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कृष्णमुर्ती के शैक्षिक विचार की विवेचना कीजिए।

जिद्दु कृष्णमूर्ति (1895-1986) भारत के एक प्रसिद्ध दार्शनिक, आध्यात्मिक गुरु और शिक्षक थे, जिन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण विचार और सिद्धांत प्रस्तुत किए। उनके शैक्षिक विचार मुख्य रूप से स्वतंत्रता, आत्मज्ञान, और मनुष्य की संपूर्ण क्षमता के विकास पर आधारित हैं। कृष्णमूर्ति का मानना था कि शिक्षा का मुख्य उद्देश्य केवल बौद्धिक विकास नहीं होना चाहिए, बल्कि यह व्यक्ति को एक संपूर्ण मानव बनाने की दिशा में कार्य करना चाहिए। उनके अनुसार, शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिया होनी चाहिए, जो न केवल जानकारी और तथ्यों का संचार करे, बल्कि मनुष्य की आंतरिक समझ, संवेदनशीलता, और विवेक का विकास करे।

1. कृष्णमूर्ति का शिक्षा का उद्देश्य:

कृष्णमूर्ति के अनुसार, शिक्षा का मूल उद्देश्य व्यक्ति को समझ और स्वतंत्रता की ओर ले जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि शिक्षा केवल रोज़गार के लिए एक साधन नहीं होनी चाहिए, बल्कि इसका उद्देश्य व्यक्ति को जीवन को पूरी तरह से समझने और उसका सामना करने के लिए तैयार करना होना चाहिए।

उनका मानना था कि शिक्षा का उद्देश्य केवल तथ्यों और जानकारी का संचार करना नहीं है, बल्कि व्यक्ति के संपूर्ण विकास पर ध्यान देना है। इसमें मानसिक, शारीरिक, भावनात्मक, और आध्यात्मिक विकास शामिल है। कृष्णमूर्ति के अनुसार, शिक्षा व्यक्ति को स्वतंत्र और स्वतंत्र विचारक बनाने में सहायक होनी चाहिए ताकि वह समाज में सकारात्मक बदलाव ला सके।

2. स्वतंत्रता और शिक्षा:

कृष्णमूर्ति के शैक्षिक विचारों का एक महत्वपूर्ण पहलू स्वतंत्रता है। उन्होंने कहा कि सच्ची शिक्षा वह है जो व्यक्ति को मानसिक गुलामी से मुक्त करती है। उनका मानना था कि हमारी वर्तमान शिक्षा प्रणाली छात्रों को अनुशासन और आदेशों के माध्यम से नियंत्रित करने की कोशिश करती है, जिससे उनकी स्वाभाविक रचनात्मकता और सोचने की स्वतंत्रता दब जाती है।

उन्होंने तर्क दिया कि शिक्षा को छात्रों को उनके डर, पूर्वाग्रह, और सामाजिक कंडीशनिंग से मुक्त करना चाहिए। जब व्यक्ति भय से मुक्त होता है, तभी वह सच्ची स्वतंत्रता का अनुभव कर सकता है। स्वतंत्रता के बिना, कोई भी सच्ची शिक्षा संभव नहीं है। कृष्णमूर्ति ने कहा कि शिक्षक और छात्र दोनों को अपने पूर्वाग्रहों और धारणाओं से मुक्त होना चाहिए ताकि शिक्षा एक मुक्त और खुली प्रक्रिया हो सके।

3. मूल्य शिक्षा और नैतिकता:

कृष्णमूर्ति ने शिक्षा में नैतिकता और मूल्यों की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया। उनके अनुसार, शिक्षा का कार्य व्यक्ति में नैतिकता और ईमानदारी के गुणों को विकसित करना होना चाहिए। नैतिकता का मतलब उनके लिए किसी विशेष धर्म या समाज द्वारा निर्धारित नैतिक नियमों का पालन करना नहीं था, बल्कि एक आंतरिक समझ विकसित करना था कि क्या सही है और क्या गलत।

उनके अनुसार, नैतिकता कोई बाहरी चीज़ नहीं है जिसे सिखाया जा सके, बल्कि यह व्यक्ति की आंतरिक समझ और जागरूकता का परिणाम है। उन्होंने शिक्षा को एक साधन के रूप में देखा, जो व्यक्ति को आत्म-निरीक्षण करने और अपने विचारों, भावनाओं और कार्यों की गहराई से समझने की क्षमता प्रदान करता है।

4. शिक्षक की भूमिका:

कृष्णमूर्ति के अनुसार, शिक्षक का काम केवल छात्रों को जानकारी देना नहीं है, बल्कि उन्हें जीवन की गहरी समझ विकसित करने में मदद करना है। उन्होंने कहा कि शिक्षक को खुद को भी आत्म-निरीक्षण करना चाहिए और खुद को मानसिक रूप से मुक्त करना चाहिए, ताकि वह छात्रों को सही मार्गदर्शन प्रदान कर सके।

कृष्णमूर्ति के विचार में, शिक्षक और छात्र के बीच संबंध पारंपरिक रूप से शिक्षक-प्रभु और छात्र-शिष्य का नहीं होना चाहिए। बल्कि, दोनों को एक-दूसरे से सीखने की प्रक्रिया में सहयोगी के रूप में कार्य करना चाहिए। शिक्षक को केवल तथ्यों का संचारक नहीं होना चाहिए, बल्कि वह छात्रों को सिखाने के साथ-साथ खुद भी सीखता रहना चाहिए।

5. परंपरागत शिक्षा प्रणाली की आलोचना:

कृष्णमूर्ति ने परंपरागत शिक्षा प्रणाली की कठोर आलोचना की। उनके अनुसार, वर्तमान शिक्षा प्रणाली समाज के अनुरूप व्यक्ति को ढालने की कोशिश करती है, बजाय इसके कि व्यक्ति को उसकी वास्तविक स्वतंत्रता और स्वाभाविक रचनात्मकता की ओर ले जाए। उन्होंने तर्क दिया कि शिक्षा को समाज के नियमों और संरचनाओं का पालन करने के बजाय व्यक्ति को समाज को समझने और उसमें सकारात्मक बदलाव लाने की दिशा में काम करना चाहिए।

कृष्णमूर्ति ने यह भी कहा कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली व्यक्तियों को प्रतिस्पर्धात्मक, लालची और आत्म-केंद्रित बना रही है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि शिक्षा का उद्देश्य छात्रों को समावेशी और दयालु बनाना होना चाहिए, जिससे वे दूसरों के प्रति सहानुभूति और करुणा महसूस कर सकें।

6. मन का अनुशासन और जागरूकता:

कृष्णमूर्ति ने शिक्षा में ध्यान और मानसिक अनुशासन की आवश्यकता पर जोर दिया। उनके अनुसार, मानसिक अनुशासन का अर्थ बाहरी अनुशासन से नहीं है, बल्कि यह आंतरिक जागरूकता और आत्म-निरीक्षण का परिणाम है। उन्होंने कहा कि शिक्षा का उद्देश्य मन को सचेत, अनुशासित और सतर्क बनाना होना चाहिए, ताकि व्यक्ति अपने विचारों और कार्यों को सही ढंग से समझ सके और उनका सही उपयोग कर सके।

उनके अनुसार, जब मन जागरूक और सतर्क होता है, तभी वह सच्ची समझ और ज्ञान की ओर अग्रसर हो सकता है। उन्होंने छात्रों को ध्यान, आत्म-निरीक्षण और प्रश्न पूछने की प्रक्रिया में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया, ताकि वे अपने जीवन को गहराई से समझ सकें।

7. समग्र विकास (Holistic Development):

कृष्णमूर्ति के विचारों में, शिक्षा केवल बुद्धि और तर्क पर आधारित नहीं होनी चाहिए, बल्कि इसका उद्देश्य व्यक्ति के समग्र विकास पर होना चाहिए। उन्होंने तर्क दिया कि शिक्षा को व्यक्ति के भावनात्मक, शारीरिक, मानसिक, और आध्यात्मिक पहलुओं को समान रूप से विकसित करना चाहिए।

उनके अनुसार, एक संपूर्ण शिक्षा वह है जो व्यक्ति को जीवन के हर पहलू को समझने और अनुभव करने की क्षमता प्रदान करती है। यह न केवल व्यक्ति को समाज में एक सफल पेशेवर बनाने में मदद करती है, बल्कि उसे एक संतुलित, शांतिपूर्ण और समझदार व्यक्ति बनाने में भी मदद करती है।

8. दैनिक जीवन और शिक्षा:

कृष्णमूर्ति का मानना था कि शिक्षा को केवल स्कूल या कॉलेज की चार दीवारों तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि यह व्यक्ति के दैनिक जीवन का हिस्सा होना चाहिए। शिक्षा को केवल पुस्तकों तक सीमित न रखते हुए व्यक्ति को जीवन की वास्तविकताओं से जुड़ने का अवसर देना चाहिए।

उनके अनुसार, शिक्षा वह नहीं है जो केवल किताबों या कक्षाओं में मिलती है, बल्कि यह एक सतत् प्रक्रिया है जो जीवन के हर पहलू में चलती रहती है। व्यक्ति को अपने आस-पास के वातावरण, लोगों, और समाज से सीखने का अवसर मिलना चाहिए, ताकि वह एक संपूर्ण जीवन जी सके।

9. शांति और शिक्षा:

कृष्णमूर्ति ने शिक्षा को शांति के साधन के रूप में देखा। उनका मानना था कि जब व्यक्ति खुद को समझता है और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझता है, तभी वह समाज में शांति और सौहार्द्र स्थापित कर सकता है।

उनके अनुसार, शांति केवल बाहरी परिस्थितियों से नहीं आती, बल्कि यह व्यक्ति के भीतर की जागरूकता और समझ से उत्पन्न होती है। इसलिए, शिक्षा का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति में आंतरिक शांति और समरसता को विकसित करना होना चाहिए।

निष्कर्ष:

जिद्दु कृष्णमूर्ति के शैक्षिक विचार गहन, व्यावहारिक और मानवता के मूलभूत सिद्धांतों पर आधारित हैं। उन्होंने शिक्षा को व्यक्ति के समग्र विकास और समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का एक साधन माना। उनका मानना था कि शिक्षा को केवल जानकारी का संचारक न बनाकर, व्यक्ति को स्वतंत्र और आत्म-साक्षात्कार की दिशा में ले जाना चाहिए। उनके विचार आज भी शिक्षाविदों, दार्शनिकों, और शिक्षकों के लिए प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं, और उनका महत्व शिक्षा की आधुनिक प्रणालियों में देखा जा सकता है। 

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