महात्मा गांधी के विचारों में "साध्य" (लक्ष्य) और "साधन" (उपाय) का विशेष महत्व है। उनके अनुसार, संघर्ष के समाधान में साध्य और साधनों की पवित्रता और शुद्धता अनिवार्य है। गांधी जी का मानना था कि यदि साध्य सही है, तो साधन भी सही और नैतिक होने चाहिए। उनका यह दृष्टिकोण उनकी अहिंसात्मक और सत्याग्रह की नीतियों में झलकता है।
गांधी जी के सिद्धांतों का यह पहलू न केवल उनके व्यक्तिगत जीवन और राजनीतिक संघर्षों में महत्वपूर्ण था, बल्कि आज भी संघर्ष समाधान के लिए एक मार्गदर्शक सिद्धांत है। इस उत्तर में गांधी जी के विचारों का विस्तार से परीक्षण किया जाएगा और उनके दर्शन की प्रासंगिकता पर चर्चा की जाएगी।
1. साध्य और साधनों का परस्पर संबंध
गांधी जी के अनुसार, साध्य और साधन अलग-अलग नहीं हैं, बल्कि एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। उन्होंने लिखा,
"साध्य को सही करने के लिए साधनों को भी शुद्ध और पवित्र होना चाहिए।"
(क) साध्य की पवित्रता
साध्य का अर्थ है लक्ष्य या उद्देश्य। गांधी जी ने हमेशा यह कहा कि उद्देश्य शुद्ध, नैतिक और समाज के कल्याण के लिए होना चाहिए। यदि उद्देश्य गलत है, तो उसके लिए अपनाए गए साधन चाहे कितने भी अच्छे हों, वे नैतिक नहीं माने जा सकते।
(ख) साधनों की शुद्धता
गांधी जी ने साधनों की पवित्रता पर विशेष जोर दिया। उनका मानना था कि यदि साधन अनैतिक, हिंसक या भ्रष्ट हैं, तो साध्य चाहे कितना भी अच्छा हो, उसका कोई महत्व नहीं है। उन्होंने कहा,
"हिंसा के साधनों से अहिंसा का लक्ष्य प्राप्त नहीं किया जा सकता।"
2. सत्य और अहिंसा पर आधारित गांधी का दृष्टिकोण
गांधी जी के साध्य और साधनों के सिद्धांत का आधार उनके सत्य और अहिंसा के दर्शन में निहित है।
(क) सत्य
गांधी जी के लिए सत्य न केवल जीवन का परम लक्ष्य था, बल्कि यह उनके सभी कार्यों का आधार भी था। उन्होंने कहा,
"सत्य ही ईश्वर है।"सत्य का पालन करने के लिए साधनों की शुद्धता अनिवार्य है।
(ख) अहिंसा
गांधी जी ने अहिंसा को जीवन का आधार माना। उनका विश्वास था कि किसी भी संघर्ष का समाधान अहिंसा के माध्यम से ही संभव है। हिंसक साधनों से प्राप्त लक्ष्य स्थायी नहीं हो सकता।
3. संघर्ष के समाधान में साध्य और साधन
गांधी जी के सिद्धांतों का व्यवहारिक रूप उनके संघर्षों में देखा जा सकता है।
(क) असहयोग आंदोलन और सत्याग्रह
गांधी जी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ सत्याग्रह और असहयोग आंदोलन चलाए। इन आंदोलनों का उद्देश्य भारत की स्वतंत्रता (साध्य) प्राप्त करना था, लेकिन इसके लिए उन्होंने अहिंसा, सत्य, और नैतिकता (साधन) का पालन किया।
(ख) चंपारण सत्याग्रह
चंपारण में नील किसानों के शोषण को समाप्त करने के लिए गांधी जी ने सत्याग्रह का सहारा लिया। उन्होंने हिंसा का सहारा लिए बिना किसानों के अधिकारों की रक्षा की।
(ग) दांडी मार्च
गांधी जी ने नमक कानून के विरोध में दांडी मार्च किया। यह आंदोलन पूर्ण रूप से अहिंसात्मक था और साधन की पवित्रता को बनाए रखा गया।
4. गांधी जी के सिद्धांतों की आलोचना
गांधी जी के सिद्धांतों पर कई बार सवाल उठाए गए।
(क) आदर्शवादी दृष्टिकोण
आलोचकों का कहना है कि गांधी जी का दृष्टिकोण आदर्शवादी था और व्यावहारिक राजनीति में हमेशा लागू नहीं हो सकता।
(ख) विलंबित परिणाम
गांधी जी के अहिंसात्मक संघर्षों के परिणाम धीरे-धीरे आए। कई बार लोगों ने तत्काल परिणाम पाने के लिए हिंसात्मक तरीकों को प्राथमिकता दी।
5. गांधी जी के सिद्धांतों की प्रासंगिकता
आज के समय में भी गांधी जी के विचार संघर्ष समाधान के लिए अत्यंत प्रासंगिक हैं।
(क) राजनीतिक संघर्षों में
आधुनिक युग में संघर्ष समाधान के लिए अहिंसा और संवाद की जरूरत है। गांधी जी का सिद्धांत हिंसा और युद्ध से बचने का मार्ग दिखाता है।
(ख) सामाजिक संघर्षों में
जाति, धर्म, और अन्य सामाजिक मुद्दों को हल करने के लिए गांधी जी का सत्य और अहिंसा पर आधारित दृष्टिकोण प्रभावी है।
(ग) व्यक्तिगत जीवन में
व्यक्तिगत स्तर पर भी गांधी जी के सिद्धांत नैतिक और शांतिपूर्ण जीवन जीने में सहायक हैं।
निष्कर्ष
महात्मा गांधी के लिए साध्य और साधन का महत्व उनके जीवन और दर्शन का मूल आधार था। उनका मानना था कि यदि साधन गलत हैं, तो साध्य कभी भी सही नहीं हो सकता। उन्होंने सत्य और अहिंसा पर आधारित जीवन जीने का संदेश दिया और संघर्षों के समाधान के लिए नैतिकता और शुद्धता को अनिवार्य बताया। आज के समय में, जब दुनिया हिंसा, असमानता, और संघर्षों से जूझ रही है, गांधी जी के सिद्धांत और अधिक प्रासंगिक हो गए हैं। उनका दर्शन हमें सिखाता है कि सही साधनों से ही सही उद्देश्य प्राप्त किया जा सकता है।
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