जनसंचार के सिद्धांत वह मार्गदर्शक सिद्धांत हैं जो यह निर्धारित करते हैं कि संचार की प्रक्रिया किस प्रकार कार्य करती है और कैसे विभिन्न माध्यमों से सूचना का आदान-प्रदान किया जाता है। जनसंचार का प्रभाव समाज पर गहरा होता है, और इसके सिद्धांत समाज में संचार की प्रक्रिया को बेहतर समझने और विश्लेषण करने के लिए महत्वपूर्ण हैं। इनमें विभिन्न प्रकार के सिद्धांत शामिल हैं जो संचारक (sender), प्राप्तकर्ता (receiver), संदेश (message), और माध्यम (medium) के बीच संबंध को परिभाषित करते हैं। जनसंचार के कुछ प्रमुख सिद्धांतों का विवेचन नीचे किया गया है:
1. सूचना-तरीकी सिद्धांत (Transmission Theory)
सूचना-तरीकी सिद्धांत या ट्रांसमिशन थ्योरी, जो कि अधिकतर प्रारंभिक संचार सिद्धांतों से संबंधित है, इस बात पर केंद्रित है कि संचार का उद्देश्य सूचनाओं का प्रसारण है। इस सिद्धांत के अनुसार, संचार एक रैखिक प्रक्रिया है जिसमें संदेश एक स्रोत से प्राप्तकर्ता तक पहुँचता है। इस प्रक्रिया में संचारक (sender) एक संदेश (message) तैयार करता है, जिसे वह एक माध्यम (medium) के माध्यम से प्राप्तकर्ता (receiver) तक पहुँचाता है। यह सिद्धांत इस बात पर आधारित है कि संदेश स्पष्ट और निष्कलंक तरीके से पहुँचाया जाए, ताकि उसे प्राप्त करने वाले व्यक्ति के द्वारा सही रूप से समझा जा सके।
यह सिद्धांत संदेश के आदान-प्रदान के इस रैखिक मॉडल को प्राथमिकता देता है, जिसमें केवल एक दिशा में संचार होता है। इसमें "शोर" (noise) जैसे तत्वों को भी शामिल किया जाता है, जो संचार की प्रक्रिया में व्यवधान डालते हैं और संदेश को सही तरीके से प्राप्त करने में कठिनाई उत्पन्न कर सकते हैं। इस सिद्धांत का सबसे प्रसिद्ध रूप है शैनन और वीवर का सूचना सिद्धांत (Shannon-Weaver Model), जिसमें संदेश के प्रेषण से लेकर प्राप्ति तक के सभी चरणों को विश्लेषित किया गया है।
2. संवेदनशीलता सिद्धांत (Hypodermic Needle Theory)
संवेदनशीलता सिद्धांत, जिसे "बुलेट थ्योरी" भी कहा जाता है, यह मानता है कि मीडिया का प्रभाव सीधे और तीव्र होता है। इसके अनुसार, मीडिया के संदेशों का सीधा प्रभाव जनता पर पड़ता है, जैसे कि एक सुई के माध्यम से सीधे शरीर में दवाइयां पहुँचाई जाती हैं। इस सिद्धांत के अनुसार, जब मीडिया किसी विचार या संदेश को प्रसारित करता है, तो वह तुरंत और पूरी तरह से प्राप्तकर्ता के मन में समा जाता है, बिना किसी प्रतिरोध या आलोचना के।
यह सिद्धांत विशेष रूप से 1930-40 के दशक में लोकप्रिय था, जब नाजी प्रचार या युद्ध के समय मीडिया के प्रभाव को लेकर चिंताएँ थीं। हालांकि, इस सिद्धांत को आलोचनाएँ भी मिलीं क्योंकि यह मानता है कि जनता पूरी तरह से मीडिया के प्रभाव में है, जो कि वास्तविकता से काफी दूर था। यह सिद्धांत जनता को निष्क्रिय और संचार के प्रति प्रतिक्रियाशील (passive and receptive) मानता है, जबकि वास्तविकता में लोग अधिक सक्रिय होते हैं और विभिन्न दृष्टिकोणों से विचार करते हैं।
3. दो-चरणीय प्रवाह सिद्धांत (Two-Step Flow Theory)
दो-चरणीय प्रवाह सिद्धांत, जिसे पॉल लाजर्सफील्ड और इलियट आर्मस्टांग द्वारा विकसित किया गया था, यह मानता है कि मीडिया का प्रभाव सीधे प्राप्तकर्ता तक नहीं पहुँचता, बल्कि एक मध्यवर्ती व्यक्ति (opinion leader) के माध्यम से होता है। इसके अनुसार, मीडिया पहले प्रभावशाली व्यक्तियों तक संदेश पहुँचाता है, जो फिर इसे अपनी राय और प्रभाव के तहत आम जनता तक पहुँचाते हैं।
यह सिद्धांत इस बात को सिद्ध करता है कि मीडिया का प्रभाव हमेशा "top-down" नहीं होता; बल्कि यह विभिन्न सामाजिक नेटवर्कों के माध्यम से फैलता है। ये "opinion leaders" अपने समाज या समुदाय में प्रभावशाली होते हैं और वे मीडिया से प्राप्त जानकारी को दूसरों तक पहुँचाते हैं। इस सिद्धांत ने यह स्पष्ट किया कि मीडिया के प्रभाव में भी समाज के सामाजिक संरचनाओं और संपर्कों का बड़ा योगदान होता है।
4. केंद्रित और विकेंद्रित सिद्धांत (Centering and Decentering Theory)
यह सिद्धांत संचार के प्रभाव को सामाजिक संरचनाओं और शक्ति वितरण से जोड़ता है। इसके अनुसार, सत्ता और प्रभाव हमेशा केंद्रित नहीं रहते। पहले के समय में मीडिया का नियंत्रण कुछ बड़े संस्थानों या सरकारों के हाथ में था, लेकिन अब तकनीकी विकास और इंटरनेट के कारण यह विकेंद्रित (decentralized) हो गया है।
इंटरनेट, सोशल मीडिया, और अन्य डिजिटल प्लेटफार्मों के जरिए लोगों को एक दूसरे से जोड़ने में आसानी हुई है, जिससे एक नया प्रकार का "विकेंद्रित संचार" उत्पन्न हुआ है। आज की दुनिया में कोई भी व्यक्ति, समूह या समुदाय सोशल मीडिया पर विचार साझा कर सकता है, और यह विचार तेजी से फैल सकते हैं। विकेंद्रित सिद्धांत यह स्पष्ट करता है कि आधुनिक संचार प्रणाली में शक्ति और प्रभाव केवल मीडिया के बड़े संस्थानों तक सीमित नहीं रहते, बल्कि ये व्यापक रूप से विभिन्न छोटे समुदायों और व्यक्तियों के पास पहुँच गए हैं।
5. सामाजिक जिम्मेदारी सिद्धांत (Social Responsibility Theory)
सामाजिक जिम्मेदारी सिद्धांत, जो कि 20वीं सदी के मध्य में विकसित हुआ, मीडिया के प्रभाव और जिम्मेदारी को लेकर एक महत्वपूर्ण दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। इसके अनुसार, मीडिया को अपनी सामाजिक जिम्मेदारी समझनी चाहिए, और उसे लोकतंत्र, समाज और सार्वजनिक भलाई के लिए काम करना चाहिए। मीडिया को स्वतंत्रता तो मिलनी चाहिए, लेकिन यह जिम्मेदारी के साथ होनी चाहिए।
इस सिद्धांत के अनुसार, मीडिया को अपने दर्शकों को सटीक, निष्पक्ष, और विविध प्रकार की जानकारी प्रदान करनी चाहिए, और साथ ही समाज के कमजोर वर्गों की आवाज़ को भी मुखर करना चाहिए। मीडिया का उद्देश्य केवल व्यवसायिक लाभ नहीं होना चाहिए, बल्कि यह समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने का एक उपकरण होना चाहिए।
6. कंफ्लिक्ट सिद्धांत (Conflict Theory)
कंफ्लिक्ट सिद्धांत, जिसका आधार मार्क्सवादी विचारधारा पर है, यह मानता है कि मीडिया का काम केवल एक "दृश्य-प्रसारण" का नहीं होता, बल्कि यह समाज में विद्यमान सत्ता संरचनाओं और संघर्षों को भी परिलक्षित करता है। इसके अनुसार, मीडिया हमेशा सत्ता के हितों को संरक्षण देने वाले रूप में कार्य करता है, और यह उन वर्गों की आवाज़ को दबा देता है जिनके पास सत्ता और संसाधनों का अभाव होता है।
मीडिया के माध्यम से सत्ता वर्ग समाज के आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक संसाधनों को नियंत्रित करता है, और यह उन संघर्षों को छिपाने या गलत तरीके से प्रस्तुत करने का काम करता है जो समाज में चल रहे होते हैं।
निष्कर्ष
जनसंचार के सिद्धांत हमें संचार की प्रक्रिया, उसके प्रभाव, और मीडिया की भूमिका को समझने में मदद करते हैं। इन सिद्धांतों के माध्यम से हम यह जान सकते हैं कि संचार का प्रभाव केवल संदेश तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समाज की संरचनाओं, सामाजिक रिश्तों और सत्ता के संघर्षों को भी प्रभावित करता है। जनसंचार के ये सिद्धांत आधुनिक समाज में मीडिया और संचार के महत्व को स्पष्ट करते हैं और संचार के समग्र प्रभाव को समाज में एक गहरी समझ के साथ देखने में मदद करते हैं।
Subscribe on YouTube - NotesWorld
For PDF copy of Solved Assignment
Any University Assignment Solution
