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स्किनर के अधिगम सिद्धान्त के शैक्षिक निहितार्थ क्या है?

बी.एफ. स्किनर का अधिगम सिद्धांत, जिसे "संवर्धन सिद्धांत" के नाम से भी जाना जाता है, यह बताता है कि सीखने की प्रक्रिया को निर्धारित करने वाले महत्वपूर्ण तत्वों में से एक है। इसके शैक्षिक निहितार्थ निम्नलिखित हैं:

1. संवर्धन और दंड:

स्किनर का सिद्धांत बताता है कि जब किसी कार्य का सकारात्मक परिणाम होता है, तो वह कार्य फिर से करने की संभावना बढ़ जाती है (संवर्धन)। वहीं, नकारात्मक परिणाम से उस कार्य को करने की संभावना कम हो जाती है (दंड)। शैक्षिक प्रणाली में, शिक्षक को बच्चों के अच्छे व्यवहार और प्रयासों को प्रोत्साहित करना चाहिए, ताकि वे प्रेरित हों।

2. सकारात्मक वातावरण:

स्किनर के सिद्धांत के अनुसार, सकारात्मक परिणामों का वातावरण बनाए रखना महत्वपूर्ण है। विद्यालय में एक सहायक और सकारात्मक वातावरण बच्चों को सीखने में मदद करता है। शिक्षक को ऐसे वातावरण का निर्माण करना चाहिए जहाँ बच्चे स्वतंत्र रूप से सीख सकें और प्रयोग कर सकें।

3. व्यक्तिगत फीडबैक:

स्किनर का सिद्धांत यह भी दर्शाता है कि व्यक्तिगत फीडबैक बच्चों की सीखने की प्रक्रिया को प्रभावित करता है। शिक्षक को बच्चों को नियमित रूप से फीडबैक देना चाहिए, ताकि वे अपनी गलतियों से सीख सकें और अपने कौशल में सुधार कर सकें।

4. शिक्षण विधियाँ:

स्किनर के सिद्धांत का अनुसरण करते हुए, शिक्षकों को शैक्षिक सामग्री को छोटे भागों में विभाजित करना चाहिए। इस तरह से छात्रों को छोटे-छोटे लक्ष्यों को हासिल करने में आसानी होगी और उन्हें अधिक आत्मविश्वास महसूस होगा।

5. आत्म-नियंत्रण:

स्किनर का सिद्धांत आत्म-नियंत्रण को भी प्रोत्साहित करता है। बच्चों को यह सिखाना चाहिए कि वे अपनी कार्यों के परिणामों का सामना कैसे करें। इससे उनकी समस्या सुलझाने की क्षमताएँ बढ़ती हैं और वे अपनी सीखने की प्रक्रिया को समझ पाते हैं।

6. अधिगम की निरंतरता:

स्किनर के सिद्धांत के अनुसार, सीखने की प्रक्रिया निरंतर होनी चाहिए। शिक्षा में पुनरावृत्ति और अभ्यास की महत्वपूर्णता होती है। शिक्षक को बच्चों को नियमित अभ्यास और पुनरावलोकन के अवसर प्रदान करने चाहिए, ताकि वे अपनी ज्ञान को मजबूत कर सकें।

निष्कर्ष:

स्किनर के अधिगम सिद्धांत के शैक्षिक निहितार्थ शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण हैं। इससे शिक्षकों को शिक्षण के प्रभावी तरीके अपनाने और छात्रों की सीखने की प्रक्रिया को समझने में मदद मिलती है। यह सिद्धांत शिक्षा में सकारात्मकता और आत्म-प्रबंधन को बढ़ावा देता है, जिससे छात्रों का समग्र विकास संभव होता है।

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