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अवहट्ठ और पुरानी हिन्दी का तात्पर्य समझाइए।

अवहट्ठ और पुरानी हिन्दी

अवहट्ठ और पुरानी हिन्दी भारतीय भाषाओं के विकास के महत्वपूर्ण चरण हैं, जो हिंदी भाषा के इतिहास में प्रमुखता रखते हैं।

अवहट्ठ

अवहट्ठ (या अवहट्ठा) एक प्रकार की बोली है, जो भारतीय उपमहाद्वीप में प्रचलित पुरानी भारतीय भाषाओं से विकसित हुई है। यह विशेष रूप से मध्यकालीन काल में देखी जाती है। अवहट्ठ का प्रयोग मुख्यतः लोक गीतों, कहानियों, और सामूहिक सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों में किया जाता था। इस बोली में सरलता और स्वाभाविकता होती थी, जो लोगों के बीच संवाद को सहज बनाती थी। अवहट्ठ का अध्ययन हमें प्राचीन भारतीय समाज, संस्कृति और उनके सामाजिक ढांचे को समझने में मदद करता है। इसे विशेषकर उन स्थलों में देखा जा सकता है जहाँ परंपरागत लोक साहित्य और भाषा का समागम होता था।

पुरानी हिन्दी

पुरानी हिन्दी का तात्पर्य उस हिंदी से है, जो प्राचीन काल में बोली और लिखी जाती थी। यह भाषा मुख्यतः 12वीं से 18वीं शताब्दी तक प्रचलित थी। पुरानी हिन्दी में कई उपशाखाएँ शामिल हैं, जिनमें अवधी, ब्रज भाषा, और भोजपुरी प्रमुख हैं। इस समय के साहित्य में तुलसीदास की 'रामचरितमानस' और सूरदास की कविताएँ महत्वपूर्ण हैं।

पुरानी हिन्दी का भाषा विकास विभिन्न संस्कृतियों और भाषाओं के संपर्क से प्रभावित हुआ। इसमें संस्कृत, प्राकृत, और अपभ्रंश जैसी भाषाओं का योगदान रहा। इसके अलावा, यह अवधि हिंदी साहित्य की प्रगति और विकास के लिए महत्वपूर्ण थी, जिसमें कविता, कथा, और नाटक जैसे विभिन्न रूपों में लेखन हुआ।

निष्कर्ष

अवहट्ठ और पुरानी हिन्दी दोनों ही भारतीय भाषाओं के विकास में महत्वपूर्ण हैं। जहाँ अवहट्ठ ने लोक जीवन की सजीवता को दर्शाया, वहीं पुरानी हिन्दी ने साहित्यिक परंपरा को समृद्ध किया। ये दोनों ही चरण हिंदी के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर का अभिन्न हिस्सा हैं।

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