औद्योगीकरण की प्रक्रिया को महात्मा गांधी ने एक व्यापक दृष्टिकोण से देखा और उसकी गहरी आलोचना की। उनके विचार मुख्य रूप से सामाजिक, आर्थिक, और पर्यावरणीय दृष्टिकोण पर आधारित थे। गांधी जी ने औद्योगीकरण को मानवता के लिए हानिकारक माना और इसे समाज में असमानता, बेरोजगारी, और सांस्कृतिक पतन के लिए जिम्मेदार ठहराया। उनका मानना था कि औद्योगीकरण न केवल मानव मूल्यों को नष्ट करता है, बल्कि यह प्रकृति के प्रति अनादर भी प्रकट करता है। इस विश्लेषण में गांधी जी की औद्योगीकरण पर आलोचना और उनके वैकल्पिक दृष्टिकोण को विस्तार से समझाया गया है।
1. औद्योगीकरण की आलोचना का सार
गांधी जी ने औद्योगीकरण को "राक्षसी सभ्यता" का प्रतीक कहा। उन्होंने इसे मानव जाति के नैतिक और आध्यात्मिक पतन का कारण बताया। उनके अनुसार, औद्योगीकरण के प्रमुख दोष निम्नलिखित थे:
(क) मानव मूल्यों का पतन
औद्योगीकरण के कारण भौतिकवाद बढ़ता है, और लोग नैतिक व आध्यात्मिक मूल्यों को भूल जाते हैं। गांधी जी ने पश्चिमी सभ्यता को "मशीनों की सभ्यता" कहा, जो मनुष्य के आत्मिक विकास के बजाय केवल भौतिक सुख-सुविधाओं पर जोर देती है।
(ख) असमानता और गरीबी
औद्योगीकरण का सबसे बड़ा प्रभाव यह है कि यह पूंजीवाद को जन्म देता है। बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियों और उद्योगों पर कुछ गिने-चुने लोगों का नियंत्रण होता है, जबकि सामान्य श्रमिकों की स्थिति दयनीय होती है। इससे समाज में आर्थिक असमानता बढ़ती है।
(ग) बेरोजगारी
मशीनों के बढ़ते उपयोग के कारण श्रमिकों की जरूरत कम हो जाती है, जिससे बेरोजगारी बढ़ती है। गांधी जी मानते थे कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था और हस्तशिल्प जैसे कुटीर उद्योगों का विकास करना ही रोजगार का सही तरीका है।
(घ) पर्यावरणीय क्षति
औद्योगीकरण से प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन होता है, जो पर्यावरणीय असंतुलन पैदा करता है। गांधी जी का मानना था कि प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर ही विकास संभव है।
(ङ) सांस्कृतिक पतन
औद्योगीकरण पश्चिमी जीवनशैली और मूल्यों को बढ़ावा देता है, जो भारतीय समाज की सांस्कृतिक धरोहर और परंपराओं को कमजोर करता है।
2. गांधी जी का वैकल्पिक दृष्टिकोण
गांधी जी ने औद्योगीकरण के बजाय विकेंद्रीकृत अर्थव्यवस्था और आत्मनिर्भरता पर जोर दिया। उनके वैकल्पिक दृष्टिकोण में निम्नलिखित बिंदु शामिल थे:
(क) कुटीर उद्योगों का समर्थन
गांधी जी ने छोटे और कुटीर उद्योगों को बढ़ावा दिया, जिनमें चरखा और हथकरघा प्रमुख थे। उनका मानना था कि यह ग्रामीण भारत की आत्मनिर्भरता को बनाए रखेगा और बेरोजगारी की समस्या का समाधान करेगा।
(ख) स्थानीय उत्पादन और उपभोग
गांधी जी स्वदेशी आंदोलन के माध्यम से यह संदेश देना चाहते थे कि हर गांव अपने उत्पादन और उपभोग में आत्मनिर्भर बने।
(ग) नैतिक विकास पर जोर
गांधी जी का मानना था कि वास्तविक विकास वह है जो नैतिक और आध्यात्मिक उत्थान लाए। उन्होंने कहा, "पैसे की पूजा के बजाय हमें मानवता की पूजा करनी चाहिए।"
(घ) सादा जीवन, उच्च विचार
गांधी जी ने सादा जीवन जीने की वकालत की। उनका मानना था कि सादा जीवन मनुष्य को मानसिक और शारीरिक शांति प्रदान करता है।
3. औद्योगीकरण की प्रक्रिया का दीर्घकालिक प्रभाव
गांधी जी ने भविष्यवाणी की थी कि अगर औद्योगीकरण को अनियंत्रित रूप से बढ़ने दिया गया, तो यह समाज और पर्यावरण दोनों के लिए विनाशकारी साबित होगा। आज के युग में उनकी यह चेतावनी सच साबित हो रही है:
- पर्यावरणीय समस्याएँ, जैसे जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण, और वनों की कटाई।
- वैश्विक आर्थिक असमानता और श्रमिकों के शोषण।
- मानसिक तनाव और सामाजिक संबंधों में गिरावट।
4. गांधी जी के विचारों की प्रासंगिकता
आज भी गांधी जी के विचार प्रासंगिक हैं। कई वैश्विक समस्याओं का समाधान उनके सिद्धांतों में छिपा हुआ है:
- हरित अर्थव्यवस्था: पर्यावरण को ध्यान में रखकर विकास करना।
- सामाजिक समानता: श्रमिकों और किसानों को सशक्त बनाना।
- स्थायी विकास: संसाधनों का सही तरीके से उपयोग और विकेंद्रीकृत उत्पादन।
निष्कर्ष
महात्मा गांधी ने औद्योगीकरण को समाज के लिए हानिकारक बताया और इसके स्थान पर आत्मनिर्भरता, कुटीर उद्योग, और सादगी पर जोर दिया। उनकी आलोचना मात्र औद्योगीकरण के खिलाफ नहीं थी, बल्कि यह एक चेतावनी थी कि विकास के नाम पर मानवता और पर्यावरण की अनदेखी न हो। आज के युग में, जब हम जलवायु संकट, आर्थिक असमानता और मानसिक तनाव का सामना कर रहे हैं, गांधी जी के विचार और भी अधिक प्रासंगिक हो गए हैं। उनके दर्शन को अपनाकर ही हम एक न्यायसंगत और संतुलित समाज की स्थापना कर सकते हैं।
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