1. सल्तनत को स्थायित्व प्रदान करना
इल्तुतमिश ने एक अस्थिर और कमजोर साम्राज्य को स्थिरता प्रदान की। कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु के बाद दिल्ली सल्तनत में अस्थिरता का माहौल था, और कई स्थानीय शासक विद्रोह करने लगे थे। इल्तुतमिश ने अपनी सैन्य क्षमता और कुशल नेतृत्व से इन विद्रोहों को कुचला और साम्राज्य को एकजुट किया। उसने बाहरी आक्रमणों से सल्तनत की रक्षा की, विशेष रूप से मंगोलों के खतरे से, जिससे दिल्ली सल्तनत की सुरक्षा सुनिश्चित हुई।
2. प्रांतों पर नियंत्रण और विस्तार
इल्तुतमिश ने बंगाल, बिहार, और राजस्थान के कई हिस्सों पर विजय प्राप्त कर सल्तनत की सीमाओं का विस्तार किया। उसने लाहौर, मांडू, अजमेर, रणथंभौर, और ग्वालियर जैसे क्षेत्रों पर अपनी सत्ता स्थापित की। इससे सल्तनत का भूगोल विस्तृत हुआ और इसके प्रभाव का क्षेत्र बढ़ा।
3. प्रशासनिक सुधार और मुद्रा प्रचलन
इल्तुतमिश ने प्रशासनिक सुधार किए, जिससे सल्तनत में शासन व्यवस्था अधिक संगठित हुई। उसने एक केंद्रीकृत प्रशासनिक ढांचे का निर्माण किया और भूमि कर प्रणाली को व्यवस्थित किया। इसके अलावा, उसने टंका (चांदी का सिक्का) और जीतल (तांबे का सिक्का) जारी किया, जिसने भारतीय मुद्रा प्रणाली को मानकीकृत किया। इससे व्यापार और अर्थव्यवस्था को स्थायित्व मिला।
4. उत्तराधिकार और भविष्य की नींव
इल्तुतमिश ने अपनी बेटी रजिया सुल्तान को उत्तराधिकारी नियुक्त किया, जो उस समय की रूढ़िवादी परंपराओं के खिलाफ था। यह कदम उसकी दूरदर्शिता और प्रगतिशीलता को दर्शाता है, जिसने महिलाओं की सत्ता में भूमिका की दिशा में एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया।
निष्कर्ष
इल्तुतमिश ने दिल्ली सल्तनत की नींव को मजबूत और संगठित किया, उसके प्रशासनिक, सैन्य, और आर्थिक ढांचे को स्थायित्व प्रदान किया, और अपने समय का एक कुशल और दूरदर्शी शासक सिद्ध हुआ। उसकी उपलब्धियाँ दिल्ली सल्तनत के विकास के लिए आधारशिला बनीं, जिससे यह एक शक्तिशाली साम्राज्य के रूप में उभर सका।