प्राचीन ऐतिहासिक स्रोत के आधार पर पर्यावरण के विभिन्न परिप्रेक्ष्यों पर चर्चा
प्राचीन भारत में पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग एवं संरक्षण महत्वपूर्ण विषय रहे हैं, जिनका उल्लेख विभिन्न ऐतिहासिक स्रोतों में मिलता है। ये स्रोत मुख्य रूप से पुराणों, वेदों, महाकाव्यों, आर्ष साहित्य और यात्रा वृतांतों के रूप में उपलब्ध हैं। इन स्रोतों में पर्यावरण के प्रति लोगों की सोच और उनके द्वारा प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग की दृष्टि को समझा जा सकता है।
1. वेदों और उपनिषदों में पर्यावरण का उल्लेख
वेदों और उपनिषदों में प्रकृति और पर्यावरण के प्रति गहरी श्रद्धा दिखाई देती है। ऋग्वेद में पृथ्वी, आकाश, जल, वायु और अग्नि जैसी प्राकृतिक शक्तियों को देवता माना गया है और इनसे जुड़े अनुष्ठान और यज्ञ किए गए। वेदों में प्राकृतिक संसाधनों का संतुलित उपयोग करने की बात कही गई है। उपनिषदों में जीवन के उद्देश्य और प्रकृति के साथ संतुलन की बात की गई है, जो इस बात को दर्शाता है कि प्राचीन भारतीय समाज में पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों के प्रति सम्मान था।
2. महाभारत और रामायण में पर्यावरण का चित्रण
महाभारत और रामायण जैसे महाकाव्यों में भी पर्यावरण के विभिन्न पहलुओं का उल्लेख मिलता है। इन ग्रंथों में वन, जल, पर्वत और नदी को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। उदाहरण के लिए, रामायण में भगवान राम को वनवास के दौरान जंगलों, नदियों और पहाड़ों से जुड़ा हुआ देखा जाता है। महाभारत में भी पर्यावरण के संरक्षण की आवश्यकता पर बल दिया गया है। युधिष्ठिर के द्वारा जल और भूमि के महत्व का उल्लेख इसे स्पष्ट करता है।
3. पुराणों में पर्यावरण की महिमा
प्राचीन पुराणों में पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों की महिमा का विस्तार से वर्णन किया गया है। इन ग्रंथों में विशेष रूप से नदी, पर्वत और वन को देवताओं का निवास स्थल माना गया है। गंगा नदी को देवी माना गया और उसके शुद्ध जल को जीवनदायिनी के रूप में प्रस्तुत किया गया। इसी तरह, पर्वतों और जंगलों को प्राकृतिक और धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना गया।
4. प्राचीन भारत में जल प्रबंधन
प्राचीन भारत में जल प्रबंधन की अत्यधिक महत्वपूर्ण प्रणाली विकसित की गई थी। विभिन्न शासकों और राजाओं द्वारा जलाशय, तालाब, कुएं, नहरों का निर्माण कराया गया। महाजनपदों में जल आपूर्ति के लिए नदियों और जलाशयों का संरक्षण किया जाता था। यह जल प्रबंधन न केवल खेती के लिए आवश्यक था, बल्कि समाज के जल स्रोतों के उचित उपयोग को भी सुनिश्चित करता था।
5. पर्यावरण और समाज का संबंध
प्राचीन भारतीय समाज में पर्यावरण और समाज के बीच गहरा संबंध था। कृषि और वाणिज्य के लिए प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग आवश्यक था, लेकिन समाज में पर्यावरणीय संतुलन को बनाए रखने की भी एक विशेष जिम्मेदारी थी। यह विचार "आर्यवर्त" के पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा करने के रूप में प्रकट हुआ, जिसमें जल, भूमि, वायु, और वन के महत्व को समझा गया।
निष्कर्ष
इस प्रकार, प्राचीन ऐतिहासिक स्रोतों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता और उसके संरक्षण की भावना स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। वेदों, उपनिषदों, महाकाव्यों और पुराणों में प्राकृतिक संसाधनों के महत्व को रेखांकित किया गया है और समाज के प्रत्येक सदस्य को पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बनाने की कोशिश की गई थी। ये प्राचीन विचार हमें आज के समय में भी पर्यावरण के संरक्षण और संतुलन की आवश्यकता की याद दिलाते हैं।
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