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प्राचीन युग में पर्यटन पर निबंध लिखे।

प्राचीन युग में पर्यटन पर निबंध

प्राचीन युग में पर्यटन की अवधारणा आज के आधुनिक पर्यटन से बहुत भिन्न थी, लेकिन तब भी यह एक महत्वपूर्ण सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधि थी। प्राचीन भारत में पर्यटन का मुख्य उद्देश्य धार्मिक यात्रा, ज्ञानार्जन, और सांस्कृतिक आदान-प्रदान था। विशेष रूप से भारतीय उपमहाद्वीप में प्राचीन काल से ही यात्रा का एक विशिष्ट रूप था, जिसमें तीर्थयात्राएं और आचार्यगमन प्रमुख रूप से शामिल थे। इस समय के पर्यटन का स्वरूप धार्मिक और सामाजिक आदर्शों से प्रेरित था, और इसे समाज के विकास एवं संस्कृति के प्रसार के रूप में देखा जाता था।

धार्मिक पर्यटन

प्राचीन भारत में पर्यटन का सबसे प्रमुख उद्देश्य धार्मिक यात्रा था। भारतीय समाज में विभिन्न धर्मों और आस्थाओं के अनुयायी अपनी धार्मिक अनुष्ठान और पूजा-पाठ के लिए विभिन्न तीर्थ स्थलों पर जाते थे। हिन्दू धर्म के अनुयायी खासकर गंगा, यमुनास, काशी, हरिद्वार, द्वारका, और अन्य प्रमुख स्थानों पर जाते थे, जहाँ वे स्नान करते थे, पूजा करते थे, और पवित्र जल का सेवन करते थे। इसके अलावा, बौद्ध धर्म के अनुयायी भी बोधगया, सारनाथ और कुशीनगर जैसे महत्वपूर्ण स्थानों पर जाते थे, जहाँ गौतम बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त किया था।

इसके अलावा, जैन धर्म के अनुयायी भी अपने धार्मिक ग्रंथों और आचार्यों के अनुसार तीर्थ स्थलों का दौरा करते थे, जैसे पाटन, गिरनार, और समेटशिखर। धार्मिक पर्यटन का उद्देश्य न केवल धार्मिक कर्तव्यों की पूर्ति था, बल्कि यह आत्मशुद्धि, मोक्ष प्राप्ति और समाज में धार्मिक सद्भावना को बढ़ावा देने के लिए भी किया जाता था।

ज्ञान और शिक्षा के लिए यात्रा

प्राचीन युग में शिक्षा का एक अन्य महत्वपूर्ण उद्देश्य ज्ञान प्राप्ति के लिए यात्रा करना था। धार्मिक यात्राओं के अलावा, महान आचार्य और विद्वान अपनी शिक्षा के विस्तार के लिए विभिन्न स्थानों पर जाते थे। शिक्षा और ज्ञान के आदान-प्रदान के लिए गुरुकुलों और विद्यापीठों की यात्रा की जाती थी।

प्राचीन भारत के प्रमुख विश्वविद्यालयों में तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला, और उज्जयिनी जैसी संस्थाएँ थीं, जो ज्ञान के प्रसार के केंद्र थे। यहाँ पर आने वाले विद्यार्थी दूर-दूर से आते थे, न केवल भारत के विभिन्न हिस्सों से, बल्कि विदेशी भूमि से भी। चाणक्य, पाणिनि, और आर्यभट्ट जैसे महान विद्वान और गुरु अपने ज्ञान की प्राप्ति और प्रचार के लिए विभिन्न स्थानों का भ्रमण करते थे। यह यात्रा न केवल व्यक्तिगत विकास के लिए थी, बल्कि समाज में विद्वता और संस्कृतियों के मेल-जोल को बढ़ावा देती थी।

सांस्कृतिक आदान-प्रदान

प्राचीन युग में यात्रा का एक और महत्वपूर्ण उद्देश्य सांस्कृतिक आदान-प्रदान था। भारतीय समाज में विभिन्न जातियाँ, धर्म, और भाषाएँ थीं, और प्राचीन काल में विभिन्न नगरों और क्षेत्रों के बीच सांस्कृतिक संपर्क की प्रक्रिया लगातार जारी रहती थी। व्यापारी, कलाकार, संगीतज्ञ, और शिल्पकार अपने कौशल और उत्पादों को दूसरे क्षेत्रों तक पहुँचाने के लिए यात्रा करते थे, और इस प्रक्रिया में विभिन्न संस्कृतियों का आदान-प्रदान होता था।

विशाल व्यापारी मार्ग, जैसे कि सिल्क रोड, के माध्यम से भारतीय लोग अन्य देशों के साथ व्यापार करते थे। इस मार्ग के माध्यम से भारत से चाँदी, रत्न, वस्त्र, मसाले, और अन्य कीमती वस्तुएँ विदेशों में जाती थीं, और विदेशी उत्पाद जैसे चीनी मिट्टी के बर्तन, कागज, और मसाले भारत में आते थे। व्यापार के साथ-साथ, यह सांस्कृतिक आदान-प्रदान का भी महत्वपूर्ण स्रोत था।

यात्रा की सुविधाएँ और साधन

प्राचीन युग में यात्रा के साधन आज के मुकाबले बहुत सीमित और कठिन थे, लेकिन फिर भी प्राचीन समाज ने विभिन्न प्रकार के यात्रा के साधन विकसित किए थे। प्राचीन भारतीय उपमहाद्वीप में यात्रा के लिए पैदल चलने, बैल गाड़ियों, नावों और ऊँटों का उपयोग किया जाता था। नदियाँ और जलमार्गों का उपयोग व्यापार और यात्रा के लिए किया जाता था। इस समय के महान यात्री जैसे ह्वेन त्सांग और फाहियान ने इन साधनों का उपयोग कर भारत और अन्य देशों का दौरा किया। इन यात्रियों ने अपनी यात्राओं के अनुभवों को लेखों और ग्रंथों में संकलित किया, जो आज भी हमारे लिए ऐतिहासिक स्रोतों के रूप में महत्वपूर्ण हैं।

निष्कर्ष

प्राचीन युग में पर्यटन का स्वरूप धार्मिक, सांस्कृतिक और ज्ञानार्जन से संबंधित था। उस समय की यात्राएँ न केवल व्यक्तिगत आत्मविकास के लिए थीं, बल्कि यह समाज में धार्मिक और सांस्कृतिक सहिष्णुता को बढ़ावा देने का भी एक महत्वपूर्ण माध्यम थीं। यात्रा के दौरान विभिन्न संस्कृतियों का आदान-प्रदान हुआ, जिससे समाज में विविधता और एकता दोनों का समागम हुआ। प्राचीन भारत में पर्यटन ने न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से समाज को समृद्ध किया, बल्कि वैश्विक स्तर पर भारतीय संस्कृति का प्रचार भी किया। आज भी हम इन प्राचीन यात्राओं से संबंधित स्थलों का दौरा करते हैं और इन स्थलों पर बसी धरोहरों को देख सकते हैं, जो हमारे समृद्ध इतिहास और संस्कृति का प्रतीक हैं।

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