ब्रिटिश प्रशासन की विशेषताएँ
ब्रिटिश शासन ने भारत में 200 वर्षों तक शासन किया, और इस दौरान भारतीय प्रशासन की संरचना, नीतियाँ और कार्यप्रणाली में अनेक महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए। ब्रिटिश प्रशासन की विशेषताएँ मुख्य रूप से सत्ता के केंद्रीकरण, सैन्य नियंत्रण, और भारतीय समाज और प्रशासन के सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक पहलुओं पर प्रभाव डालने वाली नीतियों में देखी जा सकती हैं। ब्रिटिश शासन के प्रशासनिक ढाँचे की प्रमुख विशेषताओं पर चर्चा की जा सकती है:
1. केंद्रीकरण और केंद्रीकृत सत्ता
ब्रिटिश शासन में प्रशासन का ढाँचा पूरी तरह से केंद्रीकृत था। सत्ता का केंद्रीकरण ब्रिटिश सरकार के प्रमुख उद्देश्य था, ताकि भारतीय उपमहाद्वीप पर मजबूत नियंत्रण बनाए रखा जा सके। केंद्रीय सरकार ने शासन की प्रमुख जिम्मेदारी अपने हाथों में रखी, और भारतीय प्रांतों और राज्यों में केंद्र का हस्तक्षेप काफी अधिक था। इस केंद्रीकृत शासन प्रणाली के कारण राज्यों को सीमित स्वायत्तता दी गई, और केंद्रीय प्रशासन ने महत्वपूर्ण निर्णयों पर अपना नियंत्रण रखा। उदाहरण स्वरूप, भारत के विभिन्न प्रांतों का शासन ब्रिटिश गवर्नर-जनरल और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन था।
2. सैन्य प्रशासन और पुलिस व्यवस्था
ब्रिटिश प्रशासन का एक प्रमुख हिस्सा सैन्य नियंत्रण और पुलिस व्यवस्था थी। ब्रिटिश शासन के तहत भारतीय समाज में सैन्य और पुलिस की शक्ति का विस्तार हुआ। ब्रिटिश साम्राज्य के तहत सैन्य बलों का प्रमुख उद्देश्य भारतीयों पर नियंत्रण बनाए रखना था। सैन्य बलों को भारतीय समाज में विद्रोहों और असंतोष को कुचलने के लिए तैयार किया गया था। विशेषकर 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद, ब्रिटिश प्रशासन ने पुलिस व्यवस्था को और सख्त किया। पुलिस को केवल अपराधों की रोकथाम का जिम्मा नहीं सौंपा गया, बल्कि इसे स्थानीय प्रशासन की शक्ति को बनाए रखने और समाज में अनुशासन स्थापित करने का भी कार्य सौंपा गया।
3. शासन की संरचना और ब्यूरोक्रेसी
ब्रिटिश शासन के तहत भारत में प्रशासन की संरचना काफी जटिल और व्यवस्थित थी। ब्रिटिश गवर्नर-जनरल और उनकी सलाहकार परिषद भारत के उच्चतम प्रशासनिक अधिकारी थे। इसके बाद, विभिन्न प्रांतों में ब्रिटिश गवर्नर और उनके अधीन कार्य करने वाले सरकारी अधिकारी प्रशासनिक कार्यों का संचालन करते थे। भारतीयों को उच्च प्रशासनिक पदों पर नियुक्ति से वंचित किया गया था, और अधिकांश महत्वपूर्ण पदों पर ब्रिटिश नागरिकों को ही रखा गया था। भारतीयों को निचले स्तर पर प्रशासन में शामिल किया गया, और ये अधिकारी ज्यादातर कचहरी और निचले प्रशासनिक कार्यों तक सीमित थे।
ब्रिटिश शासन की संरचना में भारतीय प्रशासन का एक मजबूत ब्यूरोक्रेसी प्रणाली थी, जिसे "कुली प्रशासन" कहा जाता था। यह एक प्रबंधन तंत्र था, जिसमें प्रशासनिक अधिकारियों की नियुक्ति और पदस्थापना कड़ी प्रक्रिया से होती थी।
4. कर प्रणाली और भूमि सुधार
ब्रिटिश प्रशासन ने भारत में कर प्रणाली को ब्रिटिश शासन के फायदे के लिए पुनर्गठित किया। अंग्रेजों ने "लैंड रेवेन्यू" (भूमि राजस्व) प्रणाली को लागू किया, जिसे राजा द्वारा लोगों से भूमि कर एकत्र करने के रूप में पुनर्निर्धारित किया गया था। इसके माध्यम से राज्य अपनी आय को बढ़ाने में सफल रहा, लेकिन भारतीय किसानों पर भारी दबाव भी पड़ा। इस कर प्रणाली में सुधार की बजाय, ब्रिटिशों ने इसे और भी सख्त बना दिया और किसानों से अत्यधिक कर वसूला गया।
इसके अलावा, अंग्रेजों ने "जमींदारी प्रथा" को बढ़ावा दिया, जो भारतीय कृषि व्यवस्था को और कमजोर कर दिया। जमींदारों के अधिकारों का विस्तार किया गया और किसानों को भूमि के मालिकों के हाथों में छोड दिया गया, जिससे उनकी स्थिति और भी दयनीय हो गई।
5. सांस्कृतिक और सामाजिक नीति
ब्रिटिश प्रशासन ने भारतीय समाज को अपनी सत्तावादी नीति के अनुरूप ढालने की कोशिश की। इसके तहत, भारतीय समाज में शिक्षा, न्याय और धर्म के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण बदलाव किए गए। ब्रिटिश शासन के दौरान, विधिक सुधारों की प्रक्रिया में कोडिफिकेशन (संहिताबद्ध करना) को प्रमुख स्थान मिला, उदाहरण स्वरूप भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (Indian Evidence Act) का निर्माण किया गया। इसके अलावा, सामाजिक सुधार की दिशा में भी कुछ कदम उठाए गए, जैसे सती प्रथा पर प्रतिबंध और बाल विवाह के खिलाफ कदम।
हालाँकि, ब्रिटिशों ने भारतीय समाज में कुछ सुधारों की शुरुआत की, लेकिन उनकी नीति हमेशा अपनी उपनिवेशवादी स्थिति को बनाए रखने के उद्देश्य से थी। ब्रिटिशों ने भारतीयों के लिए शिक्षा के अवसरों को सीमित रखा और भारतीय समाज को कमजोर करने के लिए जातिवाद और धर्म के आधार पर विभाजन को बढ़ावा दिया।
6. कानून और न्यायपालिका
ब्रिटिश प्रशासन में भारतीय न्यायपालिका को पूरी तरह से ब्रिटिश कानूनों के अधीन कर दिया गया था। इसके तहत, भारतीय अदालतों की संरचना ब्रिटिश न्याय प्रणाली के अनुसार बनाई गई। अदालतों में अंग्रेजी भाषा का उपयोग अनिवार्य किया गया, और भारतीयों के लिए उच्च न्यायालयों में पहुंचना काफी कठिन था। यह व्यवस्था भारतीयों के खिलाफ भेदभावपूर्ण थी, और उन्हें न्याय प्राप्त करने में कई कठिनाइयाँ होती थीं। ब्रिटिश शासन ने भारतीय न्याय व्यवस्था को अपने नियंत्रण में रखा और इसे ब्रिटिश हितों के अनुकूल बनाया।
निष्कर्ष
ब्रिटिश प्रशासन की संरचना में कई पहलुओं को देखा जा सकता है, जैसे केंद्रीकरण, सैन्य नियंत्रण, ब्यूरोक्रेसी, कर व्यवस्था, और सांस्कृतिक हस्तक्षेप। ब्रिटिशों ने भारतीय समाज को अपने प्रशासनिक नियंत्रण के तहत एक व्यवस्था में ढाला, जिसका मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्य के लाभ के लिए भारतीय संसाधनों का शोषण करना था। यह प्रशासनिक व्यवस्था भारतीयों के लिए बहुत सीमित अवसर और स्वतंत्रता प्रदान करती थी, और इसके परिणामस्वरूप भारतीय समाज में असंतोष और विद्रोह पैदा हुआ, जो स्वतंत्रता संग्राम के रूप में परिणत हुआ।
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