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आंकलन का वर्गीकरण करते हुए संरचनात्मक, योगात्मक तथा निदानात्मक आंकलन की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।

आंकलन (Assessment) शिक्षा और प्रशिक्षण का एक महत्वपूर्ण घटक है, जो विद्यार्थियों की योग्यता, कौशल, ज्ञान और प्रगति का मूल्यांकन करता है। आंकलन को कई प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है, और उनमें से प्रमुख रूप से संरचनात्मक (Formative), योगात्मक (Summative) और निदानात्मक (Diagnostic) आंकलन शामिल हैं। इन सभी आंकलनों का मुख्य उद्देश्य विद्यार्थियों के सीखने के स्तर का मापन करना होता है, लेकिन वे विभिन्न उद्देश्यों और समय पर उपयोग होते हैं।

इस उत्तर में हम आंकलन का वर्गीकरण करेंगे और फिर इन तीनों प्रमुख प्रकारों की विस्तृत व्याख्या उदाहरणों के साथ करेंगे।

आंकलन का वर्गीकरण

आंकलन को विभिन्न दृष्टिकोणों से वर्गीकृत किया जा सकता है। यह शिक्षण की प्रक्रिया, समय, उद्देश्य और तरीका आधारित होता है। आंकलन के प्रकार मुख्य रूप से निम्नलिखित हैं:

  1. पूर्व-आंकलन (Pre-assessment): किसी शिक्षण प्रक्रिया के आरंभ में विद्यार्थियों की प्रारंभिक जानकारी या योग्यता को मापने के लिए।
  2. संरचनात्मक आंकलन (Formative assessment): शिक्षण प्रक्रिया के दौरान विद्यार्थियों की प्रगति और उनके सीखने की स्थिति को मापने के लिए।
  3. योगात्मक आंकलन (Summative assessment): किसी शिक्षण कार्यक्रम के अंत में विद्यार्थियों की कुल उपलब्धियों को मापने के लिए।
  4. निदानात्मक आंकलन (Diagnostic assessment): विद्यार्थियों की कमजोरियों, त्रुटियों या कमियों की पहचान करने के लिए।
  5. स्वयं-आंकलन (Self-assessment): जहाँ विद्यार्थी स्वयं अपने प्रदर्शन का आकलन करते हैं।
  6. सहकर्मी-आंकलन (Peer-assessment): जहाँ सहपाठी एक-दूसरे के कार्यों का मूल्यांकन करते हैं।

1. संरचनात्मक आंकलन (Formative Assessment)

संरचनात्मक आंकलन वह प्रक्रिया है जो शिक्षण और सीखने के दौरान विद्यार्थियों की प्रगति का आकलन करती है। इसका उद्देश्य शिक्षण की प्रक्रिया में सुधार करना और विद्यार्थियों की कमजोरियों को पहचान कर उन्हें सही करना होता है। यह निरंतर और अस्थायी रूप से होता है, ताकि शिक्षण के दौरान किसी भी गलती को तुरंत ठीक किया जा सके।

उदाहरण:

कक्षा के बीच में शिक्षक द्वारा लघु परीक्षण (quizzes), होमवर्क, परियोजनाएँ, मौखिक प्रश्न और उत्तर, तथा विद्यार्थियों की कक्षा में सहभागिता के माध्यम से प्रगति की जांच की जाती है।

मान लीजिए, एक शिक्षक गणित का पाठ पढ़ा रहे हैं और विद्यार्थियों को बीच में अभ्यास के लिए कुछ सवाल देते हैं। शिक्षक उस अभ्यास के आधार पर समझ सकते हैं कि किन विद्यार्थियों को समझ में नहीं आ रहा है और फिर उस हिसाब से वे अपनी शिक्षण विधि में बदलाव कर सकते हैं।

विशेषताएँ:

  1. निरंतरता: यह शिक्षण के दौरान नियमित अंतराल पर किया जाता है।
  2. प्रतिपुष्टि (Feedback): यह विद्यार्थियों को त्वरित प्रतिपुष्टि प्रदान करता है, जिससे वे अपनी गलतियों को समझ सकते हैं और सुधार कर सकते हैं।
  3. लचीलापन: शिक्षक अपनी शिक्षण विधियों में बदलाव कर सकते हैं ताकि विद्यार्थियों की समझ बेहतर हो।

उपयोग:

  • कक्षा में पाठ के बीच छोटे प्रश्नोत्तरी या लघु परीक्षण।
  • विद्यार्थियों से समूह चर्चा करवाकर उनकी समझ की जांच।

लाभ:

  • यह शिक्षक और विद्यार्थी दोनों को सुधार के अवसर प्रदान करता है।
  • यह शिक्षण प्रक्रिया को अधिक प्रभावी बनाता है, क्योंकि यह तत्काल प्रतिक्रिया और सुधार का मौका देता है।

सीमाएँ:

  • यह समय और संसाधनों की दृष्टि से अधिक व्ययकारी हो सकता है।
  • इसमें विद्यार्थियों का व्यक्तिगत प्रगति का आकलन करना कठिन हो सकता है।

2. योगात्मक आंकलन (Summative Assessment)

योगात्मक आंकलन किसी शिक्षण कार्यक्रम या पाठ्यक्रम के अंत में विद्यार्थियों के समग्र प्रदर्शन और उपलब्धियों का आकलन करता है। इसका उद्देश्य विद्यार्थियों की कुल योग्यता को मापना होता है। इसमें विद्यार्थियों को उनकी समझ, ज्ञान और कौशल के आधार पर अंतिम मूल्यांकन दिया जाता है, जैसे ग्रेड या प्रमाणपत्र।

उदाहरण:

वर्ष के अंत में दी जाने वाली वार्षिक परीक्षा, अंतिम प्रोजेक्ट, सेमेस्टर परीक्षा, बोर्ड परीक्षा आदि योगात्मक आंकलन के उदाहरण हैं।

मान लीजिए, किसी विद्यार्थी ने पूरे सेमेस्टर में गणित के विभिन्न विषयों पर अध्ययन किया है। सेमेस्टर के अंत में एक परीक्षा आयोजित की जाती है, जो विद्यार्थी के पूरे पाठ्यक्रम की समझ को मापती है और उसके आधार पर उसे अंक दिए जाते हैं।

विशेषताएँ:

  1. अंतिम मापन: यह शिक्षण कार्यक्रम के अंत में किया जाता है।
  2. ग्रेड या प्रमाणपत्र: इसमें विद्यार्थियों को उनके प्रदर्शन के आधार पर ग्रेड्स या प्रमाणपत्र दिए जाते हैं।
  3. उपलब्धि पर आधारित: यह छात्रों की अंतिम उपलब्धियों का आकलन करता है।

उपयोग:

  • सालाना परीक्षाएँ: जहां विद्यार्थियों की पूरे वर्ष की पढ़ाई का मूल्यांकन किया जाता है।
  • फाइनल प्रोजेक्ट: जो विद्यार्थियों के कौशल और ज्ञान का मूल्यांकन करता है।

लाभ:

  • यह विद्यार्थियों की समग्र समझ और उपलब्धियों को मापता है।
  • इसका उपयोग प्रमोशन, प्रमाणीकरण और उच्चतर शिक्षा के लिए किया जा सकता है।

सीमाएँ:

  • यह विद्यार्थियों के लगातार विकास को मापने में असमर्थ हो सकता है।
  • इसमें केवल एक परीक्षा के आधार पर विद्यार्थी के प्रदर्शन का मूल्यांकन किया जाता है, जो कि कभी-कभी सही नहीं होता।

3. निदानात्मक आंकलन (Diagnostic Assessment)

निदानात्मक आंकलन का उद्देश्य विद्यार्थियों की त्रुटियों, कमजोरियों और ज्ञान के अंतराल की पहचान करना होता है। यह आमतौर पर किसी पाठ्यक्रम की शुरुआत में किया जाता है ताकि शिक्षक यह जान सकें कि विद्यार्थी को किस क्षेत्र में अधिक सहायता की आवश्यकता है।

उदाहरण:

किसी कक्षा की शुरुआत में लिया गया एक छोटा परीक्षण, जिसमें विद्यार्थियों की प्रारंभिक ज्ञान और कौशल की जांच की जाती है। उदाहरण के लिए, अगर किसी छात्र को गणित की कुछ बुनियादी अवधारणाएँ नहीं आती हैं, तो निदानात्मक आंकलन उन कमजोरियों को उजागर करेगा और शिक्षक उस पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं।

विशेषताएँ:

  1. शुरुआती परीक्षण: यह शिक्षण प्रक्रिया की शुरुआत में किया जाता है।
  2. कमजोरियों की पहचान: यह विद्यार्थियों की कमजोरियों और समस्याओं को उजागर करता है।
  3. समस्याओं का समाधान: यह शिक्षक को विद्यार्थियों की कमजोरियों को दूर करने के लिए एक सटीक योजना बनाने में मदद करता है।

उपयोग:

  • प्री-टेस्ट: किसी पाठ्यक्रम या अध्याय की शुरुआत में लिया जाने वाला प्रारंभिक परीक्षण।
  • विशेष आवश्यकता वाले विद्यार्थियों के लिए निदानात्मक परीक्षण: ताकि उनकी व्यक्तिगत समस्याओं को समझकर उचित सहायता दी जा सके।

लाभ:

  • यह विद्यार्थियों की प्रारंभिक समस्याओं और कमजोरियों की पहचान करता है।
  • यह शिक्षक को विद्यार्थियों की जरूरतों के आधार पर सही रणनीति बनाने में मदद करता है।

सीमाएँ:

  • इसे प्रभावी ढंग से करने के लिए समय और संसाधनों की आवश्यकता होती है।
  • यह केवल शिक्षण की शुरुआत में उपयोगी होता है, लेकिन शिक्षा के दौरान इसकी जरूरत कम होती है।

निष्कर्ष:

संरचनात्मक, योगात्मक और निदानात्मक आंकलन, शिक्षा के विभिन्न चरणों और उद्देश्यों को पूरा करने के लिए महत्वपूर्ण हैं।

  • संरचनात्मक आंकलन शिक्षण के दौरान प्रगति की जांच करता है और सुधार के अवसर प्रदान करता है।
  • योगात्मक आंकलन किसी कोर्स के अंत में विद्यार्थियों की उपलब्धियों को मापता है और उन्हें ग्रेड्स या प्रमाणीकरण प्रदान करता है।
  • निदानात्मक आंकलन विद्यार्थियों की प्रारंभिक कमजोरियों को पहचानकर सही शिक्षण पद्धतियों का चयन करने में मदद करता है।

इन तीनों आंकलनों का सही समय पर और सही तरीके से उपयोग करने से शिक्षण की गुणवत्ता में सुधार होता है और विद्यार्थियों की प्रगति को सही दिशा में ले जाने में मदद मिलती है।

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