को भी महसूस कराया। शिक्षा को एक आवश्यक तत्व माना गया, क्योंकि मशीनों और तकनीकी कौशल को सीखने के लिए उन्नत शिक्षा की आवश्यकता थी। इस समय में स्कूलों और तकनीकी प्रशिक्षण संस्थानों की संख्या में वृद्धि हुई। इसके परिणामस्वरूप, समाज में एक नई पीढ़ी उत्पन्न हुई जो तकनीकी और व्यावसायिक दक्षताओं से लैस थी।
4. राजनीतिक परिणाम:
(i) नए श्रमिक अधिकारों और आंदोलन:
औद्योगिक क्रांति के कारण श्रमिकों की स्थिति में सुधार की आवश्यकता महसूस हुई। शोषण और अत्यधिक श्रम के खिलाफ श्रमिकों ने विभिन्न आंदोलनों की शुरुआत की। वे बेहतर कामकाजी परिस्थितियों, उच्च वेतन और अन्य अधिकारों की मांग कर रहे थे। इसके परिणामस्वरूप श्रमिक संघों और राजनीतिक आंदोलनों का निर्माण हुआ। 19वीं शताबदी में विभिन्न श्रमिक संघों ने सुधार की मांग की, जिनका असर ब्रिटेन की राजनीति पर पड़ा और कई श्रमिक अधिकारों का उदय हुआ।
(ii) राजनीतिक आंदोलन और लोकतंत्र का विकास:
औद्योगिक क्रांति के परिणामस्वरूप, ब्रिटेन में लोकतांत्रिक सुधारों की दिशा में भी बदलाव आया। 1832 का चुनाव सुधार अधिनियम, 1867 का दोहरा चुनाव सुधार अधिनियम और 1884 का चुनाव सुधार अधिनियम जैसे सुधारों ने वोट देने के अधिकार को व्यापक रूप से जनसंख्या तक फैलाया। इन सुधारों के माध्यम से श्रमिक वर्ग और अन्य निम्न वर्गों को राजनीतिक अधिकार मिले, और उनके लिए लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में भागीदारी का रास्ता खोला गया।
5. पर्यावरणीय परिणाम:
(i) प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन:
औद्योगिक क्रांति ने प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन शुरू कर दिया। कोयला, लौह अयस्क, और अन्य खनिज संसाधनों की मांग में वृद्धि हुई, जिससे पर्यावरण पर दबाव बढ़ा। इससे वनों की कटाई, जल स्रोतों का अव्यवस्थित उपयोग, और प्रदूषण की समस्या उत्पन्न हुई। कारखानों से निकलने वाले धुएं ने वायु प्रदूषण को बढ़ावा दिया, जिससे शहरी इलाकों में स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न होने लगीं।
(ii) जल और वायु प्रदूषण:
औद्योगिक क्रांति के दौरान कारखानों से निकलने वाला कचरा, धुआं और प्रदूषण ने पर्यावरण पर गंभीर प्रभाव डाला। कारखानों और उद्योगों के अपशिष्टों ने नदियों और जल स्रोतों को प्रदूषित किया, और इससे जलजनित बीमारियों का प्रसार हुआ। वायु प्रदूषण ने शहरों में जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित किया, जिससे सांस संबंधित बीमारियों का खतरा बढ़ा।
निष्कर्ष:
ब्रिटेन में औद्योगिक क्रांति ने न केवल उत्पादन और तकनीकी विकास में क्रांतिकारी बदलाव लाए, बल्कि इसके सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और पर्यावरणीय प्रभाव भी थे। हालांकि इसने ब्रिटेन को दुनिया की प्रमुख औद्योगिक शक्ति बना दिया, लेकिन इसके साथ ही सामाजिक असमानता, शोषण, और पर्यावरणीय समस्याओं को भी जन्म दिया। औद्योगिक क्रांति ने वैश्विक स्तर पर उत्पादन और व्यापार के नए आयाम खोले, और इसके परिणामस्वरूप पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था और समाज में महत्वपूर्ण परिवर्तन आए।
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