आंकलन (Assessment) शिक्षा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण उपकरण है, जो विद्यार्थियों के प्रदर्शन, ज्ञान और कौशल को मापता है। इसे विभिन्न दृष्टिकोणों से वर्गीकृत किया जा सकता है, जिनमें प्रमुख रूप से मानक सन्दर्भित (Norm-Referenced), निकष सन्दर्भित (Criterion-Referenced) और स्व-सन्दर्भित (Self-Referenced) आंकलन शामिल हैं। ये तीनों आंकलन विधियाँ विद्यार्थियों की समझ और प्रगति के मूल्यांकन में अलग-अलग तरीके से मदद करती हैं।
1. मानक सन्दर्भित आंकलन (Norm-Referenced Assessment)
परिभाषा: मानक सन्दर्भित आंकलन का मुख्य उद्देश्य विद्यार्थियों के प्रदर्शन को अन्य विद्यार्थियों के प्रदर्शन के सापेक्ष मापना है। इसमें विद्यार्थियों को उनकी रैंकिंग और तुलना के आधार पर आंकलन किया जाता है।
उदाहरण:
एक कक्षा में 30 विद्यार्थियों की परीक्षा में अंकों का वितरण इस प्रकार हो सकता है:
- विद्यार्थी A: 95 अंक
- विद्यार्थी B: 80 अंक
- विद्यार्थी C: 70 अंक
- विद्यार्थी D: 50 अंक
- विद्यार्थी E: 30 अंक
इसमें विद्यार्थी A सबसे अच्छा प्रदर्शन करता है, जबकि विद्यार्थी E सबसे कम। इस आंकलन के माध्यम से यह स्पष्ट हो जाता है कि किस विद्यार्थी ने सबसे अच्छा प्रदर्शन किया और किस विद्यार्थी को सुधार की आवश्यकता है।
विशेषताएँ:
- प्रतिस्पर्धात्मक: विद्यार्थियों का प्रदर्शन एक दूसरे के साथ तुलना में मापा जाता है।
- रैंकिंग: विद्यार्थियों को उनकी रैंकिंग के अनुसार वर्गीकृत किया जाता है, जो यह दर्शाता है कि वे समूह में कहाँ खड़े हैं।
- मानकीकरण: मानक सन्दर्भित परीक्षण सामान्यतः मानकीकृत होते हैं, जैसे SAT, GRE, आदि।
लाभ:
- यह सबसे उत्कृष्ट और कमजोर विद्यार्थियों की पहचान करने में मदद करता है।
- प्रतिस्पर्धात्मक माहौल उत्पन्न करता है।
सीमाएँ:
- यह विद्यार्थियों की व्यक्तिगत प्रगति का सही मूल्यांकन नहीं कर पाता।
- विद्यार्थियों को एक-दूसरे के प्रदर्शन की तुलना में हतोत्साहित कर सकता है।
2. निकष सन्दर्भित आंकलन (Criterion-Referenced Assessment)
परिभाषा: निकष सन्दर्भित आंकलन का उद्देश्य विद्यार्थियों के प्रदर्शन को एक निश्चित मानदंड या निकष के आधार पर मापना होता है। इसमें यह देखना होता है कि विद्यार्थी ने निर्धारित लक्ष्यों को पूरा किया या नहीं।
उदाहरण:
मान लीजिए, एक गणित की परीक्षा में विद्यार्थियों को 70% अंक प्राप्त करने के लिए निर्धारित किया गया है। अगर विद्यार्थी A को 75 अंक और विद्यार्थी B को 65 अंक प्राप्त होते हैं, तो विद्यार्थी A पास होगा जबकि विद्यार्थी B को सुधार की आवश्यकता होगी।
विशेषताएँ:
- निर्धारित मानदंड: विद्यार्थियों का मूल्यांकन एक निश्चित मापदंड के अनुसार किया जाता है।
- पास/फेल प्रणाली: इसमें विद्यार्थी पास या फेल हो सकते हैं, यानी निर्धारित मानदंडों को पूरा करना ही मुख्य उद्देश्य होता है।
- उद्देश्य केंद्रित: यह विद्यार्थी की समझ और कौशल पर आधारित है।
लाभ:
- यह व्यक्तिगत योग्यता और दक्षता को मापता है।
- सभी विद्यार्थियों के लिए समान मानदंड होते हैं, इसलिए निष्पक्ष होता है।
सीमाएँ:
- यह केवल उन विद्यार्थियों के लिए उपयोगी है जो मानदंड को पूरा कर पाते हैं।
- इसमें समूह में उत्कृष्टता का पता नहीं चलता।
3. स्व-सन्दर्भित आंकलन (Self-Referenced Assessment)
परिभाषा: स्व-सन्दर्भित आंकलन में विद्यार्थी अपने पिछले प्रदर्शन की तुलना अपने वर्तमान प्रदर्शन से करता है। इसका उद्देश्य व्यक्तिगत प्रगति का आकलन करना होता है।
उदाहरण:
यदि एक विद्यार्थी ने पिछले वर्ष एक विषय में 60% अंक प्राप्त किए थे और इस वर्ष उसे 75% अंक प्राप्त होते हैं, तो यह स्व-सन्दर्भित आंकलन है। इस स्थिति में विद्यार्थी अपनी प्रगति का आकलन कर सकता है और यह देख सकता है कि वह पिछले साल की तुलना में कितना बेहतर हुआ है।
विशेषताएँ:
- व्यक्तिगत प्रगति: यह विद्यार्थी की व्यक्तिगत प्रगति को मापता है।
- स्वतंत्रता: विद्यार्थी अपनी सफलताओं और कमियों को स्वयं पहचानते हैं।
- समय के अनुसार माप: यह समय के साथ विद्यार्थियों की उन्नति को दर्शाता है।
लाभ:
- यह विद्यार्थियों को अपनी प्रगति को समझने और सुधारने का मौका देता है।
- आत्म-मूल्यांकन को बढ़ावा देता है, जिससे विद्यार्थी आत्मनिर्भर बनते हैं।
सीमाएँ:
- यह विद्यार्थियों के व्यक्तिगत अनुभवों पर निर्भर करता है और कभी-कभी विषय में गहराई से ज्ञान की आवश्यकता हो सकती है।
- यह दूसरों के प्रदर्शन के संदर्भ में मूल्यांकन नहीं करता।
तुलना और निष्कर्ष
इन तीनों आंकलन विधियों में प्रमुख अंतर यह है कि:
- मानक सन्दर्भित आंकलन प्रतिस्पर्धात्मक है और विद्यार्थियों के प्रदर्शन की तुलना अन्य विद्यार्थियों से करता है।
- निकष सन्दर्भित आंकलन विद्यार्थियों की योग्यता को एक निश्चित मानदंड के आधार पर मापता है।
- स्व-सन्दर्भित आंकलन विद्यार्थियों की व्यक्तिगत प्रगति को उनके पिछले प्रदर्शन के साथ तुलना करके आंकलन करता है।
इन आंकलनों का सही उपयोग शिक्षण प्रक्रिया को बेहतर बनाने में मदद कर सकता है। शिक्षकों को इन विभिन्न प्रकार के आंकलनों को समझकर और उनकी विशेषताओं के अनुसार उपयोग करके विद्यार्थियों की प्रगति और समग्र विकास में मदद करनी चाहिए।
अंततः, शिक्षा का उद्देश्य केवल ज्ञान प्रदान करना नहीं है, बल्कि विद्यार्थियों को उनके व्यक्तिगत विकास में सहायता करना भी है। इन आंकलनों के माध्यम से, हम इस उद्देश्य को प्राप्त कर सकते हैं और विद्यार्थियों को उनके लक्ष्यों की ओर बढ़ने में मदद कर सकते हैं।
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