जर्मनी के एकीकरण पर निबंध
19वीं शताबदी के मध्य तक जर्मनी एक एकीकृत राष्ट्र के रूप में अस्तित्व में नहीं था। इसके स्थान पर विभिन्न छोटे-छोटे राज्य और राज्य-संघ (जैसे कि पर्शिया, बवेरिया, सैक्सनी, आदि) थे, जो अपनी-अपनी राजनीति और आंतरिक मामलों में स्वतंत्र थे। जर्मनी के एकीकरण की प्रक्रिया ने न केवल जर्मन राष्ट्रवाद को जन्म दिया, बल्कि यह यूरोपीय राजनीति में भी एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। जर्मनी के एकीकरण की यह यात्रा 1848 की क्रांतियों के बाद से लेकर 1871 में सम्राट विल्हेम I द्वारा जर्मनी के साम्राज्य के रूप में एकीकरण तक चली। इस निबंध में हम जर्मनी के एकीकरण के प्रमुख कारणों, घटनाओं और परिणामों पर चर्चा करेंगे।
1. जर्मनी का राजनीतिक और सामाजिक परिप्रेक्ष्य
19वीं शताबदी की शुरुआत में जर्मनी का राजनीतिक नक्शा बहुत खंडित था। 1815 में, वियना सम्मेलन के बाद, जर्मनी का क्षेत्रीय गठन हुआ, जिसमें कुल 39 स्वतंत्र राज्य शामिल थे, जिन्हें जर्मन संघ (German Confederation) कहा जाता था। इन राज्यों के बीच कोई सांस्कृतिक या राजनीतिक एकता नहीं थी और प्रत्येक राज्य की अपनी स्वतंत्र सरकार थी। हालांकि, इनमें से कुछ राज्य जर्मन राष्ट्रवाद की भावना से प्रेरित थे, लेकिन सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से उनके बीच बहुत भिन्नताएँ थीं।
2. नवीनतम घटनाओं और जर्मन राष्ट्रवाद का उदय
जर्मनी में राष्ट्रवाद की भावना 19वीं शताबदी के पहले दशकों में तेजी से फैलने लगी। फ्रांसीसी क्रांति (1789) और नेपोलियन युद्धों (1803-1815) ने जर्मनी के विभिन्न हिस्सों में राजनीतिक जागरूकता और बदलाव के विचारों को प्रेरित किया। नेपोलियन के शासन ने जर्मन राज्यों को अपने नियंत्रण में लिया, लेकिन इसके बाद जर्मन संघ के गठन में मदद भी की। नेपोलियन की हार के बाद, जर्मन राज्यों में एक राष्ट्रवादी भावना जगी, जो अपने अलग-अलग राज्यों को एकजुट करने का उद्देश्य रखती थी।
1848 में जर्मनी में एक बड़ा आंदोलन हुआ, जिसे जर्मन क्रांति या 1848 की क्रांतियाँ कहा जाता है। हालांकि, इस आंदोलन में सफलता नहीं मिली, लेकिन इसने जर्मन राज्यों में संविधान, नागरिक अधिकारों और एक राष्ट्रीय राज्य की मांग को बल दिया।
3. प्रुशिया का नेतृत्व और ओटो वॉन बिस्मार्क का योगदान
जर्मनी के एकीकरण में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका प्रुशिया और उसके प्रधानमंत्री ओटो वॉन बिस्मार्क ने निभाई। बिस्मार्क एक दूरदर्शी और कुशल राजनीतिज्ञ थे, जिन्होंने जर्मनी के एकीकरण की प्रक्रिया को व्यावहारिक रूप से पूरा किया। उनका प्रमुख उद्देश्य जर्मनी को एकीकृत करना था, लेकिन वे यह चाहते थे कि इस प्रक्रिया में प्रुशिया का प्रभुत्व बना रहे।
(i) डेनमार्क युद्ध (1864):
1864 में, प्रुशिया ने ऑस्ट्रिया के साथ मिलकर डेनमार्क के खिलाफ युद्ध लड़ा और श्लेस्विग और होल्स्टीन क्षेत्रों पर विजय प्राप्त की। यह युद्ध जर्मन राज्यों के बीच सहयोग और एकजुटता की भावना को बढ़ाने में सहायक था।
(ii) ऑस्ट्रो-प्रुशियाई युद्ध (1866):
ऑस्ट्रिया और प्रुशिया के बीच 1866 में युद्ध हुआ, जिसे ऑस्ट्रो-प्रुशियाई युद्ध कहा जाता है। बिस्मार्क ने इसे सैन्य और कूटनीतिक दृष्टिकोण से बहुत कुशलता से संचालित किया। इस युद्ध में प्रुशिया की जीत हुई और ऑस्ट्रिया को जर्मन संघ से बाहर कर दिया गया। इसके बाद, 22 जर्मन राज्यों ने उत्तरी जर्मन संघ (North German Confederation) का गठन किया, जिसमें प्रुशिया का नेतृत्व था। यह जर्मन एकीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।
(iii) फ्रांसीसी-प्रुशियाई युद्ध (1870-71):
फ्रांसीसी-प्रुशियाई युद्ध (1870-71) जर्मन एकीकरण की अंतिम कड़ी साबित हुआ। बिस्मार्क ने फ्रांस को युद्ध के लिए उकसाया, ताकि दक्षिणी जर्मन राज्यों को उत्तरी जर्मन संघ में शामिल किया जा सके। फ्रांस के साथ युद्ध में प्रुशिया की विजय ने न केवल जर्मन राज्यों को एकजुट किया, बल्कि 18 जनवरी 1871 को बर्लिन के महल में सम्राट विल्हेम I को जर्मन साम्राज्य का सम्राट घोषित किया गया। इस प्रकार, जर्मनी का एकीकरण पूरा हुआ और जर्मन साम्राज्य की स्थापना हुई।
4. जर्मनी का नया साम्राज्य और उसके प्रभाव
1871 में जर्मन साम्राज्य के गठन के बाद, जर्मनी यूरोप की एक प्रमुख शक्ति बन गया। जर्मनी के एकीकरण के साथ ही यूरोपीय राजनीति का संतुलन बदल गया। जर्मनी ने अपनी औद्योगिक शक्ति, सेना और तकनीकी उन्नति के बल पर यूरोप और दुनिया के अन्य हिस्सों में महत्वपूर्ण प्रभाव डाला। जर्मनी का एकीकरण यूरोपीय राजनीति में एक नया परिप्रेक्ष्य लेकर आया, जो बाद में पहले विश्व युद्ध का कारण भी बना।
जर्मनी के एकीकरण ने यह साबित किया कि राष्ट्रवाद और सैन्य शक्ति के बल पर कोई भी विभाजित क्षेत्र एकीकृत किया जा सकता है। बिस्मार्क की कुशल कूटनीति और प्रुशिया की सैन्य शक्ति ने जर्मनी को एकजुट किया और इसे यूरोप की सबसे ताकतवर शक्ति बना दिया। इसके बाद जर्मनी के साम्राज्य में सुधारात्मक कदम उठाए गए, जैसे कि औद्योगिकीकरण, सामाजिक कल्याण योजनाएं, और बिस्मार्क की "संविधानिक" कूटनीति।
5. निष्कर्ष
जर्मनी के एकीकरण की प्रक्रिया एक लंबा और संघर्षपूर्ण सफर था, जिसमें जर्मन राष्ट्रवाद, प्रुशिया की सैन्य शक्ति, और बिस्मार्क की कुशल कूटनीति का बड़ा हाथ था। यह एकीकरण यूरोपीय राजनीति के एक नए अध्याय की शुरुआत थी, जिसने जर्मनी को न केवल यूरोप, बल्कि पूरी दुनिया में एक प्रमुख शक्ति बना दिया। बिस्मार्क ने जिस तरह से जर्मनी को एकीकृत किया, वह एक ऐतिहासिक उदाहरण है कि किस प्रकार कूटनीति, शक्ति और राष्ट्रवाद के मिश्रण से किसी देश को एकजुट किया जा सकता है।
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