Type Here to Get Search Results !

Hollywood Movies

Solved Assignment PDF

Buy NIOS Solved Assignment 2025!

दक्‍कन और दक्षिण भारत की राजनीतिक स्थिति पर एक निबन्ध लिखिए |

दक्षिण भारत और दक्‍कन की राजनीतिक स्थिति पर निबंध

भारत का दक्‍कन और दक्षिण क्षेत्र ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। इन क्षेत्रों का भारतीय राजनीति में विशेष स्थान है, और इनकी राजनीतिक स्थिति समय-समय पर बदलती रही है। इन क्षेत्रों की राजनीतिक परंपराएँ, संघर्ष, और प्रगति न केवल इन क्षेत्रों तक सीमित रही हैं, बल्कि समग्र भारत की राजनीति पर भी प्रभाव डालती रही हैं। दक्‍कन और दक्षिण भारत की राजनीति का इतिहास विविधताओं से भरा हुआ है, जिसमें प्राचीन काल से लेकर मध्यकाल तक के संघर्ष, साम्राज्य, और आधुनिक काल के राजनीतिक दलों और आंदोलनों का समावेश है।

1. प्राचीन और मध्यकालीन राजनीतिक स्थिति

प्राचीन दक्षिण भारत में विभिन्न साम्राज्य और राजवंशों का उदय हुआ, जिनमें चोल, चेर, पांडीय, और काकतीय साम्राज्य प्रमुख थे। ये साम्राज्य व्यापार, सांस्कृतिक विकास, और प्रशासनिक प्रणाली में अत्यधिक प्रगति करते थे। दक्षिण भारत का ऐतिहासिक गौरव इतना विशाल था कि यह न केवल भारतीय उपमहाद्वीप में, बल्कि विदेशों में भी प्रसिद्ध था। उदाहरण के लिए, चोल साम्राज्य ने दक्षिण-पूर्व एशिया में भी अपनी छाप छोड़ी थी।

मध्यकाल में मुस्लिम आक्रमणों और दिल्ली सलतनत के प्रभाव से दक्षिण भारत की राजनीति पर एक नया मोड़ आया। दिल्ली सलतनत के पतन के बाद दक्‍कन में बीजापुर, गोलकुंडा, विजय नगर जैसे राज्य अस्तित्व में आए। इन राज्योँ ने अपनी सामरिक ताकत, प्रशासनिक व्यवस्था, और संस्कृति के माध्यम से एक नई राजनीतिक दिशा दी।

2. आधुनिक काल में राजनीतिक स्थिति

औपनिवेशिक काल के दौरान, ब्रिटिश साम्राज्य ने दक्षिण भारत और दक्‍कन को अपने नियंत्रण में लिया। यहां के प्रमुख राज्य जैसे हैदराबाद, मैसूर, और त्रावणकोर ब्रिटिश शासन के अधीन आ गए। हैदराबाद राज्य, जो एक स्वतंत्र राज्य था, 1948 में भारतीय संघ में शामिल हुआ।

दक्षिण भारत की राजनीति में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। कांग्रेस के नेतृत्व में दक्षिण भारत में स्वतंत्रता संग्राम ने आकार लिया। महात्मा गांधी, पं नेहरू, और सुभाष चंद्र बोस जैसे नेताओं ने यहाँ के लोगों को स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए प्रेरित किया। इसके अतिरिक्त, दक्षिण भारत के कुछ राज्यों में जैसे कि तमिलनाडु, कर्नाटका, आंध्र प्रदेश, और केरल में अलग-अलग जातीय और भाषाई आंदोलनों का उदय हुआ।

3. दक्षिण भारत के राज्यों में क्षेत्रीय राजनीति का उदय

स्वतंत्रता के बाद, दक्षिण भारत में क्षेत्रीय दलों का प्रभुत्व बढ़ा। तमिलनाडु में द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) और फिर अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (AIADMK) ने राजनीति में अपनी मजबूत उपस्थिति बनाई। इन दलों ने न केवल भाषा के मुद्दों पर जोर दिया, बल्कि सामाजिक न्याय और पिछड़े वर्गों के अधिकारों की बात की।

आंध्र प्रदेश में नंदमुरी तारक रामाराव (NTR) के नेतृत्व में तेलुगु देशम पार्टी (TDP) का उदय हुआ। कर्नाटका में भी कर्नाटका राज्य में क्षेत्रीय दलों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई, जैसे कि जनता दल (JDS)। केरल में, लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (LDF) और यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (UDF) के बीच लगातार चुनावी प्रतिस्पर्धा रही है।

4. दक्षिण भारत और दक्‍कन की राजनीति में जातिवाद और भाषावाद

दक्षिण भारत की राजनीति में जातिवाद और भाषावाद ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। जैसे कि तमिलनाडु में द्रविड़ आंदोलन ने तमिल भाषा और संस्कृति की रक्षा की बात की, वैसे ही आंध्र प्रदेश में तेलुगू भाषा के लिए संघर्ष किया गया। इसके अलावा, दक्षिण भारत में विभिन्न जातियों का राजनीति पर बड़ा प्रभाव रहा है। जहां एक ओर दलितों और पिछड़े वर्गों के लिए राजनीतिक दल संघर्ष कर रहे थे, वहीं दूसरी ओर उच्च जातियों के बीच भी शक्ति संघर्ष होता था।

5. आधुनिक राजनीति में बदलाव

वर्तमान में, दक्षिण भारत की राजनीति में कई बदलाव आए हैं। पहले जहां क्षेत्रीय दलों का प्रभाव अधिक था, अब राष्ट्रीय दलों का भी इन राज्यों में प्रभाव बढ़ा है। भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने भी दक्षिण भारत में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। हालांकि, यहां के लोग अभी भी अपनी भाषाओं, संस्कृतियों और क्षेत्रीय पहचान को बनाए रखने के लिए संघर्षरत हैं।

आधुनिक दक्षिण भारतीय राजनीति में भ्रष्टाचार, विकास, और रोजगार जैसे मुद्दे भी महत्वपूर्ण बन गए हैं। दक्षिण भारत के अधिकांश राज्यों में विकास की गति तेज़ है और इन्हें भारत के आर्थिक प्रगति के केंद्र के रूप में देखा जाता है। हालांकि, राजनीतिक स्थिरता और समान विकास की दिशा में कुछ चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं।

निष्कर्ष

दक्षिण भारत और दक्‍कन की राजनीतिक स्थिति ने भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। यहां के लोग अपनी सांस्कृतिक और भाषाई पहचान को बचाने के लिए संघर्ष करते रहे हैं। स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आज तक, दक्षिण भारत की राजनीति में समय-समय पर बदलाव आया है। वर्तमान समय में भी यह क्षेत्र राष्ट्रीय राजनीति में अपनी ताकत बनाए हुए है। यहाँ की राजनीति में जातिवाद, क्षेत्रवाद, और सामाजिक न्याय के मुद्दे प्रमुख बने हुए हैं। यह क्षेत्र न केवल भारत के भीतर, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

Subscribe on YouTube - NotesWorld

For PDF copy of Solved Assignment

Any University Assignment Solution

WhatsApp - 9113311883 (Paid)

Tags

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

Technology

close