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असंगत नाटक की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।

 असंगत नाटक (Absurd Theatre) बीसवीं सदी में विकसित एक विशेष प्रकार की नाट्य विधा है, जिसका उद्देश्य मानवीय अस्तित्व के अर्थहीनता, व्यर्थता और अस्तित्वगत संघर्ष को प्रस्तुत करना है। असंगत नाटकों का उद्भव द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद हुआ, जब विश्व भर में न केवल भौतिक विनाश, बल्कि मानसिक और भावनात्मक स्तर पर भी अस्थिरता का माहौल था। इस विधा के नाटकों में मानवीय जीवन के बुनियादी सवालों जैसे “हम कौन हैं?”, “हमारा उद्देश्य क्या है?”, और “हम क्यों जी रहे हैं?” पर विचार किया जाता है, लेकिन इनका उत्तर नहीं दिया जाता। इसके बजाय, यह विधा जीवन की विसंगतियों, निरर्थकता और ऊहापोह को प्रस्तुत करती है।

असंगत नाटकों की विशेषता यह है कि इसमें पारंपरिक नाटकीय तत्व जैसे कहानी, चरित्र और संवाद स्पष्ट और सुसंगत नहीं होते। इसके संवाद अक्सर बेमानी, बेतुके और कभी-कभी भ्रमित करने वाले होते हैं। पात्र अपनी स्थिति और अस्तित्व के प्रति असमंजस और असहायता का अनुभव करते हैं, और इस निरर्थकता को दर्शाने के लिए हास्य और व्यंग्य का सहारा लिया जाता है।

इस विधा के महत्वपूर्ण नाटककारों में सैम्युल बैकेट, यूजीन इनेस्को, और जीन जेनेट शामिल हैं। सैम्युल बैकेट का प्रसिद्ध नाटक "वेटिंग फॉर गोडो" असंगत नाटक का एक बेहतरीन उदाहरण है, जिसमें दो पात्र प्रतीक्षा करते हैं, लेकिन अंत तक उन्हें समझ नहीं आता कि वे किसका और क्यों इंतजार कर रहे हैं।

असंगत नाटक की अवधारणा का मूल उद्देश्य यह बताना है कि आधुनिक मानव जीवन अपने आप में निरर्थक है और अस्तित्वगत समस्याओं का कोई ठोस समाधान नहीं है। यह विधा दर्शकों को यथार्थ का सामना करने के लिए प्रेरित करती है और अस्तित्व की त्रासदी को गहनता से अनुभव करने का अवसर देती है।

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