छायावादोत्तर कविता हिंदी साहित्य का एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जो छायावाद के प्रभाव के बाद की काव्यधारा को दर्शाता है। इस काल में कविता ने नए आयामों को छुआ और नई सोच, नई संवेदनाएँ, और नए प्रयोगों को अपनाया। दो प्रमुख धाराएँ, 'प्रयोजनवाद' और 'नई कविता', इस युग की पहचान हैं। इसमें हम इन दोनों धाराओं की अवधारणाओं को विस्तार से समझेंगे और देखेंगे कि कैसे ये छायावादोत्तर कविता को प्रभावित करती हैं।
1. छायावाद का अवसान
छायावाद (1920-1940) एक ऐसी काव्यधारा थी जिसने प्रेम, सौंदर्य, और प्रकृति की अनुभूतियों को प्रमुखता दी। इसमें कवियों ने अपने व्यक्तिगत अनुभवों को काव्य में अभिव्यक्त किया। लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, यह धारा अपनी सीमाओं में बंध गई और सामाजिक यथार्थ के प्रति कवियों की अनदेखी होने लगी। इससे प्रभावित होकर कवियों ने नए दृष्टिकोण और विषयों की खोज की, जिसके परिणामस्वरूप प्रयोजनवाद और नई कविता का उदय हुआ।
2. प्रयोजनवाद की अवधारणा
प्रयोजनवाद एक साहित्यिक धारणा है, जिसमें कवियों ने कविता को केवल कला के लिए नहीं, बल्कि समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी के रूप में देखा। इसके अंतर्गत, कविता का मुख्य उद्देश्य समाज में सुधार लाना, जनचेतना को जागृत करना, और सामाजिक यथार्थ को उजागर करना था। इस धारणा का प्रमुख उद्देश्य था कि कविता का एक स्पष्ट प्रयोजन होना चाहिए—चाहे वह राजनीतिक हो, सामाजिक हो, या फिर सांस्कृतिक।
2.1. प्रयोजनवाद के प्रमुख विशेषताएँ:
- सामाजिक जागरूकता: प्रयोजनवादी कवियों ने अपने लेखन में सामाजिक मुद्दों को प्राथमिकता दी। उन्होंने समाज के हाशिये पर रहने वाले लोगों, श्रमिकों, और शोषित वर्ग की आवाज को उभारा।
- राजनीतिक संदर्भ: इस धारणा के अंतर्गत कवियों ने राजनीतिक संदर्भों को भी अपने लेखन में शामिल किया। वे स्वतंत्रता संग्राम, जातिवाद, और साम्राज्यवाद के खिलाफ अपनी कविताओं के माध्यम से आवाज उठाते थे।
- अर्थ का स्पष्टता: प्रयोजनवादी कविता में अर्थ की स्पष्टता पर जोर दिया गया। कविता में जटिलता और बहुवर्थिता की बजाय सीधा और प्रभावी संदेश देने की कोशिश की गई।
3. नई कविता की अवधारणा
नई कविता, जिसे कुछ आलोचक 'नई संवेदनाएँ' के नाम से भी जानते हैं, वह काव्यधारा है जो छायावादोत्तर काल में उभरी। यह एक प्रयोगात्मक दृष्टिकोण है, जिसमें कवियों ने अपने विचारों को अभिव्यक्त करने के लिए नए रूपों, तकनीकों, और बिम्बों का प्रयोग किया।
3.1. नई कविता के प्रमुख विशेषताएँ:
- स्वतंत्रता और नवीनता: नई कविता ने पारंपरिक रूपों से दूर होकर अपनी एक नई पहचान बनाई। कवियों ने अपनी अभिव्यक्ति के लिए नए रूप और बिम्बों का इस्तेमाल किया।
- संवेदनशीलता और व्यक्तिवाद: नई कविता में कवियों की संवेदनशीलता और व्यक्तिगत अनुभवों को अधिक प्राथमिकता दी गई। कवियों ने अपने मन के भीतर की आवाज़ को व्यक्त करने का प्रयास किया।
- भाषाई प्रयोग: नई कविता में भाषा के प्रयोग में भी नवीनता देखने को मिली। कवियों ने बोलचाल की भाषा का इस्तेमाल करते हुए कविता को अधिक सहज और अर्थपूर्ण बनाया।
4. प्रयोजनवाद और नई कविता के बीच का संबंध
प्रयोजनवाद और नई कविता दोनों ही छायावादोत्तर कविता का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, लेकिन उनके दृष्टिकोण अलग-अलग हैं। जबकि प्रयोजनवाद में कविता को समाज और राजनीति के संदर्भ में देखा जाता है, नई कविता में व्यक्तिगत अनुभवों और संवेदनाओं को प्राथमिकता दी जाती है।
हालांकि, दोनों धाराएँ एक-दूसरे को प्रभावित करती हैं। उदाहरण के लिए, कुछ कवि अपने व्यक्तिगत अनुभवों को सामाजिक संदर्भ में रखकर कविता लिखते हैं, जिससे दोनों धाराओं का समावेश होता है। इस प्रकार, प्रयोजनवाद और नई कविता ने हिंदी साहित्य में एक नई दिशा और गहराई प्रदान की।
5. प्रमुख कवि और उनकी रचनाएँ
5.1. प्रयोजनवाद के कवि:
- कबीर वियोगी: उन्होंने अपनी कविताओं में समाज में व्याप्त अन्याय और असमानता के खिलाफ आवाज उठाई।
- सहरिया: उनकी कविताएँ श्रमिक वर्ग और उनके संघर्ष को प्रस्तुत करती हैं।
5.2. नई कविता के कवि:
- आधुनिक कवि: जैसे कि शमशेर, अज्ञेय, और गुलजार ने नई कविता की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इन कवियों ने नई संवेदनाओं, बिम्बों और भाषा के प्रयोग के माध्यम से अपनी पहचान बनाई।
6. निष्कर्ष
छायावादोत्तर कविता में प्रयोजनवाद और नई कविता की अवधारणाएँ हिंदी साहित्य के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ हैं। ये धाराएँ न केवल कविता के विषय और दृष्टिकोण को परिवर्तित करती हैं, बल्कि साहित्य के प्रति समाज की अपेक्षाओं को भी दर्शाती हैं।
प्रयोजनवाद ने समाज के प्रति कवियों की जिम्मेदारी को उजागर किया, जबकि नई कविता ने व्यक्तिगत अनुभवों और संवेदनाओं को महत्व दिया। इस प्रकार, दोनों धाराएँ एक-दूसरे के पूरक हैं और हिंदी कविता की समृद्धि और विविधता में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं।
इस अध्ययन से हमें यह समझने में मदद मिलती है कि कविता केवल व्यक्तिगत अभिव्यक्ति का माध्यम नहीं है, बल्कि यह समाज की आवाज भी है। प्रयोजनवाद और नई कविता के बीच का संतुलन हमें यह सिखाता है कि साहित्य को समाज के प्रति संवेदनशील होना चाहिए और व्यक्तिगत अनुभवों को साझा करने का एक माध्यम बनना चाहिए। इस प्रकार, छायावादोत्तर कविता ने हिंदी साहित्य को एक नई दिशा और गहराई प्रदान की है।
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